भौगोलिक वर्गीकरण के आधार पर वनों को पाँच भागों में बाँटा गया है
- उष्णकटिबंधीय कंटीले वन
- उष्णकटिबंधीय धोंक वन
- उष्णकटिबंधीय शुष्क मानसूनी वन
- उष्णकटिबंधीय सागवान वन
- उष्णकटिबंधीय सदाबहार वन
(1) उष्णकटिबंधीय कंटीले वन Tropical thorn forest
- वर्षा – 0 – 30 सेमी.
- वन क्षेत्र – 6 प्रतिशत
- विस्तार – शुष्क मरुस्थली क्षेत्र (जैसलमेर, बीकानेर बाडमेर एवं जोधपुर),
- प्रमुख वन- नागफनी, एलोवेरा, कंटीली झाड़ियाँ
- महत्व – मरुस्थलीकरण को रोकने में।
(2) उष्णकटिबंधीय धोंक वन tropical dunk forest
- वर्षा – 30-60 सेमी.
- वन क्षेत्र – 58 प्रतिशत
- विस्तार- अर्द्धशुष्क मरूस्थली क्षेत्र (लून-बेसिन, नागौर, शेखावाटी, करौली एवं सवाईमाधोपुर)
- प्रमुख वन खेजडी, रोहिड़ा, बबूल, बैर एवं कैर
- महत्व ईंधन की लकड़ी प्राप्त की जाती है।
(3) उष्णकटिबंधीय शुष्क मानसून वन Tropical Dry Monsoon Forest
- वर्षा- 50
- वर्षा 80 सेमी.
- वन क्षेत्र- 28 प्रतिशत
- विस्तार- अलवर, भरतपुर, करौली, धौलपुर, उदयपुर, चित्तौड़गढ़, भीलवाड़ा एवं राजसमंद
- प्रमुख वन साल, सागवान, शीशम, आम एवं चन्दन।
- महत्व – इन वनों का आर्थिक महत्व सर्वाधिक होता है। उदाहरण- ईमारती लकड़ी के रूप में।
(4) उष्णकटिबंधीय सागवान वन tropical teak forest
- वर्षा – 75-110 सेमी.
- वन क्षेत्र – 7 प्रतिशत
- विस्तार – बांसवाड़ा, डूंगरपुर, प्रतापगढ़, कोटा एवं झालावाड़
- प्रमुख वन गुलर, महुआ एवं तेन्दु ।
- महत्व – औद्योगिक क्षेत्र में उपयोगी।
(5) उष्णकटिबंधीय सदाबहान वन tropical evergreen forest
- वर्षा – 150 सेमी.
- वन क्षेत्र – 1 प्रतिशत
- विस्तार- माउंट आबू
- प्रमुख वन – डिकल्पटेरा आबू ऐंसिस (अम्बरतरी), जामुन एवं बांस।
- महत्व – इन वनों में अधिक जैव विविधता पाई जाती है।
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