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हेमीकॉर्डेटा के लक्षण, वर्गीकरण एवं प्रकार Characteristics, classification and types of Hemichordata in Hindi

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हेमीकॉर्डेटा के लक्षण, वर्गीकरण एवं प्रकार Characteristics, classification and types of Hemichordata in Hindi

हेमीकॉडेंट जन्तुओं का ‘अकशेरुकी कॉडेंट’ (invertebrate chordates) की भाँति वर्णन किया जाता है। कृमि तुल्य और छिछले समुद्र की तली में वास करने वाले जन्तुओं का यह संघ कॉर्डेट जन्तुओं का निकट सम्बन्धी समझा जाता है। इनका कॉर्डेट जन्तुओं के साथ सम्बन्ध इनमें पाये जाने वाले गिलछिद्रों और कथित पृष्ठरज्जु (notochord) की उपस्थिति के आधार पर था।

अब सामान्य रूप से सहमति हो गई है कि हेमीकॉर्डेट जन्तुओं का पृष्ठरज्जु न तो कॉर्डेट जन्तुओं में मिलने वाले पृष्ठरज्जु के समरूप (analogous) हैं और न समजात (homologous) हैं। दोनों समूहों में ग्रसनी छिद्रों के होने की समानता के अलावा दोनों एक दूसरे से भिन्न हैं। अतः हेमीकॉर्डेट जन्तुओं को कॉर्डेट जन्तुओं से अलग करके एक अलग संघ में रख दिया गया है।

हेमीकोर्डेटा के सामान्य लक्षण Common symptoms of hemichordata

(1) एकल या निवही, अधिकतर, नलिकावासी, नितांत समुद्रवासी।

(2) शरीर कोमल, भंगुर (fragile), कृमिरूप, अखण्डित, द्विपार्श्व सममित और त्रिजनस्तरी ।

(3) शरीर तीन विशिष्ट भागों शुण्ड (proboscis), कॉलर (collar), एवं धड़ (trunk) में विभाज्य ।

(4) शरीर भित्ति में एपिडर्मिस की केवल एक तह जिसमें श्लेष्म ग्रन्थियाँ होती हैं। चर्म का अभाव।

(5) प्रगुहा आँत्रगुहीय और शरीर के तीनों भागों के अनुसार अग्रगुहा, मध्यगुहा तथा पश्चगुहा में विभाज्य ।

(6) आहार नाल सम्पूर्ण और सीधी या ‘यू’ आकार नली के रूप में।

(7) पहिले ‘पृष्ठरज्जु’ समझी जाने वाली खोखली ‘मुख-अन्धवर्ध’ (buccal diverticulum) शुण्ड में उपस्थित।

(8) पृष्ठ-पार्श्व क्लोम छिद्र उपस्थित होने पर इनकी एक या कई जोड़ी। पार्श्व-निस्पंदन अशनी।

(9) परिसंचरण तंत्र (circulatory system) सरल और खुले प्रकार का, जिसमें एक केन्द्रीय कोटर, एक स्पंदनशील हृदय आशय और पार्श्व वाहिकाओं एवं कोटरों द्वारा परस्पर सम्बन्धित एक पृष्ठ एवं एक अधर दो अनुदैर्ध्य वाहिकाएँ।

(10) उत्सर्जन क्रिया शुण्ड में स्थित एकमात्र शुण्ड ग्रन्थि या रुधिर वाहिनियों से जुड़े केशिकागुच्छ (glomerulus) द्वारा।

(11) तन्त्रिका तन्त्र आदिकालीन, जिसमें मुख्यतया एक अन्तः एपिडर्मी तन्त्रिका जाल होता है । पृष्ठ कॉलर तन्त्रिका रज्जु खोखला।
(12) जनन-क्रिया अधिकतर लैंगिक । नर एवं मादा लिंग पृथक् । एक या कई जोड़ी जनन ग्रन्थियाँ ।

(13) निषेचन बाह्य, समुद्र जल में परिवर्धन एक स्वतन्त्र प्लावी टॉर्नरिआ (tornaria) लार्वा द्वारा, अधिकतर अप्रत्यक्ष ।

हेमीकॉर्डेटा का वर्गीकरण

हेमीकॉर्डेटा (Hemichordata) संघ में लगभग ज्ञात 120 जातियाँ सम्मिलित हैं, जिन्हें साधारण रूप से निम्नलिखित दो वर्गों एन्टेरोप्न्यूस्टा (Enteropneusta) और टेरोब्रेकिआ (Pterobranchia) में समूहित किया गया है। इन वर्गों के अलावा दो वर्ग और बाद में सम्मिलित किए गए हैं।

वर्ग 1. एन्टेरोप्न्यूस्टा (Enteropneusta)

(Gr., enteron, gut = आहार नाल + pneustos, breathed = श्वासित)

(1) एकल, मुक्तप्लावी या बिलकारी जन्तु, जिन्हें प्रायः ओक-फल ‘ऐकोर्न’ या ‘जिह्वा-कृमि’ कहा जाता है।

( 2 ) शरीर लम्बा, कृमिरूप और अवृंत ।

(3) शुण्ड बेलनाकार और पीछे से आगे को नुकीली ।

(4) कॉलर में पक्ष्माभित भुजाओं का अभाव ।

(5) आहार नाल सीधी और मुख एवं गुदा विपरीत सिरों पर निस्यंदन अशनी।

(6) ‘यू’ आकार के गिल-छिद्र कई जोड़ी।

(7) नर और मादा लिंग पृथक्, जनन ग्रन्थियाँ अनेक और कोष के समान ।

(8) परिवर्धन में एक स्वतन्त्र प्लावी टॉर्नेरिआ लारवा पाया जाता है। अलैंगिक जनन का अभाव।

उदाहरण बैलैनोग्लोसस (balanoglossus), सैकोग्लोसस (Saccoglossus) या
डोलिकोग्लॉसस (Dolichoglossus), प्रोटोग्लोसस (Protoglossus), टाइकोडेरा (Ptychodera), स्पेन्जीलिआ (Spengelia), इत्यादि ।

वर्ग 2. टेरोब्रैंकिया (Pterobranchia)

(Gr., pteron, feather = पर + branchian, gill = गिल)

(1) एकल या निवही अवृंत और नलिकावासी जन्तु ।

(2) शरीर छोटा संहत, आधार पर चिपकने के लिए वृंत

(3) ढाल तुल्य शुण्ड ।

(4) कॉलर में पक्ष्माभित भुजाएँ ।

(5) आहार नाल ‘यू’ – आकार की मुख और गुदा एक ही सिरे पर आस-पास स्थित । पक्ष्माभी अशन।

(6) केवल एक जोड़ी गिल-छिद्र या अनुपस्थित, कभी भी ‘यू’ आकार नहीं।

(7) नर एवं मादा लिंग पृथक या संयुक्त जनन-ग्रन्थि केवल एक या एक जोड़ी।

(8) परिवर्धन प्रत्यक्ष या स्वतंत्र प्लावी लार्वा अवस्था उपस्थित, एकलिंगी जनन मुकुलन द्वारा।

गण 1. रैब्डोप्ल्यूराइडा (Rhabdopleurida)

(1) निवही, जीवाभ देहाँकुर द्वारा परस्पर जुड़े।

(2) कॉलर में दो स्पर्शक युक्त भुजाएँ।

(3) गिल छिद्रों का अभाव ।

(4) केवल एक जनन ग्रन्थि ।

उदाहरण : केवल एक वंश रैब्डोप्ल्यूरा

गण 2. सेफैलोडिस्सीडा

(1) एकल या कितने ही प्राणी एक सामान्य जिलेटनी कोष में स्थित, परन्तु परस्पर सम्बद्ध नहीं ।
(2) कॉलर में कई स्पर्शकयुक्त भुजाएँ।
(3) केवल एक जोड़ी गिल-छिद्र ।
(4) एक जोड़ी जनन-ग्रन्थियाँ ।

उदाहरण : सेफैलोडिस्कस, ऐटुबैरिआ (Atubaria) |

वर्ग 3. प्लैंक्टोस्फीरॉइडिया (Planetosphaeroidea)

इस वर्ग को कुछ छोटे-छोटे, गोलीय, पारदर्शीय और बेलापवर्ती लाखों द्वारा निरूपित किया जाता है। इन लाखों को किसी अज्ञात हेमीकॉर्डेट जन्तु के विशेष प्रकार के टॉर्नेरिआ लावे समझा गया था जिन्हें प्लैन्कटोस्फीरा पेलैजिका कहा गया। इस लारवे के शरीर पर अत्यन्त शाखित पक्ष्माभी पट्टियाँ होती है और इसकी आहार नाल ‘एल’ (L) आकार होती है।

वर्ग 4. ग्रैप्टोलिटा (Graptolita)

जीवाश्म ग्रेप्टोलिट जन्तु जैसे डेन्ड्रॉग्रैप्टस, ओर्डोवीसियन (Ordovician) एवं साइलूरिअन (Silurian) काल में अधिक थे और इन्हें प्रायः हेमीकॉर्डटा के विलुप्त वर्ग में रखा गया है। इस वर्ग के जन्तुओं के नली आकार काइटिनी कंकाल और निवही स्वभाव रैब्डोप्ल्यूरा से बन्धुत्व प्रकट करते हैं।

कुछ अन्य हेमीकॉर्डेट प्रकार (SOME OTHER HEMICHORDATE TYPES)

1. सैकोग्लोसस या डॉलिकोग्लोसस (Saccoglossus or Dolichoglossus)

यह एक विशिष्ट एन्टेरोप्न्यूस्ट वंश का जन्तु है, जो स्वभाव, आवास और संरचना में बैलेनोग्लोसस के अत्यधिक समान है। यह एक समुद्रवासी, पतला-दुबला कोमल शरीर वाला, नलीवासी, जिह्वा कृमि है और सर्पिल ऐंठनदार बिलों में रहता है। इसके शरीर में तीन सामान्य भाग, शुण्ड, कॉलर और धड़ होते हैं।

अन्य जिह्वा कृमियों की अपेक्षा इसका शुण्ड अधिक लम्बा और नुकीला होता है। कॉलर का पिछला घेरा (rim) धड़ के अग्र भाग के 3 या 4 जोड़ी गिल रन्ध्रों को ढकता हुआ आच्छद (operculum) की भाँति होता है। जनन पंख और यकृत अंधनालें, जो बैलैनोग्लोसस में सुविकसित होती हैं, इसमें उनका अभाव होता है। नर में परिपक्व जनन ग्रन्थियाँ पीली और मादा में धूसर (grey) होती हैं।

इनकी स्थिति धड़ के मध्य भाग में पृष्ठपार्श्व जननिक बलों द्वारा बाहर से ही स्पष्ट प्रकट होती है। पटबंधों (synapticula) का अभाव होने के कारण जिह्वा छड़ें (tongue bars) अपने-अपने गिल छिद्र में स्वतन्त्रतापूर्वक लटकी रहती हैं। परिवर्धन प्रत्यक्ष होता है और इसमें मुक्तप्लावी टॉर्नेरिआ लावे का अभाव होता है। यह विश्वव्यापी है। सैकोग्लोसस पाइम्मीअस (Saccoglossus pygmaeus) की लम्बाई 2 या 3 सेमी होती है और यह एन्टेरोप्न्यूस्टा की सबसे छोटी जाति होती है।

2. राइकोडेरा (Prychodera)

यह वंश भी पारिस्थितिक रूप से, संरचना अनुसार और भ्रौणिक रूप से बैलेनोग्लोसस के साथ निकट की समानता प्रकट करता है तथा इसका शुण्ड और कॉलर कुछ छोटे होते हैं परन्तु इनके धड़ भाग में स्पष्ट जननिक पंख और यकृत कोषरचनायें (hepatic sacculations) होती हैं। परिवर्धन अप्रत्यक्ष होता है और एक मुक्तप्लावी टॉर्नेरिआ लाखा पाया जाता है।

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