समस्या समाधान विधि problem solving method in Hindi
समस्या समाधान विधि एक ऐसी तकनीक है, जिसके द्वारा विद्यार्थी स्वतंत्र रूप से अथवा अध्यापक के निर्देशन से किसी समस्या का समाधान कर सकते हैं। इसके लिए उन्हें कुछ विशिष्ट चरणों का अनुसरण करना पड़ता है। जब इस विधि का प्रयोग किया जाता है तो किसी समस्या से आरम्भ किया जाता है। विद्यार्थियों के समक्ष समस्या रखी जाती है तथा उन्हें कुछ संभावित हल ढूंढने को कहा जाता है। विद्यार्थी अपने पूर्वज्ञान के आधार पर कुछ परिकल्पनाएं बनाते हैं तत्पश्चात विद्यार्थी उस समस्या के सर्वाधिक सही उत्तर का पता लगाते हैं। इस हेतु विद्यार्थी स्व-अध्यापन करते हैं और परस्पर चर्चा करते हैं (अध्येता-अध्येता अंतः क्रिया) तथा अध्यापक से भी चर्चा करते हैं (अध्यापक-अध्येता अंतःक्रिया) –
समस्या समाधान की कार्यविधि problem solving method
अध्यापक को समस्या समाधान विधि में कुछ विशेष क्रमबद्ध प्रक्रियाओं से गुजरना होता है। ये निम्न है
- समस्या की पहचान- छात्र एक समस्या, कठिनाई तथा प्रश्न देखते हैं जिसका उत्तर वे नहीं जानते हैं। एक अच्छी समस्या विषय के सैद्धान्तिक एवं व्यावहारिक ज्ञान से प्राप्त होती है। इस प्रकार की समसया की पहचान करना आवश्यक है।
- समस्या कथन- समस्या की पहचान होने के बाद इसे परिभाषित किया जाना चाहिए। इसके अंतर्गत समस्या का स्पष्ट वर्णन करना चाहिए। समस्या का स्पष्टीकरण विद्यार्थी अपने सहपाड़ियों के साथ चर्चा करके (अध्येता-अध्येता अंतः क्रिया) समस्या का स्पष्टीकरण कर सकता है।
- समस्या का परिसीमन- इसमें समस्या के मात्र उन अंगों पर ध्यान केन्द्रित किया जाता है जो उसकी पहुंच के अंदर है।
- परिकल्पनाओं का निर्माण- समस्या को केन्द्रित करने के लिए यह आवश्यक है कि उससे सम्बन्धित उद्देश्य निर्धारित किए जाएं, जिससे उस समस्या पर कार्य करना स्पष्ट हो जाए। छात्र को पूर्व ज्ञान का अध्ययन संदर्भ साहित्य पढ़कर करना चाहिए और कार्य की रूपरेखा बनाने के लिए परिकल्पनाएं निर्मित करनी चाहिए। ये परिकल्पनाएं संभावित उत्तर की ओर इशारा करती हैं तथा विभिन्न चरों के संबंध में स्पष्ट करती है। परिकल्पना का परीक्षण तथा उनकी जांच-परिकल्पना के लिए प्रयोग करना आवश्यक है। प्रयोग की संरचना, उस पर कार्य करना और वहां से प्रमाण प्राप्त करना आवश्यक है। प्रयोग करते समय सही अवलोकन करना आवश्यक है। इस प्रक्रिया में छात्र को शिक्षक का सहयोग मिलना चाहिए।
- परिभाषा की व्याख्या करना – आंकड़ों की प्राप्ति के पश्चात उनकी व्याख्या उपयुक्त तकनीक द्वारा करना आवश्यक है। इसको पार्ट, ग्राफ तथा अन्य किसी विधि से व्यक्त किया जा सकता है।
- निष्कर्ष निकाना-आंकड़ों पर आधारित व्याख्या करके सही निष्कर्ष निकाले जाते हैं। ऐसे निष्कर्ष वैध और उपयोगी होते है। निष्कर्ष प्राप्त करने के पश्चात भविश्य के लिए सुझाव देना उपयोगी होगा।
समस्या समाधान विधि की विशेषताएं Features of problem solving method
- सृजनात्मक-इस विधि में विचारों को पुनर्गठित किया जाता है, इसलिए इस विधि को सृजनात्मक माना जाता है।
- सूझबूझ या अन्तर्दृष्टिपूर्ण- यह विधि सूझबूझ वाली विधि है क्योंकि इसमें चयनात्मक और उचित अनुभवों का पुनर्गठन सम्पूर्ण हल में किया जाता है।
- चयनात्मक-इस विधि की प्रक्रिया इस दृष्टि से चयनात्मक है कि सही हल ढूंढने के लिए चयन तथा उपयुक्त अनुभवों को स्मरण किया जाता है।
- आलोचनात्मक- यह विधि आलोचनात्मक है क्योंकि यह अनुपात या प्रयोगात्मक हल का पर्याप्त मूल्यांकन करने के लिए आवश्यक है।
- लक्ष्य केन्द्रित विधि- इस विधि का एक विशिष्ट लक्ष्य होता है। यह लक्ष्य बाधा को दूर करना होता है।
समस्या समाधान विधि के लाभ Advantages of problem solving method
- इस विधि से विद्यार्थी अध्यापक के निर्देशन में स्वयं सीखने की मनोवृति विकसित कर सकते हैं।
- विद्यार्थी समस्या प्रस्तुत करना तथा उसे संरचित करना सीख जाते हैं।
- विद्यार्थी समस्या से संबंधित विभिन्न सूचनाओं को अन्य स्रोतों से प्राप्त करना सीख जाते हैं।
- विद्यालय में समस्याओं के समाधान के प्रशिक्षण प्राप्त करने से विद्यार्थियों से ऐसे कौशल और अनुभव आ जाते है जिससे वे जीवन की समस्याओं का समाधान करना सीखते हैं। > इस विधि से विद्यार्थी तथ्यों को एकत्रित करना सीखते हैं तथा इन तथ्यों को एकत्रित करने के पश्चात उन्हें व्यवस्थित करना सीखते हैं।
- वे परिकल्पना बनाना सीखते हैं।
- वे परिकल्पना का परीक्षण करना सीख जाते हैं तथा इसके अतिरिक्त किसी परिकल्पना के समर्थन में अथवा उसे गलत सिद्ध करने के लिए साक्ष्य एकत्र करना सी जाते हैं। वे अपने आस-पास में हो रही घटनाओं तथा पदार्थों से भली-भांति परिचित हो जाते हैं, वे यह भी समझ जाते हैं कि इन सबके अनुप्रयोग अथवा संबंध क्या हैं। उनका अपने समकक्ष व्यक्तियों तथा अध्यापकों के साथ एक सकारात्मक संबंध भी सीपित हो जाता है।
- उनमें वैज्ञानिक अभिवृति व दृष्टिकोण्या तथा वैज्ञानिक मनोवृत्ति विकसित हो जाती है। इस विधि द्वारा अर्जित ज्ञान विद्यार्थियों के पास स्थायी रूप से रहता है, क्योंकि विद्यार्थियों ने स्वयं
- समस्या का समाधान ढूंढकर ज्ञान को अर्जित किया होता है। इस विधि से बालकों में स्वाध्याय की आदत का निर्माण होता है।
समस्या समाधान विधि के दोष Defects of problem solving method
- यह विधि बहुत धीरे-धीरे चलने वाली विधि है तथा इसमें बहुत अधिक समय लगता है। चूंकि इसमें प्रयोगिक कार्य पर अत्यधिक बल दिया जाता है। विज्ञान को सीखना एक आनन्दकारी प्रक्रिया है, परन्तु आवश्यकता से अधिक प्रायोगिक कार्य इसे उबाऊ बना देंगे।
- यह कठिन प्रविधि है, जिसका आधार धैर्य और चिन्तन है इसलिए अनेक छात्र इसे नहीं अपनाते।
- सभी विद्यार्थी भी इस उपागम से सीखने में दक्ष नहीं होते है।
- सामान्य उपकरण एवं सामग्री की कमी के कारण इस प्रविधि का उपयोग नहीं होता।
- यह विधि प्राथमिक कक्षाओं के लिए उपयोगी नहीं है, क्योंकि इन कक्षाओं के विद्यार्थियों का मानसिक स्तर इतना ऊंचा नहीं होता कि वे समस्या का चुनाव कर सकें तथा समस्याओं का हल निकाल सकें। कई बार कक्षा में निर्मित समस्याएं वास्तविक जीवन की समस्याओं से मेल नहीं खातीं, जिसके फलस्वरूप विद्यार्थी व्यावहारिक ज्ञान प्राप्त करने में असमर्थ रहते हैं।
- इस विधि से प्रायः संतोषजनक परिणाम भी प्राप्त नहीं होते है। कई बार विद्यार्थियों के मन में ऐसी बात आती है कि वे व्यर्थ समय नष्ट कर रहे हैं अथवा जो परिणाम निकाला गया है उसका समस्या के साथ ठीक तरह से तालमेल नहीं बैठता है।
- समस्या का चुनाव करना एक कठिन प्रक्रिया है। प्रत्येक छात्र या शिक्षक समस्या का चुनाव नहीं कर सकते।
समस्या समाधान प्रविधि की सफलता के लिए सुझाव Tips for the Success of Problem Solving Techniques
- समस्या देने से पूर्व इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि समस्या बालकों के मानसिक स्तर की हो तथा उनके अनुभवों पर आधारित हो।
- पहले बालकों को सरल, फिर कइिन समस्या देनी चाहिए ताकि वे धीरे-धीरे सफलता प्राप्त करते हुए कार्य करें।
- समस्या उनकी रुचि के अनुसार होनी चाहिए जो उनके पाठ्यक्रम के अंतर्गत आती हो।
- समस्या समाधान विधि का प्रयोग बड़ी कक्षाओं में ही ठीक प्रकार से हो सकता है।
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