राजस्थान में भेड़ संपदा, राजस्थान में भेड़ की नस्ल, राजस्थान में पशुपालन
राजस्थान में भेड़ की प्रमुख नस्ल – राज्य में कुल भेड़ों की संख्या 90.80 लाख (2012) जो कि सम्पूर्ण भारत की 16 प्रतिशत है तथा राज्य की कुल पशु सम्पदा की 15.73 प्रतिशत है। यदि राजस्थान में भेड़ों के क्षेत्रीय वितरण पर दृष्टिपात करे तो 50 सेमी. वर्षा रेखा के पश्चिम में लगभग 67 प्रतिशत भेड़ें पाई जाती हैं।
पश्चिमी भाग के जोधपुर (7.31 लाख), बीकानेर (6.53 लाख), नागौर (5.85 लाख), बाड़मेर (14.04 लाख) तथा पाली (8.50 लाख) और जैसलमेर (11.85 लाख) इन छ: जिलों में राजस्थान की कुल भेड़ों की संख्या का लगभग 60 प्रतिशत मिलता है।
2012 की पशुगणना के आधार पर राजस्थान की सर्वाधिक भेड़ें बाड़मेर जिले में (15.46%) तथा सबसे कम भेड़ें बासवाड़ा जिले (0.08%) में है 50 सेन्टीमीटर वर्षा रेखा के पूर्व में भीलवाड़ा (4.05 लाख), कोटा (0.18 लाख), जयपुर (2.29 लाख) और अजमेर (3.65 लाख) में भी भेड़ें पाई जाती है ।
सबसे कम भेड़ों की संख्या बांसवाड़ा में 0.07 लाख है । राज्य में भेड़ें व्यवसाय के विकास हेतु पृथक रूप से भेड़ व ऊन विभाग की स्थापना सन् 1963 में की गई ।
भेड़ों की मुख्य नस्लें
1. नाली
इस नस्ल की भेड़ें राजस्थान के उत्तरी क्षेत्र जैसे गंगानगर , हनुमानगढ़ , चूरू , सीकर , झुंझुनूं व बीकानेर में मिलती है । इनका चेहरा हल्के भूरे रंग का होता है । इन से प्राप्त होने वाली ऊन का रेशा लगभग 12-14 सेन्टीमीटर लम्बा होता है । प्रति भेड़ प्रतिवर्ष 3-4 किलोग्राम ऊन देती है । यह अधिक ऊन के लिए प्रसिद्ध है ।
2. मगरा
इस नस्ल की भेड़ें जैसलमेर , बीकानेर , चूरू तथा नागौर जिलों में पाली जाती हैं । इसकी ऊन मध्यम श्रेणी की होती है । प्रति भेड़ प्रतिवर्ष औसतन 2 किलोग्राम ऊन देती है । इनसे प्राप्त ऊन कालीन निर्माण के लिए उत्तम है । इस नस्ल की भेड़े चकरी एवं बीकानेरी चोकला के नाम से भी जानी जाती हैं ।
3. चोकला या शेखावाटी
इस नस्ल की सर्वाधिक भेड़े चूरू , झुन्झुनूं , सीकर , बीकानेर , जयपुर एवं नागौर जिलों में पाई जाती है । इनसे अच्छी किस्म की ऊन प्राप्त होती है । प्रत्येक भेड़ें प्रतिवर्ष औसतन 1-2 किलोग्राम तक ऊन देती है । यह नस्ल छापर के नाम से भी पुकारी जाती है । साथ ही इसे भारतीय मेरिनों भी कहते हैं ।
4. मारवाड़ी
इस इस नस्ल की भेड़ें सम्पूर्ण जैसलमेर , जोधपुर , नागौर , सिरोही , बाड़मेर , पाली , राजसमन्द , उदयपुर व अजमेर जिलों में मिलती हैं । राज्य की अधिकांश भेड़ें इसी नस्ल की है । इससे मध्यम व साधारण किस्म की ऊन मिलती है । प्रति वर्ष औसतन 2 3 किलोग्राम तक ऊन देती है । इन भेड़ों की रोग प्रतिरोधक क्षमता अधिक होती है ।
5. जैसलमेरी
इस नस्ल की भेड़ें सम्पूर्ण जैसलमेर जिले में तथा बाड़मेर व जोधपुर के पश्चिमी सीमान्त भागों में मुख्यतः पाई जाती है । भेड़ से प्राप्त ऊन मध्यम श्रेणी की होती है । प्रति भेड़ से प्रतिवर्ष औसतन 2-3.5 किलोग्राम तक ऊन प्राप्त होती है । राजस्थान में सबसे अधिक ऊन यही नस्ल देती है । इसकी मध्यम सफेद ऊन गलीचा बनाने के लिए अच्छी व उपयुक्त रहती है ।
6. मालपुरी
ये भेड़ें जपुर , दौसा , टोंक , करौली तथा सवाई .माधोपुर जिलों में तथा इनके साथ सटी अजमेर , भीलवाड़ा एवं बूंदी जिलो की सीमाओं पर मिलती हैं । ऊन मोटी होने के कारण गलीचे के लिए उपयुक्त होती है । प्रति वर्ष भेड से ऊन का उत्पादन 1.5 किलोग्राम तक ऊन देती है ।
7. सोनाड़ी अथवा चनोथर
इस नस्ल को भेड़ें बांसवाड़ा , भीलवाड़ा , चित्तौड़गढ़ , डूंगरपुर , राजसमन्द तथा उदयपुर जिलों में पाई जाती है । इनसे प्राप्त ऊन का रेशा छोटा होता है । प्रति भेड़ प्रति वर्ष 1 से 1.5 किलोग्राम तक ऊन देती है ।
8. पूगल
पूगल तहसील बीकानेर जिले में स्थित है। इसका उत्पत्ति स्थान पूगल होने के कारण इस नस्ल का नाम ही पूगल विख्यात हो गया। पूगल नस्ल की भेड़ें अधिकांशतः जैसलमेर व बीकानेर जिलों में तथा नागौर व जोधपुर जिलों के कुछ भागों में भी मिलती है। प्रति भेड़ वर्ष औसतन दो किलोग्राम तक ऊन मध्यम किस्म की देती है।
9. बागड़ी
इस नस्ल की भेड़ें राजस्थान में अलवर जिले मे पाई जाती है। इनसे प्राप्त ऊन का रेशा छोटा होता है।
10. खेरी
इस नस्ल की भेड़ें जोधपुर, पाली एवं नागौर के घुमक्कड़ रेवड़ों में पाई जाती है। इनकी ऊंन सफेद होती है और मध्यम किस्म के गलीचों हेतु उपयुक्त रहती है। प्रति भेड़ वर्ष औसतन 1 से 1.4 किलोग्राम तक ऊन देती है।
- राजस्थान में गोवंश | राजस्थान में गाये – पशु संपदा
- प्रतिवर्ती क्रिया और प्रतिवर्ती चाप Reflex Action and Reflex Arc in Hindi
- राजस्थान की जलवायु