Prithviraj Raj Chauhan Biography in Hindi

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पृथ्वीराज III चौहान (चहमना) वंश के एक राजा थे जिन्हे पृथ्वीराज चौहान या राय पिथौरा के नाम से भी जाना जाता है, इन्होने अजमेर को अपनी राजधानी बनाया और इसके साथ साथ सपदलक्ष के क्षेत्र पर भी शासन किया था। पृथ्वीराज का राज्य उत्तर में थानेसर से दक्षिण में जाहजपुर (मेवाड़) तक फैला था, पृथ्वीराज चौहान ने  1191 ईस्वी में तराइन  के युद्व में मुहम्मद गोरी को बुरी तरह से हराया।

पृथ्वीराज चौहान का जीवन परिचय (Prithviraj Chauhan Biography in Hindi)

पूरा नाम पृथ्वीराज चौहान
अन्य नाम भरतेश्वर, पृथ्वीराज तृतीय, हिन्दूसम्राट, सपादलक्षेश्वर, राय पिथौरा
व्यवसाय क्षत्रिय
जन्मतिथि 1 जून, 1163
जन्म स्थान पाटण, गुजरात, भारत
मृत्यु तिथि 11 मार्च, 1192
मृत्यु स्थान अजयमेरु (अजमेर), राजस्थान
उम्र 43 साल
आयु 28 साल
राष्ट्रीयता भारतीय
धर्म हिन्दू
वंश चौहानवंश
जाति क्षत्रिय
वैवाहिक स्थिति विवाहित
पराजय मुहम्मद गौरी से

 

पृथ्वीराज चौहान का जन्म, परिवार एवं शुरूआती जीवन (Prithviraj Chauhan Birth, Family, Early Life)

पृथ्वीराज का जन्म चाहमान राजा सोमेश्वर और रानी कर्पूरादेवी (एक कलचुरी राजकुमारी) से हुआ था। पृथ्वीराज का जन्म ज्येष्ठ मास की 12वीं तिथि को हुआ था। दशरथ शर्मा के अनुसार पृथ्वीराज का जन्म 1166 सीई (1223 वी.एस.) में हुआ था। पृथ्वीराज विजया के अनुसार को पृथ्वीराज चौहान तृतीय को  6 भाषाओं में महारत हासिल की; पृथ्वीराज रासो का दावा है कि उन्होंने 14 भाषाएँ सीखीं थी

पृथ्वीराज चौहान तृतीय इतिहास, गणित, चिकित्सा, सैन्य, चित्रकला, दर्शन (मीमांसा), और धर्मशास्त्र सहित कई विषयों में पारंगत थे। और पृथ्वीराज चौहान तृतीय तीरंदाजी में कुशल थे. धरती के महान शासक पृथ्वीराज चौहान मात्र 11 वर्ष की आयु मे चौहान वंश के शासक बने, इन्होने अपने राज्ये का विस्तार किया इसके साथ ही ये एक बहुत कुशल शासक थे उन्होने अपने दायित्व अच्छी तरह से निभाए और लगातार अपने राज्य का विस्तार करते गए.

पिता सोमेश्वर
माता कर्पूरदेवी
भाई हरिराज (छोटा भाई)
बहन पृथा (छोटी बहन)
पत्नी 13
बेटा गोविंद चौहान
बेटी कोई नहीं

 

पृथ्वीराज चौहान के मित्र (Prithviraj Chauhan Friend)

तोमर वंस के शासक चंदरबरदाई पृथ्वीराज के बचपन के खास  मित्र थे इन्होने पृथ्वीराज का बहुत साथ दिया पृथ्वीराज इन्हे भाई से बढ़कर मानते थे. चंदबरदाई तोमर वंश के शासक अनंगपाल की बेटी के पुत्र थे. उन्होने पृथ्वीराज चौहान के सहयोग से पिथोरगढ़ का निर्माण किया, जो आज भी दिल्ली मे पुराने किले नाम से जाना जाता है. सन 1166 मे महाराज अंगपाल की मृत्यु के पश्चात पृथ्वीराज चौहान की दिल्ली की गद्दी पर राज्य अभिषेक किया गया और उन्हे दिल्ली का कार्यभार सौपा गया.

पृथ्वीराज चौहान और कन्नोज की राजकुमारी संयोगिता प्रेम कहानी (Prithviraj Chauhan and Sanyogita Story)

पृथ्वीराज चौहान और उनकी रानी संयोगिता की प्रेम कहानी राजस्थान में काफी पॉपुलर है। पृथ्वीराज चौहान और उनकी रानी संयोगिता एक दूसरे का चित्र देखकर ही एक दूसरे से प्रेम करने लग गए थे बिना मिले केवल चित्र देखकर एक दूसरे के प्यार मे मोहित हो गए थे. संयोगिता के पिता जयचंद्र पृथ्वीराज के साथ संयोगिता का विवाह नहीं करना चाहते थे संयोगिता के पिता पृथ्वीराज के साथ ईर्ष्या भाव रखते थे, जयचंद्र हमेशा पृथ्वीराज को नीचा दिखाने का मौका ढूंढते रहते थे, इसी कारण उन्हे अपनी पुत्री का स्व्यंवर किया. और इसके लिए उन्होने पूरे देश से राजाओ को आमत्रित किया, और पृथ्वीराज चौहान को नहीं किया. पृथ्वीराज चौहान को नीचा दिखाने के उद्देश्य से जयचंद्र ने स्व्यंवर मे पृथ्वीराज की मूर्ति द्वारपाल के स्थान पर रखी. पृथ्वीराज चौहान संयोगिता की इच्छा से स्वयंवर में से ही उसका अपहरण कर लिया और दिल्ली जाकर दोनों ने विधि विधान से शादी कर ली।

पृथ्वीराज चौहान की विशाल सेना (Prithviraj Chauhan’s Huge Army)

पृथ्वीराज की सेना में 300000 सैनिक और 300 से ज्यादा हाथी थे । पृथ्वीराज चौहान की सेना बहुत विशाल थी, पृथ्वीराज की सेना के बलबूते ही इन्होंने कई सारे युद्ध जीते इनकी सेना काफी शक्तिशाली थी। इसी सेना के बलबूते पृथ्वीराज चौहान ने अपने राज्यों का विस्तार किया। इन्होंने तराइन के प्रथम युद्ध में मोहम्मद गोरी को बुरी तरह से पराजित किया परंतु अंत मे कुशल घुड़ सवारों की कमी और जयचंद्र की गद्दारी और अन्य राजपूत राजाओ के असहयोग के कारण मुहम्मद गौरी से द्वितीय युध्द में हार गए.

पृथ्वीराज चौहान और मुहम्मद गौरी का प्रथम युध्द (तराइन का प्रथम युद्ध) (Prithviraj Chauhan and Mohammad Gauri 1st Fight)

पृथ्वीराज चौहान ने पंजाब राज्य पर अपना आधिपत्य स्थापित करने के लिए मोहम्मद गोरी के साथ युद्ध किया, पृथ्वीराज हमेशा ही अपने राज्य का विस्तार करने के बारे में कार्य करते रहते थे, उस समय पंजाब में मोहम्मद गौरी का शासन था , पृथ्वीराज चौहान ने इस युद्ध में सर्वप्रथम हांसी सरस्वती और सरहिंद पर अपना अधिकार कर लिया, पृथ्वीराज चौहान ने मोहम्मद गोरी को बुरी तरह से परास्त कर दिया, यह युद्ध तराइन के पास हुआ था इसलिए इसे तराइन का युद्ध भी कहा जाता है।

पृथ्वीराज चौहान और मुहम्मद गौरी का द्वितीय युध्द (तराइन का द्वितीय युद्ध) (Prithviraj Chauhan and Mohammad Gauri 2nd Fight)

सन 1192 में पृथ्वीराज चौहान और मोहम्मद गौरी के बीच में तराइन का दूसरा युद्ध हुआ जिसमें पृथ्वीराज चौहान की हार हुई, इस युद्ध में संयोगिता की जयचंद्र ने मोहम्मद गोरी का साथ दिया। इस युद्ध में हार के बाद में मोहम्मद गोरी ने पृथ्वीराज चौहान और उसके मित्र चंद्रवरदाई को अपने साथ ले गया। पृथ्वीराज चौहान और मोहम्मद गौरी का युद्ध तराइन के मैदान में हुआ था इसलिए इसे तराइन का दूसरा युद्ध कहते हैं

पृथ्वीराज चौहान की मृत्यु (Prithviraj Chauhan Death)

मोहम्मद गोरी ने पृथ्वीराज को बंदी बनाकर अपने राज्य ले आया था जहां पर उन्होंने पृथ्वीराज चौहान की आंखों को लोहे के गर्म शरीर से जला दिया था और पृथ्वीराज चौहान की नजर छीन ली थी। आखिर में जब पृथ्वीराज से उनकी आखिरी इच्छा पूछी गई तो उन्होंने चंद्रवरदाई की शब्दों पर शब्दभेदी बाण का उपयोग करने की इच्छा जाहिर की, और इसी शब्दभेदी बाण से पृथ्वीराज चौहान ने मोहम्मद गोरी की भरी सभा में हत्या कर दी, और बाद में पृथ्वीराज चौहान और चंद्रवरदाई ने भी स्वयं को समाप्त कर लिया। पृथ्वीराज की मृत्यु की खबर सुनकर संयोगिता ने भी अपने आप को समाप्त कर लिया।

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