संविधान की प्रस्तावना

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‘ हम भारत के लोग , भारत को एक ( सम्पूर्ण प्रभुत्व – सम्पन्न , समाजवादी , पंथनिरपेक्ष , लोकतन्त्रात्मक गणराज्य ) बनाने के लिए , | तथा उसके समस्त नागरिकों को सामाजिक , आर्थिक और राजनैतिक न्याय , विचार अभिव्यक्ति , विश्वास , धर्म और उपासना की स्वतंत्रता , प्रतिष्ठा और अवसर की समता प्राप्त करने के लिए , तथा उन सब | में व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखण्डता को सुनिश्चित करने वाली बन्धुता बढ़ाने के लिए दृढ़ संकल्प होकर अपनी इस संविधान सभा में आज तारीख 26 नवम्बर , 1949 ई . ( मिति मार्गशीर्ष शुक्ल सप्तमी , विक्रम सम्वत् 2006 ) को एतद् द्वारा इस संविधान को अंगीकृत , अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं ।

Note – ऑस्ट्रेलिया के संविधान से प्रस्तावना की भाषा को तथा प्रस्तावना को संयुक्त राज्य अमेरिका के संविधान से ग्रहण किया गया है । प्रस्तावना का प्रस्ताव सर्वप्रथम भारत शासन अधिनियम -1919 में लाया गया और इसको स्वीकृत भारत शासन अधिनियम , 1935 में किया गया था , तो वहीं उद्देशिका में भारत शब्द दो बार आया है ।

बेरूबारी यूनियन एवं एक्सचेंज ऑफ एन्क्लेव मामले में ( 1960 में ) उच्चतम न्यायालय ने मत व्यक्त किया था कि प्रस्तावना संविधान का अंग नहीं है । अत : इसमें संशोधन नहीं किया जा सकता ।

केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य के वाद ( 1973 ) में उच्चतम न्यायालय ने उक्त निर्णय को उलटते हुए स्वीकारा कि ‘ प्रस्तावना संविधान का ही एक भाग ‘ है अत : अनुच्छेद 368 के तहत् इसमें संशोधन किया जा सकता है । बशर्ते संविधान के मूल ढांचे पर इसका प्रभाव न पड़े ।

Note – अनुच्छेद 137 के तहत् सर्वोच्च न्यायालय अपने पूर्ण निर्णय को बदल सकता है अगर यह कार्य सार्वजनिक हित में हो तो ।

42 वें संविधान संशोधन

संविधान की प्रस्तावना में आज तक केवल एक बार संशोधन किया गया है । मूल संविधान की प्रस्तावना 85 शब्दों से निर्मित थी । 42 वें संविधान संशोधन , 1976 द्वारा प्रस्तावना में संशोधन कर ‘ समाजवादी ‘ ‘ पंथनिरपेक्ष ‘ एवं ‘ अखण्डता ‘ शब्द जोड़े गये है ( प्रारम्भ में भारतीय संविधान को 22 भाग 395 अनुच्छेद एवं 8 अनुसूचियों में बांटा गया ।

Note – 42 वें संविधान संशोधन को भारत का मिनी / लघु संविधान कहा जाता है , तो वही वर्तमान में भारतीय संविधान में अनुसूचियों की संख्या -12 है ।

भारत के संविधान की प्रस्तावना में रूस से न्याय शब्द , फ्रांस से स्वतंत्रता , समानता , भ्रातृत्व , ऑस्ट्रेलिया से प्रस्तावना की भाषा एवं अमेरिका से हम भारत के लोग शब्द लिये गये । प्रस्तावना को न्यायपालिका ने ‘ संविधान की कुंजी ‘ कहा है । प्रस्तावना या उद्देशिका गैर न्यायिक है अर्थात् इसकी व्यवस्थाओं को न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती ।

प्रस्तावना के बारे में प्रमुख व्यक्तियों के विचार

संविधान सभा के सदस्य अल्लादी कृष्णा स्वामी अय्यर ने भारतीय संविधान की प्रस्तावना के बारे में कहा कि ‘ संविधान की प्रस्तावना हमारे दीर्घकालिक सपनों का विचार है । ‘  तो प्रारूप समिति के सदस्य के.एम. मुंशी ने भारतीय संविधान की प्रस्तावना के बारे में कहा कि ‘ प्रस्तावना संविधान की राजनीतिक कुंडली है ‘

डॉ . ठाकुर दास भार्गव ने भारत के संविधान की प्रस्तावना के बारे में कहा कि ‘ प्रस्तावना संविधान का सबसे महत्त्वपूर्ण अंग है प्रस्तावना संविधान की आत्मा एवं संविधान की कुंजी है । तो ब्रिटिश विद्वान अर्नेस्ट बार्कर ने भारतीय संविधान की प्रस्तावना को ‘ संविधान का कुंजी नोट ‘ कहा है ।

एन . ए . पालकीवाला ने भारतीय संविधान की प्रस्तावना को ‘ संविधान का परिचय – पत्र ‘  कहा है ।

प्रस्तावना ( उद्देशिका ) को पं . जवाहरलाल नेहरू ने संविधान की आत्मा / हृदय कहा है , तो बी.आर. अम्बेडकर ने अनुच्छेद 32 संवैधानिक उपचारों के अधिकार ‘ को संविधान की आत्मा / हृदय / कुंजी बताया । सर्वोच्च न्यायालय ने 1960 में संविधान की प्रस्तावना को ‘ संविधान निर्माताओं की कुंजी ‘ कहा है ।

Note – व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता एवं अखंडता सुनिश्चित करना भारतीय संविधान की प्रस्तावना के अंतर्गत एक 2 संकल्प हैं

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