विभिन्नताओं की उत्पत्ति के निम्न कारण हैं
1. अन्तर्निहित प्रवृत्ति (Inherent tendency)-
प्राणी एक-दूसरे से भिन्न होते हैं। सभी प्राणियों की रचना का आधारभूत पदार्थ जीवद्रव्य होता है, जो रासायनिक पदार्थों का बना होता है। इन रासायनिक पदार्थों के अणुओं में निरन्तर परिवर्तन होते रहते हैं। अतः दो प्राणियों का किसी भी समान परिस्थितियों में समान मिलना कठिन है। निश्चित ही उनमें विभिन्नताएँ उत्पन्न होगी।
2. वातावरण (Environment)-
वातावरण प्राणियों पर सीधा प्रभाव डालता है। कायिक विभिन्नताएँ वातावरण की प्रत्यक्ष क्रिया के कारण उत्पन्न होती हैं। उनकी शारीरिक रचना ही प्रभावित नहीं होती बल्कि उनकी कार्यप्रणाली में भी अन्तर आ जाता है।
3. अन्तःस्रावी ग्रन्थियाँ (Endocrine gland)-
हॉरमोन्स भी जीवों के परिवर्धन व भिन्नता को प्रभावित करते हैं, इसकी मात्रा में कमी या वृद्धि होने पर जीवों के विभिन्न मानसिक व शारीरिक गुणों में भिन्नता आ जाती है। इस प्रकार हॉरमोन्स से बाह्य व आन्तरिक विभिन्नताएँ उत्पन्न हो जाती है।
4. दोहरी पैतृकता (Dual parentage) –
वीजमैन (Weisman) के अनुसार एक माता-पिता से उत्पन्न सन्तान ठीक उनकी तरह न होकर कुछ भिन्न होती है। लैंगिक जनन में दो भिन्न युग्मकों से युग्मनज का निर्माण होता है तथा दोनों प्राणियों की जीन संरचना पृथक-पृथक प्रकार की होती है। अतः युग्मनज से उत्पन्न होने वाली सन्तानों में विभिन्नताएँ होती हैं।
5. उत्परिवर्तन (Mutations)-
उत्परिवर्तन के कारण जीन कोष में परिवर्तन होते रहते हैं। उत्परिवर्तन गुणसूत्रों की संख्या, संरचना एवं जीनी संरचना में परिवर्तन के कारण उत्पन्न होते हैं। जिससे प्राणियों में आनुवंशिक विभिन्नताएँ उत्पन होते हैं। जिससे प्राणियों में आनुवंशिक विभिन्नताएँ उत्पन्न हो जाती हैं।
6. अनिषेकजनन (Parthenogensis)-
अनिषेकजनन में अर्धसूत्री विभाजन के दौरान होने वाले यादृच्छिक पृथक्करण तथा विनिमय के फलस्वरूप प्राणियों में विभिन्नताएँ उत्पन्न होती है।
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