medicinal plants

Medicinal plants in India , औषधीय पौधों के नाम और उपयोग Medicinal plants names and Benefit

सोनागुखी / रानाय – केसिया अस्टिफोलीया

उपयोगी भाग- पत्तियां एवं फली

  • यह बहुवर्षीय पौधा है जो एक बार बुआई के बाद 4-5 वर्ष तक फल देता है ।
  • उष्ण जलवायु का पौधा 40-50 ° C तापमान सहन कर लेता है ,
  • उपयोगी तत्व – सोनासाइनु पाया जाता है ।
  • यह एक विरेचक एवं पेट की दवाईयां बनाने में इसकी पत्तियां काम में आती है ।
  • राजस्थान में जालौर , पाली , जोधपुर , बाड़मेर में प्रमुखतः उगाया जाता है । तथा उत्तरी – पूर्वी राजस्थान में व्यावसायीक खेती की जाती है ।
  • बीज दर – 10-15 ko / ha तथा पौधे से पौधे की दूरी 30×30 सेमी . रखते है ।
ईसबगोल – ( प्लेंटैगो ओक्टा )

  • कुल- प्लान्टेजिनेसी
  • उपयोगी भाग भूसी एवं बीज
  • औषधिय तत्व- म्यूसीलेज जो छिलके में पाया जाता है ।
  • बीज एवं भूसी पेट की सफाई , कब्ज निवारक , अल्सर , बवासीर तथा आँत के रोगों की औषधि बनाने में काम आती है ।
  • यह नगदी एंव औषधीय फसल है ।
  • ईसबगोल की भूसी जिसकी मात्रा बीज के भार में 30 प्रतिशत होती है । जो बीज से ज्यादा उपयोगी होता है ।
  • जालौर में सर्वाधिक उत्पादन होता है ।
  • विश्व में सर्वाधिक उत्पादन एवं निर्यातक देश भारत है ।
  • जलवायू – ठण्डा एवं शुष्क उपयुक्त है ।
  • किस्में – गुजरात ईसबगोल -1,2 व ट्राबें सलेक्सन
  • बीज दर . सामान्य बुआई हेतु 4-5kg / ha
  • देरी से बुआई के लिए 75-10kg / ha उपज 9-10qt./ha .
अश्वगन्धा – विथानिया सोमनिफेरा , सोलेनेसी जडे

  • प्रवर्धन -बीज द्वारा .
  • औषधीय पदार्थ विथेनिन , सोमनीन एल्केलायड पाये जाते है ।
  • राजस्थान में नागौर , कोटा व झालावाड़ जिलों में प्रमुखत होती है ।
  • इसका प्रयोग शक्तिवर्धक औषधी के रूप में किया जाता है ।
  • घोड़े के मुत्र के समान गन्ध आने से अश्वगंधा नाम पड़ा है ।
  • बीज दर – 8-10 kg / ha
सर्पगंधा ( राउल्फिया सन्टिना ) , एपोसाइनेसी

  • उपयोगी माग- जड़
  • औषधिय तत्व – सर्पेन्टाइन , रिसरपाईन
  • यह निद्राजनक , विषहरण रक्त शोधक , उच्च रक्त चाप में प्रभावी लिलिएसी औषधी है ।
ग्वारपाठा – ( एलोवेरा ) वा एलोय बारबेडेन्सिस ,

  •  उपयोगी भाग – ताजा पत्तियां
  • यह एक मरुद्भिद / Xerophyte ) या मांसल पौधा है ।
  • औषधीय पदार्थ एलोइन व बारबेलोइन नामक ग्लुकोसाइड
  • औषधीय गुणों में तथा सौन्दर्य निखारने वाले प्रसाधन सामग्री में काम आता है ।
  • प्रर्वधन – पुकन्द ( Rhizomes ) द्वारा किया जाता है तथा रोपण कार्य जून – जुलाई किया जाता है ।
सफेद मूसली – क्लोरोफायटम बोरीविलिएनम ,

  • कुल – लिलिएसी
  • उपयोगी भाग – कदिल जड़े .
  • यह एक वर्षीय शाकीय पौधा है जिसके पौधों की जड़े कंद में परिवर्तित हो जाती है ।
  • उपयोग – सफेद मुसली को दूसरी शिलाजीत की संज्ञा दी गई है ।
  • यह पुरूषों में शिथिलता दूर करने तथा महिलाओं में ल्यूकोरिया रांग की रोकथाम हेतु प्रभावी औषधि है ।
  • यह प्रसव बाद स्त्रीयों में दूध की मात्रा बढ़ाने में भी सहायक है । औषधीय महत्व का पदार्थ- सेपोनिन जलवायु – सफेद मूसली खरीफ ऋतु का पौधा है ।
  • प्रर्वधन -4 से 6 क्विंटल कन्द / हेक्ट . प्रर्याप्त है , जिन्हे जड़ या फिगर्स भी कहते है ।
स्तनजोत / होहोबा ( जेट्रोपा करकस ) ,

  • कुल- युफोरबिएसी
  • इसका पौधा अरण्डी के समान आकार का होता है । तथा फल का प्रकार केप्सूल है , जिसमें 3-4बीज होते है ।
  • उपयोग– रतनजोत के बीजों में 30 % तेल पाया जाता है , जिससे बायो डीजल | Bio – diesel ] बनाया जाता है । तथा इसके तेल का प्रयोग केन्सर प्रतिरोधी औषधियों में करते है ।
  • बीज दर – 15- बीज / हैक्ट या 2500 पौधे / हैक्ट . याप्त है ।
  • भूमी- बंजर भूमी उपयुक्त है ।
  • यह दक्षिणी राजस्थान के अरावली भु भाग में पाया जाता है ।

दाना मेथी का उपयोग और फायदे

गुग्गल / कोलिफोरा मुकुल , कुल- बुरसेरेसी

  • उपयोगी भाग- गोंद / रेजिन
  • यह उष्णकटिबन्धीय पौधा है तथा शुष्क मरूस्थलीय जलवायु उपयुक्त है ।
  • मोटापा घटाने में ( Obesity treatment ) में सहायक है । इसके अलावा प्रमेह , गंगरोग , हृदय रोग में प्रभावी है
  • प्रवर्धन – कलम द्वारा या बीज द्वारा भी किया जा सकता है ।
  • गोंद निकालना 4 से 5 वर्ष की आयु पर पौधे के तने पर 3 -4 चीरा लगाते है । जिससे प्रति पौधा 100 प्राप्त होता है ।
अफीम ( पेपेवर सोमिनीफेरम ) , पेयेवेरसी

  • उपयोगी भाग – फल ( डोडा ) व लेटेक्स
  • औषधीय रसायन मार्फिन , कोडिन , नारकोटीन
  • इससे हेरोइन नामक ड्रग भी बनाई जाती है ।
  • उपयोग दर्द निवारक ( उत्तेजक के रूप में ) , ल्यूकेमीया का उपचार
  • तथा अफिम निद्रा का भगवान ( God of sleep ) कहलाती है ।
नीम – ( एजाडिरेक्टा इंडिका ) , मिलिऐसी

  • यह सामाजिक व वानिकी का महत्वपूर्ण पौधा है ।
  • उपयोगी भाग – पत्तियाँ व बीज ( निम्बोली )
  • औषधीय तत्व– एजारेक्टीन व निम्बिडिन
  • प्रर्वधन बीज द्वारा
  • बलूई दोमट मृदा उपयुक्त है ।
  • इसे 21 वीं सदी का वृक्ष भी कहते है ।
  • नीम के विभिन्न भागों से कीटनाशक दवा तैयार की जाती है । जिसमें ऐजाडिरेक्टीन , निमोलीन अवयव एंव नीम की खली प्रमुख है ।
  • नीम की निम्बोली ( बीज ) में 40-50 % तेल एवं 0.3 % एजाडिरेक्टीन तत्व पाया जाता है ।

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