समास

समास भेद और उदाहरण, समास की परिभाषा, समास विग्रह, समास के भेद, समास के प्रकार [ Samas ki Paribhasha Aur Uske Bhed, Udaharan (Examples)]

समास शब्द का अर्थ

संक्षिप्त या छोटा करना है । दो या दो से अधिक शब्दों के मेल या संयोग को समास कहते हैं । इस मेल में विभक्ति चिह्नों का लोप हो जाता है ।

भाषा में संक्षिप्तता बहुत ही आवश्यक होती है और समास इसमें सहायक होते हैं । समास द्वारा संक्षेप में कम से कम शब्दों द्वारा बड़ी से बड़ी और पूर्ण बात कही जाती है ।

समास का उद्भव ही समान अर्थ को कम से कम शब्द में करने की प्रवृत्ति के कारण हुआ है ।

जैसे– दिन और रात में तीन शब्दों के प्रयोग के स्थान पर ‘ दिन – रात ‘ दो शब्दों द्वारा भी व्यक्त किया जा सकता है ।

इस प्रकार एकाधिक शब्दों के मेल से विभक्ति चिह्नों के लोप के कारण जो नवीन शब्द बनते हैं उन्हें सामासिक या समस्त पद कहते हैं ।

सामासिक शब्दों का संबंध व्यक्त करने वाले विभक्ति चिह्नों के साथ प्रकट करने अथवा लिखने वाली रीति को ‘ विग्रह ‘ कहते हैं ।

जैसे– ‘ धन सम्पन्न ‘ समस्त पद का विग्रह ‘ धन से सम्पन्न ‘ , ‘ रसोईघर ‘ समस्त पद का विग्रह ‘ रसोई के लिए घर ‘

समस्त पद में मुख्यतः दो पद होते हैं – पूर्वपद व उत्तर पद । पहले वाले पद को ‘ पूर्वपद ‘ व दूसरे पद को ‘ उत्तरपद ‘ कहते हैं ।

समस्त पद पूर्व पद उत्तर पद समास विग्रह
पूजाघर पूजा घर पूजा के लिए घर
माता पिता माता पिता माता और पिता
नवरत्न नव रत्न नौ रत्नों का समूह
हस्तगत हस्त गत हस्त में गया हुआ

 

समस्त पद पूर्वपद उत्तरपद समास विग्रह पूजाघर पूजा घर पूजा के लिए घर माता – पिता माता पिता माता और पिता नवरत्न नव हस्तगत नौ रत्नों का समूह हस्त में गया हुआ गत

समास के भेद difference of samasa in Hindi

मुख्यत समास के छ : भेद होते हैं

1. तत्पुरुष समास

2. कर्मधारय समास

3. द्वन्द्व समास

4. द्विगु समास

5. अव्ययीभाव समास

6. बहुब्रीहि समास

1. तत्पुरुष समास Tatpurush Samas in Hindi

इस समास में पहला पद गौण व दूसरा पद प्रधान होता है । इसमें कारक के विभक्ति चिह्नों कालोप हो जाता है ( कर्ता व सम्बोधन कारक को छोड़कर ) इसलिए छ : कारकों के आधार पर इस समास कभी छ : भेद किए गए हैं ।

( क ) कर्म तत्पुरुष समास ( ‘ को ‘ विभक्ति चिह्नों का लोप )

समस्त पद समास विग्रह
ग्रामगत  ग्राम को गया हुआ
पदप्राप्त पद को प्राप्त
सर्वप्रिय सर्व को प्रिय
यशप्राप्त यश को प्राप्त
शरणागत शरण को आया हुआ
सर्वप्रिय सभी को प्रिय

 

 ( ख ) करण तत्पुरुष समास ( ‘ से ‘ चिह्न का लोप होता है )

भावपूर्ण भाव से पूर्ण
बाणाहत बाण से आहत
हस्तलिखित हस्त से लिखित
बाढ़पीड़ित  बाढ़ से पीड़ित

 

( ग ) सम्प्रदान तत्पुरुष समास ( ‘ के लिए ‘ चिह्न का लोप )

गुरुदक्षिणा गुरु के लिए दक्षिणा
राहखर्च  राह के लिए खर्च
बालामृत बालकों के लिए अमृत
युद्धभूमि युद्ध के लिए भूमि

 

( घ ) अपादान तत्पुरुष समास ( ‘ से ‘ पृथक या अलग के लिए चिह्न का लोप )

देशनिकाला देश से निकाला
बंधनमुक्त बंधन से मुक्त
पथभ्रष्ट पथ से भ्रष्ट
ऋणमुक्त ऋण से मुक्त

 

( ड़ ) संबंध तत्पुरुष कारक ( ‘ का ‘ , ‘ के ‘ , ‘ की ‘ चिह्नों का लोप )

 

गंगाजल गंगा का जल
नगरसेठ नगर का सेठ
राजमाता राजा की माता
विद्यालय  विद्या के लिए आलय

 

( च ) अधिकरण तत्पुरुष समास ( ‘ में ‘ , ‘ पर ‘ चिह्नों का लोप )

जलमग्न जल में मग्न
आपबीती आप पर बीती
सिरदर्द सिर में दर्द
घुड़सवार घोड़े पर सवार

 

2. कर्मधारय समास karmdharay samas in Hindi

इस समास के पहले तथा दूसरे पद में विशेषण , विशेष्य अथवा उपमान – उपमेय का संबंध होता  है ।

जैसे-

समस्त पद विशेषण विशेष्य विग्रह
महापुरुष  महान है जो पुरुष
श्वेतपत्र  श्वेत है जो पत्र
महात्मा  महान है जो आत्मा
उपमेय – उपमान विग्रह
मुखचन्द्र  चन्द्रमा रूपी मुख
चरणकमल  कमल के समान चरण
विद्याधन  विद्या रूपी धन
भवसागर भव रूपी सागर

 

 

3. द्वन्द्व समास dvand samas in Hindi

इस समास में दोनों पद समान रूप से प्रधान होते हैं । इसके दोनों पद योजक – चिह्न द्वारा जुड़े होते हैं तथा समास – विग्रह करने पर ‘ और ‘ , ‘ या ‘ ‘ अथवा ‘ तथा ‘ एवं ‘ आदि लगते हैं ।

जैसे

समस्त पद समास विग्रह
 रात – दिन रात और दिन
सीता – राम सीता और राम
दाल – रोटी दाल और रोटी
माता – पिता माता और पिता
आयात – निर्यात आयात और निर्यात
हानि – लाभ हानि या लाभ
आना – जाना आना या जाना

 

4. द्विगु समास

इस समास का पहला पद संख्यावाचक अर्थात गणना – बोधक होता है तथा दूसरा पद प्रधान होता क्योंकि इसमें बहुधा यह जाना जाता है कि इतनी वस्तुओं का समूह है ।

जैसे

समस्त पद विग्रह 
नवरत्न नौ रत्नों का समूह
सप्ताह सात दिनों का समूह
त्रिलोक तीन लोकों का समूह
सप्तऋषि सात ऋषियों का समूह
शताब्दी सौ अब्दों ( वर्षों ) का समूह
त्रिभुज तीन भुजाओं का समूह
सतसई सात सौ दोहों का समूह

 

अपवाद – कुछ समस्त पदों में शब्द के अन्त में संख्यावाचक शब्दांश आता है , जैसे

पक्षद्वय दो पक्षों का समूह
लेखकद्वय दो लेखकों का समूह
संकलनत्रय तीन संकलनों का समूह

 

5. अव्ययीभाव समास

इस समास का पहला पद अव्यय होता है और उस अव्यय पद का रूप लिंग , वचन , कारक नहीं में नही बदलता वह सदैव एकसा रहता है । इसमें पहला पद प्रधान होता है । जैसे

यथाशक्ति शक्ति अनुसार
यथासमय समय के अनुसार
प्रतिक्षण हर क्षण
यथासंभव जैसा संभव हो
आजीवन जीवन भर
भरपेट पेट भरकर
आजन्म जन्म से लेकर
आमरण मरण तक
प्रतिदिन  हर दिन
बेखबर बिना खबर के

 

6. बहुब्रीहि समास

जिस समास में पूर्वपद व उत्तरपद दोनों ही गौण हों और अन्य पद प्रधान हों और उनके शाब्दिक  अर्थ को छोड़कर एक नया अर्थ निकाला जाता है , वह बहुब्रीहि समास कहलाता है । जैसे – लम्बोदर अर्थात् लम्बा है उदर ( पेट ) जिसका / दोनों पदों का अर्थ प्रधान न होकर अन्यार्थ ‘ गणेश ‘ प्रधान है ।

घनश्याम बादल जैसा काला अर्थात् कृष्ण
नीलकंठ नीला कंठ है जिसका अर्थात् शिव
दशानन दस आनन हैं जिसके अर्थात् रावण
गजानन गज के समान आनन वाला अर्थात् गणेश
त्रिलोचन तीन हैं लोचन जिसके अर्थात् शिव
हंस वाहिनी हंस है वाहन जिसका अर्थात् सरस्वती
महावीर महान है जो वीर अर्थात् हनुमान
दिगम्बर दिशा ही है वस्त्र जिसका अर्थात् शिव
चतुर्भुज चार भुजाएँ हैं जिसके अर्थात् विष्णु

 

प्राय : यह देखा जाता है कि कुछ समासों में कुछ विशेषताएँ समान पाई जाती हैं लेकिन फिर उनमें मौलिक अन्तर होता है । समान प्रतीत होने वाले समासों के अन्तर को वाक्य में भिन्न प्रयोग के कारण समझा जा सकता है । कुछ शब्दों में दो अलग – अलग समासों की विशेषताएँ दिखाई पड़ती हैं ।

कर्मधारय और बहुब्रीहि समास में अन्तर

कर्मधारय समास में दोनों पदों में विशेषण – विशेष्य तथा उपमान – उपमेय का संबंध होता है । लेकिन बहुब्रीहि समास में दोनों पदों का अर्थ प्रधान न होकर ‘ अन्यार्थ ‘ प्रधान होता है ।

जैसे – कमलनयन – कमल के समान नयन ( कर्मधारय ) कमल के समान है नयन जिसके अर्थात ‘ विष्णु ‘ अन्यार्थ लिया गया है ( बहुब्रीहि समास )

बहुब्रीहि व द्विगु समास में अन्तर

द्विगु समास में पहला पद संख्यावाचक होता है और समस्त पद समूह का बोध कराता है । लेकिन बहुब्रीहि समास में पहला पद संख्यावाचक होने पर भी समस्त पद से समूह का बोध न होकर अन्य अर्थ का बोध कराता है ।

जैसे – चौराहा अर्थात चार राहों का समूह ( द्विगु समास )

चतुर्भुज – चार हैं भुजाएँ जिसके ( विष्णु ) अन्यार्थ ( बहुब्रीहि समास )

संधि और समास में अन्तर

संधि में दो वर्गों का मेल होता है तथा संधि में दो या दो से अधिक शब्दों की कमी न होकर उनके निकट आने के कारण पहले शब्द की अन्तिम ध्वनि और दूसरे शब्द की आरम्भिक ध्वनि में परिवर्त आ जाता है , जैसे – ‘ लम्बोदर ‘ में ‘ लम्बा ‘ शब्द की अन्तिम ध्वनि ‘ आ ‘ और ‘ उदर ‘ शब्द की आरम्भिक  ध्वनि ‘ उ ‘ में ‘ आ ‘ व ‘ उ ‘ के मेल से ‘ ओ ‘ ध्वनि में परिवर्तन हो जाता है ।

किन्तु समास में ‘ लम्बोदर ‘ का अर्थ ‘ लम्बवत है उदर जिसका ‘ शब्द समूह बनता है । अतः समास शब्दों की संख्या कम करने की प्रक्रिया है ।

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