वंशागति के मेण्डल के नियम , मेंडल के नियम (Mendel’s Laws of Inheritance, mendel’s law in hindi )
मेण्डल ने उद्यान मटर ( Pisum sativum ) पर संकरण प्रयोगों एवं उनसे प्राप्त परिणामों के आधार पर महत्त्वपूर्ण नियमों का प्रतिपादन किया । इन्हें मेण्डल के वंशागति के नियम या आनुवांशिकता के नियम कहा जाता है । मेण्डल द्वारा प्रतिपादित नियम निम्नलिखित हैं
1. पृथक्करण का नियम या युग्मकों की शुद्धता का नियम ( Law of segregation or law of purity of gametes )
2. स्वतन्त्र अपव्यूहन का नियम ( Law of Independent Assortment )
पृथक्करण का नियम या युग्मकों की शुद्धता का नियम (Law of segregation or Law of purity of gametes)
मेण्डल द्वारा प्रतिपादित यह नियम एकसंकर संकरण के परिणामों पर आधारित है । इसके अनुसार ” विषमयुग्मजी या संकर में युग्मविकल्पी के दोनों कारक या जीन पास – पास रहते हुए भी एक दूसरे से संदुषित ( contaminate ) नहीं होते हैं तथा युग्मक निर्माण के समय दोनों युग्मविकल्पी एक दूसरे से पृथक होकर अलग – अलग युग्मकों में पहुँच जाते हैं । इस प्रकार प्रत्येक युग्मक शुद्ध होता है ।
” दो पौधों जो एक जोड़ी विपर्यासी लक्षणों में भिन्न हों संकरण करवाने पर F , पीढ़ी में संकर पौधे प्राप्त होते हैं । F विषमयुग्मजी में युग्मविकल्पी के दोनों कारक या जीन साथ – साथ रहते हुए भी संदूषित नहीं होते हैं तथा युग्मक निर्माण के समय दोनों युग्मविकल्पी एक दूसरे से पृथक होकर अलग – अलग युग्मकों में चले जाते हैं
इस प्रकार प्रत्येक युग्मक में दोनों जीन्स में से , केवल एक जीन होता है । अत : प्रत्येक युग्मक सम्बन्धित सन्दर्भ में शुद्ध होता है । इसे युग्मकों की शुद्धता का नियम भी कहते हैं ।
उदाहरण – मेण्डल द्वारा प्रतिपादित पृथक्करण के नियम को एकसंकर संकरण द्वारा समझाया जा सकता है । मेण्डल ने समयुग्मजी लम्बे (TT) एवं समयुग्मजी बौने (t) पौधों के बीच एकसंकर संकरण कराया । लम्बापन (T) एवं बौनापन (1) दो स्वतन्त्र किन्तु विपर्यासी कारक है । संकरण कराने पर F , पीढ़ी में सभी लम्बे विषमयुग्मजी ( TI ) पोधे प्राप्त होते हैं क्योंकि लम्बेपन का लक्षण प्रभावी तथा बौनेपन का लक्षण अप्रभावी होता है ।
F , पीढ़ी में ये दोनों कारक साथ – साथ रहते हैं जो कि युग्मक निर्माण के समय अलग – अलग पृथक हो जाते हैं । संकर पौधे के दोनों जीन्स के पृथक होने या साथ रहते हुए संदुषित नहीं होने के कारण ही बौनेपन का लक्षण F , पीढ़ी में पुनः प्रकट हो जाता है।
2. स्वतन्त्र अपव्यूहन का नियम (Law of Independent Assortment)
मेण्डल का यह नियम द्विसंकर संकरण के परिणामों पर आधारित है । ” जब दो या दो से अधिक जोडी विपर्यासी लक्षणों के बीच संकरण किया जाता है तो समस्त लक्षणों की वंशागति स्वतन्त्र रूप से होती है । युग्मविकल्पियों के प्रत्येक युग्म के सदस्य न केवल पृथक होते हैं अपितु विभिन्न लक्षणों के युग्मविकल्पी एक – दूसरे के प्रति स्वतन्त्र रूप से व्यवहार करते हैं । ” अर्थात् एक लक्षण के युग्मविकल्पी ( प्रभावी या अप्रभावी ) दूसरे लक्षण के किसी भी युग्मविकल्पी ( प्रभावी व प्रभावी ) से संयोग करने के लिए स्वतन्त्र होता है ।
उदाहरण – द्विसंकरण संकरण में दो जोड़ी विपर्यासी लक्षणों की वंशागति का साथ – साथ अध्ययन किया जाता है ।
मटर के पौधे में बीज का रंग एवं बीज की आकृति दो अलग – अलग लक्षण हैं । बीज के रंग के दो रूप पीला ( Yellow , Y ) एवं हरा ( Green , y ) परस्पर विपर्यासी है । बीज की आकृति के दो स्वरूप गोल ( Round R ) और झूरींदार ( Wrinkled , r ) परस्पर विपर्यासी हैं । जब शुद्ध पीले गोल ( YYRR ) बीजों वाले पौधे को हरे झुरींदार ( yyrr ) बीजों वाले पौधे से संकरण किया जाता है तो F पीढ़ी में सदैव पीला ( Y ) तथा गोल ( P ) लक्षण प्रकट होता है । झुरींदार ( r ) हरा ( y ) व लक्षण अप्रभावी रहता है ।
उपर्युक्त संकरण में प्रत्येक युग्मक , दो जीन्स में से प्रत्येक जीन की एक प्रति प्राप्त करता F , पीढ़ी में YyRr जीनी संरचना वाले संकर पौधे उत्पन्न होते हैं । ये ( YR ) व ( yr ) युग्मकों के संयोग से बनते हैं । जब F , पौधों में परस्पर स्वपरागण होता है तो F , पीढ़ी प्राप्त होती है जिसमें चार प्रकार के फीनोटाइप 9 : 3 : 3 : 1 के अनुपात में प्रकट होते हैं । ये चार फीनोटाइप निम्न हैं पीले गोल ( 9 ) : पीले झुरींदार ( 3 ) : हरे गोल ( 3 ) : हरे झुरींदार ( 1 )
अत : वे लक्षण जो F पीढ़ी में व्यक्त नहीं हो सके वे F , पीढ़ी में पुनः व्यक्त हो जाते हैं , साथ ही दो नये संयोग ( गोल हरे एवं झुरींदार पीले ) भी व्यक्त होते है , ऐसा तभी सम्भव है , जब विभिन्न गुणों का एक – दूसरे से स्वतन्त्र अपव्यूहन हो । स्वतन्त्र अपव्यूहन का अर्थ है कि दो विभिन्न गुणों के कारक परस्पर जुड़े नहीं होते हैं तथा युग्मक निर्माण के समय या तो वे एक युग्मक में जा सकते हैं या अलग – अलग युग्मकों में जा सकते हैं ।
उपरोक्त उदाहरण में बीज के रंग एवं बीज आकृति की वंशागति एक दूसरे से स्वतन्त्र होती है । F पीढ़ी में युग्मक निर्माण के समय ये गुण एक दूसरे से स्वतन्त्र हो जनकीय संयोजनों के साथ – साथ दो नये संयोजन भी बनाते हैं । यदि लक्षणों के दोनों युग्म ( pairs ) एक – दूसरे से स्वतन्त्र रहकर व्यवहार करें तब ही उपरोक्त परिणाम प्राप्त हो सकते हैं ।
मेण्डल के नियमों का महत्त्व ( Importance of Mendel’s Laws )
मेण्डल के नियमों की सन् 1900 में पुनोज के बाद प्रजनन विज्ञान की विभिन्न शाखाओं में इनको प्रयुक्त किया जा रहा है । इन नियमों की पादप व जन्तु प्रजनन में प्रायोगिक महत्ता हैं । संकरण प्रयोगों के लिए इन नियमों का ज्ञान होना अत्यंत आवश्यक है ।
( i ) मेण्डल के नियमों के ज्ञान से संकर सन्तति में उत्पन्न होने वाले नये संयोगों तथा उनकी आवृत्ति ( frequency ) के बारे में पूर्वानुमान हो जाता है जो पादप एवं प्राणी वैज्ञानिकों के लिए अति महत्त्वपूर्ण है ।
( ii ) संकरण द्वारा दो विभिन्न वंशों के अच्छे लक्षणों को साथ – साथ एक ही वंश में लाया जा सकता है तथा अनुपयोगी लक्षणों को हटाया जा सकता है ।
( iii ) मेण्डल के नियमों के उपयोग से रोग प्रतिरोधक तथा उच्च उत्पादन वाली , फसली पौधे तथा फलदार वृक्षों की किस्मों को विकसित किया जा सकता हैं । इसी प्रकार संकरण द्वारा गाय , भैंस , बकरी तथा मुर्गी की अच्छी नस्लों को विकसित किया जा सकता है ।
( iv ) मानव जाति के सुधार से सम्बन्धित विज्ञान की शाखा “ सुजननिकी ” ( Eugenics ) भी मेण्डलीय नियमों पर आधारित है ।