प्रोटोजोआ का आर्थिक महत्व, economic importance of protozoa, protozoa in hindi
Economic Importance of Protozoa प्रोटोजोआ अकोशिकीय व सूक्ष्मदर्शिक (microscopic) प्राणियों का समूह है । ये जीव पृथ्वी की सभी आवासीय परिस्थितियाँ जल , थल , वायु , प्राणियों तथा पादपों की देह के भीतर परजीवी या सहजीवी । रूप में रहते हैं ।
इक्कीसवीं सदी ( 21 century ) के भीतर जीवन यापन करने वाले मनुष्य के लिये इनका महत्त्व नगण्य होना चाहिये किन्तु ये अत्यन्त छोटे व अमहत्वपूर्ण दिखाई देने वाले जन्तु वास्तव में मनुष्य के लिये ही नहीं पूरे प्राणी जगत् के लिये महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं । यद्यपि इनके हानिकारक व लाभकारी प्रभाव देखने को मिलते हैं किन्तु व्यापक स्तर पर अध्ययन करने पर इन्हें हम लाभदायक अधिक व हानिकारक कम पाते हैं ।
लाभदायक प्रोटोजोआ (Beneficial Protozoans)
प्रोटोजोआ का मानव व अन्य प्राणि समुदायों पर लाभदायक प्रभाव के अध्ययन हेतु हम इनका निम्न बिन्दुओं के अन्तर्गत अध्ययन करते हैं
1. स्वच्छता में सहायक (Helpful in Sanitation)
प्रोटोजोआ की अनेक जातियाँ स्वच्छ जल में रहती हैं एवं प्राणिसमपोषी ( holozoic ) विधि से जल में रहने वाले जीवाणुओं का भक्षण करती हैं । इस प्रकार अप्रत्यक्ष तौर पर ही सही ये जलाशयों के जल को पीने योग्य बनाये रखती हैं । इस प्रकार ये जल में प्रदूषण के स्तर को घटाते हैं , अतः मनुष्य व अन्य जीवों हेतु यह जल शुद्ध एवं उपयोगी बना रहता है ।
2. आहार के रूप में (AS Food)
स्वच्छ व समुद्री जल में अनेक प्रोटोजोआ रहते हैं । ये जल में तैरते हुए अनेक जन्तुओं , इनके लार्वा आदि का भोजन बनते हैं । इन्हें भक्षण करने वाले जन्तु फिर सीलेन्ट्रेटस , क्रस्टेशियन्स , कृमियों , मछलियों व स्तनियों को भोजन बनते हैं । इस प्रकार प्लकीय व तलीय प्रोटोजोआ परोक्ष व अपरोक्ष रूप से निम्न स्तर के प्राणियों से लेकर उच्च स्तर के प्राणियों का आहार बनते हैं ।
कुछ प्रोटोजोआ में क्लोरोफिल ( chlorophyll ) पाया जाता है , ये प्रकाश संश्लेषण द्वारा स्वय के लिये पोषक पदार्थ संश्लेषित करते हैं । ये भी कीटों , झीगों , मछलियों आदि का भोजन बनते हैं जिन्हें मनुष्य अपने भोजन के रूप में ग्रहण करता है । इस प्रकार से खाद्य श्रृंखला में प्रथम स्थान रखते
3. सहभोजी प्रोटोजोआ (Symbiotic Protozoans)
अनेक प्रोटोजोआ अन्य परपोषियों की देह के भीतर या बाहर रहते हैं । इस प्रकार इनमें बना सम्बन्ध दोनों प्राणियों के लिये लाभकारी होता है । इनका पर निर्भर होते हैं । यदि इन्हें अलग – अलग रहने हेतु बाध्य किया जाये तो इनकी मृत्यु हो जाती है । अन्त सहभजी प्रोटोजोआ के उदाहरण के रूप में ट्राइकोमोनाज ( Trichomonas ) , जियार्डिया
( Balantidium ) तथा ओपेलाइना ( Opalina ) आदि हैं जो मानव , मेंढक , तिलचट्टा आदि की आहार ( Giardia ) , एटअमीबा कोलाई ( Entamoeba col ) , निक्टोथीरस ( Nicrotherss ) , बैलेन्टीडिया बैलेन्टीडियम कोलाई ( Balantidium coli ) नामक प्रोटोजोआ रहता है जो हानिकारण जीवाणुओं को नाल में पाये जाते हैं । ये वहाँ रहने वाले जीवाणुओं का भक्षण करते हैं ।
मनुष्य की वृहदान्त्र में अनेक बाह्य सहभोजी प्रोटोजोआ जिनमें सिलिएट्स व सक्टोरियन्स आते हैं मॉलस्क , आशापोड्स मछलियों व मेंढ़कों की देह पर पाये जाते हैं । दाइकोनिम्फा व कोलोनिम्फा दीमक व तिलचट्टे की आन्त्र में पाये जाते हैं व सेल्यूलोज ( cellulose ) को पचाकर ग्लूकोज में परिवर्तित कर देते हैं । ये अपना भोजन बनाता है । सहजीवी ( commensal ) प्रोटोजोया हैं ।
(4) महासागरीय पंक एवं जीवाश्मीय प्रोटोजोआ (Oceanicooze and Fossil Protozoans)
रेडिओलेरिया ( Radiolaria ) , फोरैमिनीफेरा ( Foraminifera ) व हेलिओजोआ ( Heliozoa ) समुद्री प्रोटोजोमा की देह पर सिलिका या कैल्शियम कार्बोनेट का बना कंकाल पाया जाता है । इन जन्तुओं की मृत्यु होने पर इनके कंकाल समुद्र के तल पर बैठ जाते हैं । इनसे बना ढेर या कोमल कीचड़ समुद्री पंक (oceanic ooze) कहलाता है ।
लाखों वर्षों से एक के ऊपर एक पर्ते बनने से ये चट्टानों में परिवर्तित हो गये हैं । इन चट्टानों में तत्कालीन प्राणियों के अवशेष जीवाश्म ( fossils ) के रूप में पाये जाते हैं । इनके दो लाभ
(i) व्यवसायिक लाभ business profit
इनसे निस्पंदन कारक , अपघर्षक (abrasive) , चॉक , भवन निर्माण हेतु पत्थर आदि प्राप्त होते हैं । ड्रॉवर इग्लैण्ड की तटवर्ती चट्टानें , पेरिस , काहिरा व उत्तरी अमेरिका की पथरीली तलहटियाँ फौरमिनिफेरा के कंकाल से ही बनी हुयी हैं । पेरिस की अनेक इमारतें भी इन्हीं के पत्थरों से निर्मित हैं ।
मिस्त्र के पिरेमिड न्यूमूलाइट्स ( Numulites ) फोरेमिनिफेरा के कंकाल से बनाये गये हैं । फ्लिन्ट व चर्ट प्रकार की कठोर चट्टानों में रेडियोलेरियन्स के कंकालों का बाहुल्य पाया जाता है । ट्रिपोली पत्थर ( Tripoli stone ) जो पालिश करने के काम आता है , के चूर्ण या पाऊडर ( powder ) में भी रेडिओलेरियन्स के कंकाल होते हैं । इन प्रोटोजोआ कंकालों का चूर्ण जल को छानने ( filter ) की सामग्री बनाने में भी काम में लाया जाता है ।
फोरामिनिफेरा व रेडियोलेरिया के कंकाल अधिकतर तेल के भण्डारों के समीप पाये जाते हैं । अतः इनकी उपस्थिति जिस क्षेत्र में पायी जाती है वहाँ तेल ( fuel ) के भण्डारों की खोज में सहायता मिलती है ।
( ii ) जीवाश्म जो इन चट्टानों में मिलते हैं जीवों के उद्भव , उस काल की परिस्थितियाँ व वातावरण के बारे में उपयोगी ज्ञान उपलब्ध कराते हैं ।
5. अध्ययन में प्रोटोज़ोआ (Protozoa in Study)
प्रोटोजोआ सरल व आदिम प्रकार के जीव हैं , ये एक कोशिकीय होते हैं । इनकी संरचना व कार्यिकी के अध्ययन से अनेक गूढ़ सिद्धान्तों को समझने में सहायता मिलती है । ये सूक्ष्म आमाप के होते हैं , जल्दी – जल्दी प्रजनन कर कम समय में अनेक संततियाँ उत्पन्न करते हैं अतः आनुवंशिकी व विविधताओं ( variations ) के प्रयोगों हेतु इन्हें प्रयोगशालाओं में अध्ययन हेतु प्रयुक्त किया जाता है ।
भूगर्भ विज्ञान व जीवाश्मीय विज्ञान (Geology and Paleontology) के छात्रों के अध्ययन हेतु ये महत्वपूर्ण सामग्री होते हैं । इन्हीं प्राणियों से बहुकोशीय (metazoa) का विकास हुआ है , अतः जीवों की उत्पत्ति व विकास के अध्ययन के क्षेत्र में इनसे सहायता प्राप्त होती है इन्हें जैववैज्ञानिक एवं औषधीय शोध कार्यों हेतु भी प्रयुक्त किया जाता है ।
6. कीट नियन्त्रण (Insect control)
– कुछ प्रोटोजोआ अनेक कीटों की देह में परजीवी के रूप में रहते हुए इन्हें हानि पहुंचाकर इनकी संख्या को नियन्त्रित रखते हैं।
हानिकारक प्रोटोजोआ (Harmful Protozoa)
(1) मृदा की उर्वरकता घटाना (Reduction in Soil Fertility)
मृदा में 200-300 जातियों के प्रोटोजोआ पाये जाते है जिसमें सीलिएटुस , फ्लैजिलेट्स व राइजोपोड्स अधिक हैं । ये मृदा में रहने वाले नाइट्रोजन स्थिरीकरण करने वाले जीवाणुओं ( nitrogen fixing bacteria ) का भक्षण करते हैं । इस प्रकार इन जीवाणुओं की सक्रियता घट जाती है अतः मृदा में नाइट्रेट्स की कमी होती है जिससे मृदा की उर्वरक शक्ति का ह्यस होता है ।
(2) जल प्रदूषण Water Pollution
मल में पाये जाने वाले प्रोटोजोआ उस पीने योग्य जल को संदूषित ( contaminate ) कर देते हैं जहाँ ये पाये जाते हैं । इसी प्रकार कुछ मुक्तजीवी प्रोटोजोआ जलाशयों के सम्पर्क में आकर इनके जल को खराब कर देते हैं । इनमें यूरोग्लेनोप्सिस ( Uroglenopsis ) प्रमुख है जो जल में दुर्गन्ध युक्त एरोमेटिक पदार्थ ( aromatic substance ) स्त्रवित कर इसे प्रदूषित कर देता है ।
बारिया ( Bursaria ) जल में कीचड़ जैसी गन्ध उत्पन्न कर देता है तथा पेरिडिनियम (Peridinium ) जल में सीपियों के कवच की गन्ध उत्पन्न कर उस जल को पीने योग्य नहीं रहने देते जिसमें ये पाये जाते हैं । समुद्री जल में रहने वाले जैव संदीप्त डाइनोफ्लेजिलेट नॉक्टील्यूका ( Noctiluca ) , जिम्नोडीनियम ( Gymmodinium ) व गोनियौलेक्स ( Gonyaular ) कभी – कभी जल में इतने अधिक हो जाते हैं कि जल का रंग ही लाल दिखाई देने लगता है , इसे ब्लूमिंग ( blooming ) कहते हैं ।
समुद्री जल इस प्रकार गन्दा व दुर्गन्ध युक्त हो जाता है । इनके कारण क्लैम , ऑयस्टर , सीपियाँ व मछलियाँ जो मनुष्य का भोजन होते हैं विषाक्त हो जाते हैं । इन प्राणियों की मृत्यु अधिक संख्या में होने लगती है । इस प्रकार समुद्री भोज्य पदार्थ नष्ट हो जाते हैं ।
(3) रोगजनक प्रोटोजोआ Pathogenic Protozoa
प्रोटोजोआ संध के सभी वर्गों में रोग उत्पन्न करने वाले प्राणी पाये जाते हैं , किन्तु फ्लैजिलेटा तथा स्पोरोजोआ वर्गों में इनकी प्रमुखता होती मनुष्य में ही लगभग 25 से अधिक प्रोटोजोआ परजीवी पाये जाते हैं जिनमें विभिन्न प्रकार के अमीबा , कशाभी , पक्ष्माभी तथा स्पोरोजोआ प्राणी शामिल हैं।
इनमें से कुछ तो बिल्कुल ही हानिकारक नहीं होते कुछ प्रोटोजोआ मनुष्य के जबकि अन्य कुछ कई प्रकार के घातक रोगों के लिए उत्तरदायी होते हैं । अतिरिक्त अन्य प्राणियों में भी परजीवी अवस्था में रहते हुए रोग उत्पन्न कर सकते हैं । चूंकि रोग उत्पन्न करने वाले प्राणी सामान्यतः परजीवी होते हैं अतः इस अध्याय में मुख्यतः परजीवी प्रोटोजोआ प्राणियों की गतिविधियों पर ही ध्यान दिया गया है ।
प्रोटोजोआ क्या है what is protozoa
- प्रोटोजोआ में एक कोशिकीय जीव को रखा जाता है।
- प्रोटोजोआ में आने वाले जंतु एक केंद्रीय या बहूकेंद्रीय विषमपोषी होते हैं।
- प्रोटोजोआ नाम गोल्डफस ने दिया था
- इसकी कोशिका यूकैरियोटिक प्रकार की होती है।
- प्रोटोजोआ जनन, पाचन, श्वसन तथा उत्सर्जन के कार्य करते है।
- प्रोटोजोआ उत्तक हीन होते हैं और इन्हें नग्न आंखों से नहीं देखा जा सकता ।
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