राजस्थान में वनों के प्रकार Types of Forests in Rajasthan in Hindi
शुष्क सागवान वन (Dry Teak Forests)
शुष्क सागवान वन 75 से 110 से.मी. वार्षिक वर्षा वाले क्षेत्रों में पाए जाते हैं । राजस्थान में मुख्यत : बांसवाड़ा में ये सघन रूप में पाए जाते हैं । इसके अलावा प्रतापगढ़ , डूंगरपुर , दक्षिणी उदयपुर , आबू पर्वत के कुछ भाग तथा बारा , कोटा व झालावाड़ जिलों में भी सागवान के वन चौड़ी पत्ती वाले अन्य वृक्षों के साथ मिश्रित रूप में पाए जाते हैं । इन वनों का मुख्य वृक्ष देशी सागवान है । इसलिए इन्हें सागवान वन कहते हैं । इनमें पाए जाने वाले अन्य वृक्ष बरगद , आम , तेंदू , गूलर , महुआ , साल , खैर आदि हैं । शुष्क सागवान वन राज्य के कुल वन क्षेत्र के लगभग 6.86 प्रतिशत भाग में विस्तृत हैं ।
उष्ण कटिबंधीय शुष्क या मिश्रित पतझड़ वन (Mixed Decidious Forests)
इस प्रकार के वन दक्षिणी एवं दक्षिणीपूर्वी अरावली के मध्यम ऊँचाई वाले ढालों , जहाँ वर्षा का वार्षिक औसत 50 से 80 सेमी . रहता है , में पाए जाते हैं । इस प्रकार के वन उदयपुर , बांसवाड़ा , सिरोही , राजसमंद , चित्तौड़ , भीलवाड़ा , सवाई माधोपुर , कोटा , बाराँ , झालावाड़ , डूंगरपुर व बूंदी जिलों में सर्वाधिक हैं तथा जयपुर , अजमेर , भरतपुर , धौलपुर , अलवर आदि जिलों में अधिक कटाई के कारण ये वन बहुत कम मात्रा में रह गए हैं । इस प्रकार के वनों के मुख्य वृक्ष – आम , खैर , ढाक , धोकड़ा , गुलर , बरगद , तेंदू , सेमल , साल , बाँस , केर , ओक , थोर आदि हैं । इन वनों के वृक्ष वर्ष में एक बार ( सामान्यत : मार्च अप्रैल में ) अपने पत्ते गिराते हैं । ढाक या पलास वन सभी नदी घाटियों में जहाँ सागवान के वृक्ष पाये जाते हैं , मुख्य रूप से मिलते हैं । राज्य के कुल वनों का 28.38 ( 28.4 % ) प्रतिशत क्षेत्र इन वनों से आच्छादित है ।
उपोष्ण कटिबंधीय सदाबहार वन (Sub Tropical Evergreen Forests)
ये वन सिरोही जिले में केवल आबू पर्वत के चारों ओर 52 किमी . क्षेत्र में लगभग 150 सेमी या अधिक वार्षिक वर्षा व अधिक ऊँचाई वाले क्षेत्रों में पाए जाते हैं । ये वन सघन तथा वर्ष भर हरे भरे रहते हैं । यह वानस्पतिक विविधता की दृष्टि से राज्य का सर्वाधिक सम्पन्न क्षेत्र है । यहाँ मुख्यतः सिरस , बाँस , बेल , जामुन , रोहिड़ा आदि वृक्ष पाए जाते हैं । इन वनों में वानस्पतिक विविधता सर्वाधिक संपन्न रूप में है । इस प्रकार के वनों का क्षेत्र मात्र 0.39 प्रतिशत ही है ।
शुष्क या मरुस्थलीय वन (Dry Forests)
राज्य के मरुस्थलीय क्षेत्रों , जहाँ वर्षा का वार्षिक औसत 25 सेमी से भी कम पाया जाता है , के केवल खारे , दलदली व नमी वाले निचले क्षेत्रों , बस्तियों व कुँओं के आसपास कंटीली झाड़ियों , घास एवं वृक्षों के रूप में इस प्रकार के वन पाए जाते हैं । इन वनों की मुख्य वनस्पति खेजड़ी , बबूल , थूहर , केर , कोकर , बेर , फोग , रोहिड़ा व अन्य कंटीली झाड़ियाँ तथा सेवण , धामन , मुरात , अंजन , करड़ , सिरकानियाँ आदि घास हैं । इन वनों के वृक्ष व झाड़ियों की जड़ें मोटी व लम्बी , तने कंटीले , छाल मोटी , पत्तियाँ छोटी , चिकनी व गूदेदार होती है ताकि वाष्पोत्सर्जन कम हो । ये वन राज्य के कुल वन क्षेत्र का मात्र 6.26 प्रतिशत क्षेत्र में विस्तृत हैं । ये वन जैसलमेर , बाड़मेर , बीकानेर , जोधपुर , नागौर , चुरू , सीकर , झुंझुनूं , जालौर , गंगानगर व हनुमानगढ़ जिलों में पाए जाते हैं । जिन क्षेत्रों में नहरी पानी आ गया है वहाँ अन्य प्रकार के वृक्ष व फलदार पेड़ – पौधे भी पाए जाते हैं । मरुस्थलीय क्षेत्रों की शुष्क वनस्पति को मरुद्भिद ( Xerophytes ) कहते हैं । जैसलमेर से पोकरण व मोहनगढ़ तक पाकिस्तानी सीमा के सहारे – सहारे एक चौड़ी भूगर्भीय जल पट्टी , जिसे ‘ लाठी सीरीज क्षेत्र ‘ कहा जाता है , में उपयोगी सेवण घास अत्यधिक मात्रा में उगती है ।
अर्द्धशुष्क उष्ण कटिबंधीय धोक वन semi-arid tropical dhoka forest
ये वन अरावली के पश्चिमवर्ती अर्द्धशुष्क क्षेत्रों , यथा सोकर , झुंशन , जालौर . जोधपुर के पूर्ववर्ती भाग तथा टोंक , सवाईमाधोपुर , जयपुर आदि क्षेत्रों जहाँ वर्षा का वार्षिक औसत 50 से 60 सेमी रहता । तथा समुद्रतल से ऊँचाई 245 मी . से 760 मी . तक है , में पाए जाते हैं । इनमें मुख्यत : धोकड़ा , बबूल , खेजड़ी , रोहिड़ा , वर , कर , धृतर करून आदि वृक्ष व झाडियाँ मिलती है । साथ ही कस्बों व गांवों के आसपास पीपल , नीम , बड़ , अशोक आदि वृक्ष भी पाए जाते हैं । शुक व अद्धशुष्क वनों का क्षेत्र राज्य के कुल वनों का लगभग 58.11 प्रतिशत ( 19027 वर्ग किमी क्षेत्र में ) है । राज्य में धोकड़ा वन सर्वाधिक हैं । इन वनों का प्रमुख वृक्ष धोकड़ा है ।