वनोन्मूलन किसे कहते हैं What is deforestation
वन प्रदेश का वन-रहित क्षेत्रों में रूपांतरण करना वनोन्मूलन (डीफोरेस्ट्रेशन) कहा जाता है। एक आकलन के अनुसार शीतोष्ण क्षेत्र में केवल एक प्रतिशत वन नष्ट हुए हैं, जबकि उष्णकटिबंध में लगभग 40 प्रतिशत वन नष्ट हो गए हैं। भारत में खासकर निर्वनीकरण की वर्तमान स्थिति काफी दयनीय है। 20 वीं सदी के प्रारंभ में भारत के कुल क्षेत्रफल के लगभग 30 प्रतिशत भाग में जंगल थे। सदी के अंत तक यह घटकर 19.4 प्रतिशत रह गया। भारत की राष्ट्रीय वन नीति (1988) में सिफारिश की गई हैं। कि मैदानी इलाकों में 33 प्रतिशत जंगल क्षेत्र होने चाहिए और पर्वतीय क्षेत्रों में 67 प्रतिशत जंगल क्षेत्र होने चाहिए।
वनोन्मूलन किस प्रकार होता है? How does deforestation happen?
इसके लिए कोई एक कारण नहीं है। बल्कि मनुष्य के कई कार्य वनोन्मूलन यानी वनों के उन्मूलन में सहायक होते हैं। वनोन्मूलन का एक मुख्य कारण है कि वन प्रदेश को कृषि भूमि में बदला जा रहा है जिससे कि मनुष्य की बढ़ती हुई जनसंख्या के लिए भोजन उपलब्ध हो सके। वृक्ष, इमारती लकड़ी (टिंबर), काष्ठ-ईंधन, पशु-फार्म और अन्य कई उद्देश्यों के लिए काटे जाते हैं। काटो और के जलाओ कृषि (स्लैश एवं बर्न कृषि) (एग्रिकल्चर) जिसे आमतौर पर भारत के उत्तर पूर्वी राज्यों में झूम खेती (कल्टिवेशन) कहा जाता है, के कारण भी वनोन्मूलन हो रहा है।
काटो एवं जलाओ कृषि में कृषक जंगल के वृक्षों को काट देते हैं और पादप-अवशेष को जला देते हैं। राख का प्रयोग उर्वरक के रूप में तथा उस भूमि का प्रयोग खेती के लिए या पशु चरागाह के रूप में किया जाता है। खेती के बाद उस भूमि को कई वर्षों तक वैसे ही खाली छोड़ दिया जाता है ताकि पुन:उर्वर हो जाए। कृषक फिर अन्य क्षेत्रों में जाकर इसी प्रक्रिया को दोहराता है।
वनोन्मूलन के परिणाम हैं? What are the consequences of deforestation?
इसके मुख्य प्रभावों में से एक है कि वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड की सांद्रता बढ़ जाती है, क्योंकि वृक्ष जो अपने जैवभार (बायोमास) में काफी अधिक कार्बन धारण कर सकते थे; वनोन्मूलन के कारण नष्ट हो रहे हैं। वनोन्मूलन के कारण आवास नष्ट होने से जैव-विविधता (बायोडाइवर्सिटी) में कमी होती है। इसके कारण जलीय चक्र (हाइड्रोलॉजिकल साइकल) बिगड़ जाता है, मृदा का अपरदन होता है और चरम मामलों में इसका मरुस्थलीकरण (डेजर्टिफिकेशन) यानी मरुभूमि में परिवर्तित हो सकता है।
पुनर्वनीकरण क्या है what is reforestation
पुनर्वनीकरण (रीफॉरेस्टेशन) वह प्रक्रिया है जिसमें वन को फिर से लगाया जाता है जो पहले कभी मौजूद था और बाद में उसे नष्ट कर दिया गया। निर्वनीकृत क्षेत्र में पुनर्वनीकरण प्राकृतिक रूप से भी हो सकता है। फिर भी, वृक्ष रोपण कर इस कार्य में तेजी ला सकते हैं। ऐसा करते समय उस क्षेत्र में पहले से मौजूद जैव विविधता का भी उचित ध्यान रखा जाता है।
भारत में वन-संरक्षण का इतिहास History of Forest Conservation in India
भारत में इसका लंबा इतिहास है। सन् 1731 में राजस्थान में जोधपुर नरेश ने एक नए महल के निर्माण के लिए अपने एक मंत्री से लकड़ी का इंतजाम करने के लिए कहा। राजा के मंत्री और कर्मी एक गाँव, जहाँ बिश्नोई परिवार के लोग रहा करते थे, के पास के जंगल में वृक्ष काटने के लिए गए। बिश्नोई परिवार की अमृता नामक एक महिला ने अद्भुत साहस का परिचय दिया। वह महिला पेड़ से चिपक कर खड़ी हो गई और उसने राजा के लोगों से कहा कि वृक्ष को काटने से पहले मुझे काटने का साहस करो।
उसके लिए वृक्ष की रक्षा अपने जीवन से कहीं अधिक बढ़कर है। दुःख की बात है कि राजा के लोगों ने उसकी बातों पर ध्यान नहीं दिया और पेड़ के साथ-साथ अमृता देवी को भी काट दिया। उसके बाद उसकी तीन बेटियों तथा बिश्नोई परिवार के सैकड़ों लोगों ने वृक्ष की रक्षा में अपने प्राण गवाँ दिए। इतिहास में कहीं भी इस प्रकार की प्रतिबद्धता की कोई मिसाल नहीं है जबकि पर्यावरण की रक्षा के लिए मुनष्य ने अपना बलिदान कर दिया हो।
हाल ही में, भारत सरकार ने अमृता देवी बिश्नोई वन्यजीव संरक्षण पुरस्कार देना शुरू किया है। यह पुरस्कार ग्रामीण क्षेत्रों के ऐसे व्यक्तियों या सामुदायों को दिया जाता है जिन्होंने वन्यजीवों की रक्षा के लिए अद्भुत साहस और समर्पण दिखाया हो। आपने हिमालय के गढ़वाल के चिपको आंदोलन के बारे में सुना होगा। सन् 1974 में ठेकेदारों द्वारा काटे जा रहे वृक्षों की रक्षा के लिए इससे चिपक कर स्थानीय महिलाओं ने काफी बहादुरी का परिचय दिया। विश्वभर में लोगों ने चिपको आंदोलन की सराहना की है।
स्थानीय समुदायों की भागीदारी के महत्व को महसूस करते हुए भारत सरकार ने 1980 के दशक में संयुक्त वन प्रबंधन (ज्वाइंट फॉरेस्ट मैनेजमेंट जे एफ एम) लागू किया जिससे कि स्थानीय समुदायों के साथ मिलकर काफी अच्छी तरह से वनों की रक्षा और प्रबंधन का कार्य किया जा सके। वनों के प्रति उनकी सेवाओं के बदले ये समुदाय विविध प्रकार के वनोत्पाद (फारेस्ट प्रोडक्ट्स) जैसे फल, गोंद, रबड़, दवाई आदि प्राप्तकर लाभ उठाते हैं। इस प्रकार वन का संरक्षण निर्वहनीय तरीके (सस्टेनेबल) से किया जा सकता है।
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