संघ ऐनेलिडा के सामान्य लक्षण
(i) इस संघ के अधिकांश जन्तु समुद्री होते हैं। कुछ जन्तु अलवणीय जल वाले जलाशयों में तथा कुछ नम मिट्टी में पाये जाते हैं।
(ii) इस संघ के जन्तुओं का शरीर लम्बा, पतला, बेलनाकार और खण्ड युक्त होता है।
(iii) इनका शारीरिक संगठन अंग तन्त्र प्रकार का होता है।
(iv) इनका शरीर क्यूटिकल से ढका रहता है और त्रिस्तरीय तथा द्विपार्श्व सममित होता है।
(v) वास्तविक देहगुहा उपस्थित होती है तथा पट्टों (Septa) और वेश्मों में विभाजित होती है। इस गुहा को दीर्णगुहा या शाइजोशील (Schizocoel) कहते हैं।
(vi) देहगुहा में पूर्ण विकसित आहारनाल होती है, जिसके अगले सिरे पर मुख तथा पिछले सिरे पर गुदा होती है। पाचन बाह्य कोशिकीय होता है।
(vii) प्रचलन हेतु सीटी (Setae), परापोडियम (Parapodium) आदि पाये जाते हैं। सीटी काइटिन के बने होते हैं।
(viii) श्वसन प्राय: सामान्य सतह (त्वचा) द्वारा होता है।
(ix) रूधिर परिसंचरण तन्त्र बन्द प्रकार का होता है। रूधिर लाल रंग का होता है। हीमोग्लोबिन प्लाज्मा में घुला रहता है।
(x) तन्त्रिका तन्त्र साधारण होता है जो एक तन्त्रिका रिंग एवं तन्त्रिका रज्जु से मिलकर बना होता है।
(xi) उत्सर्जन देह खण्डों में स्थित उत्सर्गिकाओं (nephridia) द्वारा होता है।
(xii) ये एकलिंगी तथा उभयलिंगी दोनों प्रकार के होते हैं।
(xii) परिवर्धन के समय कुछ सदस्यों में ट्रोकोफोर लार्वा (trochophore larva) अवस्था पायी जाती है।
संघ ऐनेलिडा का वर्गीकरण
सीटी तथा संवेदांगों की उपस्थिति या अनुपस्थिति के आधार पर संघ ऐनेलिडा को 3 वर्गों में वर्गीकृत किया गया है। इन वर्गों के प्रमुख लक्षण एवं उदाहरण निम्नलिखित हैं
वर्ग 1. पॉलीकीटा (Polychaeta)
(i) अधिकतर समुद्री जन्तु ।
(ii) गमन के लिए पार्श्वपाद (पैरापोडिया) उपस्थित
(iii) सिर स्पष्ट, इस पर नेत्र, स्पर्शक एवं पैल्पस उपस्थित।
(iv) एकलिंगी जन्तु, जनद केवल प्रसवकाल में अस्थायी अंगों के रूप में व कई खण्डों में निर्मित।
(v) जीवन वृत में ट्रोकाफोर लार्वा प्रावस्था उपस्थित।
उदाहरण: नेरीज़, एफ़्रोडाइट, ऐरेनीकोला (Arenicola) आदि।
वर्ग 2. ऑलिगोकीटा (Oligochaeta)
(i) प्राय: नम मिट्टी, तालाबों, झीलों आदि में निवास ।
(ii) सिर, अस्पष्ट, नेत्र, स्पर्शक एवं पैल्पस अनुपस्थित।
(iii) पार्श्व पाद अनुपस्थित, प्रचलन हेतु सीटी (शूक) देहभित्ति की सूक्ष्म जटिल थैलियों में एकाकी स्थित
(iv) क्लाइंटेलम (Clitellum) स्थायी रूप से उपस्थित ।
(v) नर व मादा जननांग एक ही जन्तु शरीर में (द्विलिंगी जन्तु) ।
(vi) अण्ड निषेचन एवं भ्रूणीय परिवर्धन कोकून (Cocoon) में।
उदाहरण केंचुआ-फेरेटिमा, लुम्ब्रिकस, यूटाइफियस, ट्यूबिफेक्स आदि हैं।
वर्ग 3. हिरूडीनिया (Hirudinea )
(i) जलीय या स्थलीय बाह्य परजीवी और रक्त चूसी जोंक
(ii) देहखण्ड 33 या 34 पार्श्वपाद एवं सीटी अनुपस्थित
(iii) सिर अस्पष्ट तथा शरीर के अग्र व पश्च दोनों सिरों पर चूषक (Suckers) उपस्थित।
(iv) देहगुहा बोट्रिऑइडल ऊतक (Botryoidal tissue) से भर जाने के कारण हीमोसीलिक नालियों (haemocoelic channels) के रूप में सीमित ।
(v) उभयलिंगी, शिशु अवस्था अनुपस्थित, वृद्धिशील प्रत्यक्ष।
(vi) क्लाइटेलम (पर्याणिका अस्थायी, जो केवल जननकाल में विकसित होती है तथा कोकून बनते हैं।
उदाहरण- जोंक/हिरूडिनेरिया (leech/Hirudinaria), हीमोपिस (Haemopis अश्व जोंक), हीमोडिप्सा (Haemodipsa) आदि।
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