संवेगात्मक विकास ( Emotional Development In Infancy )
संवेगात्मक विकास (क्रो एवं क्रो के अनुसार) संवेगात्मक व सामाजिक विकास साथ – साथ चलते हैं । संवेग जन्मजात होते हैं लेकिन सभी संवेगो का विकास एक साथ न होकर धीरे – धीरे होता है । वाटसन के अनुसार नवजात शिशु में तीन संवेग होते हैं – भय , क्रोध व स्नेह ब्रिजिश के अनुसार जन्म के समय शिशु में केवल एक संवेग होता है – उत्तेजना तथा दो वर्ष की आयु तक सभी संवेगों का विकास हो जाता है ।
शैशवावस्था में संवेगात्मक विकास ( Emotional Development In Infancy )
- शिशु जन्म के समय रोता , चिल्लाता तथा पैर पटकता है । इस प्रकार वह जन्म के समय से ही संवेगात्मक व्यवहार की अभिव्यक्ति करता है ।
- शिशु का संवेगात्मक व्यवहार अत्यधिक अस्थिर होता है । शिशु का संवेग थोड़े समय तक रहता है और शीघ्र ही समाप्त हो जाता है । उदाहरणार्थ , शिशु गोदी में आने के लिए रोने लगता है किन्तु गोदी लेते ही वह चुप हो जाता है जैसे – जैसे आयु बढ़ती जाती है , संवेग में स्थिरता आने लगती है ।
- आरम्भ में शिशु के संवेग काफी तीव्र होते हैं , किन्तु धीरे – धीरे यह तीव्रता कम हो जाती है । उदाहरणार्थ , 2 या 3 माह का बालक तब तक रोता रहता है , जब तक की उसकी इच्छा पूरी नहीं हो जाती है । 4 या 5 वर्ष का शिशु इस प्रकार का व्यवहार नहीं करता है ।
- आरम्भ में शिशु के संवेगों में अस्पष्टता होती है , लेकिन जैसे – जैसे वह बड़ा होता जाता है उनमें स्पष्टता आती जाती है।
बाल्यावस्था में संवेगात्मक विकास ( Emotional Development During Childhood )
- बाल्यावस्था संवेगात्मक विकास का अनोखा काल है
- संवेगों में तीव्रता एवं उग्रता नहीं रहती हैं ।
- संवेगों पर नियंत्रण रखने लगते हैं ।
- निराशा और असहायपन की भावना आ जाती हैं । समूह का सदस्य होने के कारण ईर्ष्या – द्वेष की भावना का उदय होता है ।
- जिज्ञासा संवेग का विकास होता है ।
- भय , कुंठा , ईर्ष्या , जिज्ञासा , स्नेह , प्रफुल्लता आदि संवेगो का विकास होता है ।
किशोरावस्था में संवेगात्मक विकास ( Emotional Development During Adolescence )
- संवेगात्मक विकास में तीव्र परिवर्तन
- संवेगों में परिपक्वता आने लगती है ।
- संवेग प्रकाशन में स्पष्टता आ जाती है ।
- विरोधी मनोदशायें होना
- जीवन अत्यधिक भाव – प्रधान हो जाता है ।
- काम भावना पुनः तीव्र हो जाती हैं ।
- विषम लिंगी के प्रति प्रेम का विकास ।
- प्रेम , दया , क्रोध , सहानुभूति आदि संवेग स्थायी रूप प्राप्त कर लेते हैं ।
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