राजस्थान के लोक देवता, लोक देवता किसे कहते हैं folk deities of rajasthan in hindi
लोक देवता से तात्पर्य उन महापुरुषों से है जिन्होंने अपने वीरोचित कार्य तथा दृढ आत्मबल द्वारा समाज में सांस्कृतियों मूल्यों की स्थापना, धर्म की रक्षा एवं जन हितार्थ हेतु सर्वस्व न्यौछावर कर दिया तथा ये अपनी अलौकिक शक्तियों एवं लोक मंगल कार्य हेतु लोक आस्था के प्रतीक हो गये। इन्हें जनसामान्य का दुःखहूत्र्त्ता व मंगलकर्त्ता के रूप में पूजा जाने लगा। इनके धान देवल, देवरे या चबूतरे जनमानस में आस्था के केन्द्र के रूप में विद्यमान हो गये। राजस्थान के सभी लोक देवता छुआछूत, जाति-पाँति के विरोधी व गौ रक्षक रहे है। एवं असाध्य रोगों के चिकित्सक रहे है।
पश्चिमी राजस्थान में 11वीं से 14वीं शताब्दी के बीच इस्लाम का प्रसार एक महत्वपूर्ण घटना थी। जनता की अपने धर्म से डिगती, आस्था, पशुधन का ह्रास, मंदिरों का क्षय जैसी कुछ प्रमुख सामाजिक व धार्मिक समस्यायें थी। सामाजिक क्षेत्रों में कुछ जातियो को निम्न दृष्टि से देखा जाता था। कर्मकांड दृष्टिविहीन हो गये थे। इसी परिस्थितियों में इस काल में राजस्थान में लोक देवताओं का आविर्भाव हुआ। इनका उदय समन्वित संस्कृति का ही परिणाम था और यही कारण है कि ये लोक देवता साम्प्रदायिक सद्भाव के प्रणेता थे। धार्मिक भेदभाव के बिना ये जन आस्था के केन्द्र थे। इन्होंने अपना ध्यान विशेषकर समाज के पिछड़े वर्गों पर केन्द्रित किया, जो पशुपालन संस्कृति से ओतप्रोत था। कई लोकदेवता पशुधन के रक्षक के रूप में पूज्य है। इनके विचार व कथन 15वीं व 16वीं शताब्दी मे संकलित हुए, जो वाणी, निशानी, छन्द, दोहा, ख्यात, वात, पद, गीता आदि के रूप में प्रसिद्ध है।
इन लोक देवताओं की प्रसिद्धि व लोकप्रियता का एक प्रमुख कारण उस संस्कृति विशेष से स्वयं को जोड़ना था, जो ग्रामीण समाज के निचले तबके की थी। सरल धर्म व नैतिक शिक्षा जनसाधारण में लोकप्रिय तो थी ही पर जिस शौर्य व साहस का परिचय इन नायकों ने दिया वह जन-जन के मानस व स्मृति का स्थायी हिस्सा बन गई। इन सभी लोक देवताओं के स्थानों पर गाने व नृत्य की परंपरा विद्यमान है। लोक देवी-देवताओं सम्बंधी महत्वपूर्ण शब्दावली निम्न है
1. नाभा
लोक देवी-देवताओं के भक्त अपने आराध्य देव की सोने, चाँदी, पीतल, ताँबे आदि धातु की बनी छोटी प्रतिकृति गले में बाँधते है उसे नाभा कहते है।
2.परचा
अलौकिक शक्ति द्वारा किसी कार्य को करना अथवा करवा देना परचा कहलाता है जो शक्ति का परिचय है।
3. चिरजा
देवी की पूजा अराधना के पद, गीत या मंत्र विशेषकर रात के जागरणों के समय महिलाओं द्वारा गाए जाते हैं इन्हें चिरजा कहा जाता है।
4. देवरे
राजस्थान के ग्रामीण अंचलों मे चबूतरेनुमा बने हुए लोक देवों के पूजा स्थल को देवरे कहते है।
5. पंचपीर
मारवाड़ अंचल में पाबूजी, हडबू जी, रामदेवजी मांगलिया व मेहा सहित पाँच लोक देवताओं के पंचपीर कहा गया है।
जो कि निम्न दोहे में परिलक्षित होते हैं।
“पाबू, हडबू, रामदेव, मांगलिया मेहा
पाँचो, पीर पधार, जो गोगाजी जेहा॥
राजस्थान के प्रमुख लोक देवता निम्न है
1. रामदेवजी
रामदेवजी लोकदेवताओं में एक प्रमुख अवतारी पुरूष है। इनका जन्म तंवर वंश के अजमल जी व मैणा दे के घर हुआ। समाज सुधारक के रूप में रामदेवजी ने मूर्ति पूजा, तीर्थ यात्रा व जाति व्यवस्था का घोर विरोध किया। गुरू की महत्ता पर जोर देते हुए इन्होंने कर्मों की शुद्धता पर चल दिया। उनके अनुसार कर्म से ही, भाग्य का निर्धारण होता है। वे सांप्रदायिक सौहार्द के प्रेरक थे। मुस्लिम समाज इन्हें ‘राम सा पीर’ के रूप में मानते हैं। राम देव जी का प्रमुख स्थान रामदेवरा (रूणेचा) है, जहां भाद्रपद माह में विशाल मेला भरता है।
- रामदेवजी एकमात्र लोक देवता जो कवि भी थे।
मुख्य मंदिर | रूणेचा / रामदेवरा |
अन्य मंदिर |
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जन्म स्थान | उडु कश्मीर (बाड़मेर) विक्रम संवत 1462 (1405) |
रामदेव के पिता | अजमल |
रामदेव की माता | मेणा- दे |
रामदेव की पत्नि | नेतल-दे |
रामदेव की बहन | मेघावल जाति की डालीबाई |
रामदेव के गुरू | बालिनाथ |
समाधि | राम सरोवर पाल (रूणेचा, जैसलमेर) |
- राम सरोवर पाल (रूणेचा, जैसलमेर) भाद्रपद शुक्ला एकादशी (1458ई. ) 1931 ई. रामदेव जी की समाधि पर बीकानेर महाराजा गंगासिंह ने मंदिर बनवाया।
- बाबा रामदेव का मेला भाद्रपद शुक्ला द्वितीय से एकादशी तक रामदेवरा में लगता है।
- रामदेवरा का मेला साम्प्रदायिक सद्भावना का प्रतीक माना जाता है।
- रामदेवजी को मुस्लिम भक्त रामसा पीर व हिंदु कृष्ण का अवतार मानते है। रामदेवजी के मेले का मुख्य आकर्षण कामड़िया पंथ के लोगों द्वारा किया जाने वाला तेरहताली नृत्य है।
- रामदेव जी की फड़ रावण हत्था नामक वाद्ययंत्र के साथ बाँची जाती है।
- सभी लोक देवताओं में सबसे लम्बा गीत रामदेव जी का ही है।
- रामदेवजी के भक्तों द्वारा गाए जाने वाले गीत बयावले कहलाते है।
- रामदेवजी के मेघवाल भक्तों को रिखीजों कहा जाता है।
- रामदेव का कुल – कंवर वंश के ठाकुर व अर्जुन के वंशज
- रामदेव का वाहन – घोड़ा लीला प्रतीक चिन्ह पगल्ये (पदचिन्ह)
- पंचरंगी ध्वज नेजा
- रचना चौबिस वनियान
- अवतार की तिथि भाद्रपद शुक्ला द्वितीया (बाबे-री-बीज)
- रात्रि जागरण जम्बो / नम्मा
- उपनाम रामसापीर, रूणेचा का धणी
- चलाया गया पंथ कामड़िया पंथ
- हिन्दू मुस्लिम एकता स्थापित करने पर जोर
- 1931 ई. रामदेव जी की समाधि पर बीकानेर महाराजा गंगासिंह ने मंदिर बनवाया।
2. गोगाजी
राजस्थान के पाँच पीरो में सबसे पहला नाम गोगाजी जी का आता है जो जेवर ददेरवा (चुरू की राजगढ़ तहसील) के चौहान शासक थे। गुजराती पुस्तक श्रावक व्रतादि अतिचार, रणकपुर प्रशस्ति व दयालदास के अनुसार इन्होंने अपने मौसेरे भाईयों अर्जन व सुर्जन के विरूद्ध गायों को बचाने के लिये भीषण युद्ध किया व वीर गति को प्राप्त हुए। भाद्रपद की कृष्ण नवमी को गोगानवमी के रूप में मनाया जाता है जिसमें यौद्धा के रूप में इनकी पूजा होती है। सर्प दंश के उपचार में गोगाजी की अर्चना की जाती है। इनकी सर्पमूर्ति स्थल प्रायः गाँवों मे खेजड़ी वृक्ष के नीचे होता है। नौ गाँठों वाली इनकी राखी (गोगा राखड़ी) हल चलाते समय हल व हाली दोनों के बांधी जाती है।
गोगाजी | साँपों के देवता (गोगाजी नाग वंशीज चौहान तथा पांच पौरों में सबसे प्रमुख माने जाते हैं) |
मुख्यमंदिर | गोगामेड़ी ( हनुमानगढ़) |
अन्य मंदिर | दादरेवा (शीशमेदी-चुरू), ओल्डी सचारी |
जन्म स्थान | दरेवा. चुरू (संवत् 1003) गोगाजी का निवास स्थान खेतड़ी वृक्ष के नीचे। गोरखनाथ जी के आशीर्वाद से गोगाजी का जन्म हुआ। |
गोगाजी के पिता | जेवरसिंह |
गोगाजी की माता | बाछल |
गोगाजी की पलि | केमल दे |
गोगाजी का कुल | नागवंशीय चौहान |
गोगाजी का घोड़ी | निला घोड़ा |
प्रतीक | भाला लिए घुड़सवार व सर्प |
- गोगाजी का मेला प्रतिवर्ष गोगामेड़ी में भाद्रपद कृष्ण नवमी (गोगा नवमी) को लगता है।
- गोगाजी का मेला हिन्दु मुस्लिम एकता का प्रतीक है। गोगाजी को महमूद गजनवी ने जाहर पीर (साक्षात् देवता के समान प्रकट होने वाला) कहा था जबकि हिन्दु इन्हें विष्णु का अवतार मानते है।
- गोगाजी के मंदिर का मुख्य आकर्षण मंदिर की आकृति मकबरेनुमा व ड्यौढ़ी पर बिस्मिलाह का चित्रांकन है।
- मंदिर का निर्माण गंगासिंह ने करवाया।
- गोगाजी के थान हमेशा खेजड़ी वृक्ष के नीचे होते है।
- मुहम्मद गजनबी से लड़ते वक्त गोगाजी का सिर ददरेवा (चुरू) में गिरा जिसे शीर्ष मेड़ी कहते
- समाधि स्थल गोगामेड़ी
- उपनाम जाहरपीर, साँपों का देवता
- गोगाजी ने धर्म रक्षार्थ हेतु मुस्लिम शासकों से 11 बार युद्ध किया।
- फड़ के साथ वाद्ययंत्र डेरू व मादल
- गौरक्षा व मुस्लिम आक्रान्ता महमूद गजनवी से देश की रक्षार्थ अपने प्राणों को न्यौछावर करने वाले गोगाजी की पूजा सर्पदंष से बचाव हेतु किसान अच्छी फसल के लिए हल व हाली के राखी बाँधते है। जिसे गोगा राखडी कहा जाता है।
3. पाबूजी
पाबूजी का जन्म मारवाड़ के राव आसथान के पुत्र धांधल जी राठौड़ के यहां 1239 ई. में हुआ। अपने बहनोई जायल (नागौर) नरेश जींद राव खीची द्वारा देवल चारणी की गायों को घेरे जाने के विरूद्ध पाबूजी ने कड़ा संघर्ष किया और वीर गति को प्राप्त हुये पाबूजी ऊँटों के देवता के रूप में पूजे जाते है। इनकी यश गाथा ‘पाबूजी की फड़’ में संग्रहित है।
पाबूजी | प्लेग रक्षक व ऊँटो के देवता |
मुख्य मंदिर | कोलुमन्ड (जोधपुर) |
जन्म | कोलु गाँव (1239 ई. में कोलुमण्ड गांव (फलौदी, जोधपुर) में हुआ) |
उपनाम | लक्ष्मण के अवतार ऊंटों के देवता, प्लेग रक्षक देवता, गायों के देवता। |
पिता | धाँधल जी राठौड़ |
माता | कमला देवी |
पत्नि |
अमरकोट के शासक सूरजमल सोढ़ा की पुत्री सुपियार सोढ़ी (फुलम दे) |
कुल | धाँधलोत शाखा के राजपूत राठौड़ व राव सीहा के वंशज |
घोड़ी | केसर कालमी (काला रंग) पाबुजी को यह घोड़ी देवल चारणी द्वारा दी गयी थी। |
प्रतीक | भालाधारी अश्वारोही |
- कोलुमंड में प्रतिवर्ष चैत्र अमावस्या को मेला लगना है।
- मारवाड़ में ऊँट लाने का श्रेय पाबूजी को ही है।
- रायका/ रेबारी जाति इन्हें अपना आराध्यदेव मानती है।
- मेहरजाति के मुसलमान इन्हें पीर मानकर पूजा करते हैं जबकि हिन्दु इन्हें लक्ष्मण का अवतार मानते है। इनके मेले का मुख्य आकर्षण पाबूजी की फड़ वाचन के समय रावण हत्थे का प्रयोग है।
- पाबूजी की फड़ राजस्थान के सभी लोक देवताओं में सबसे छोटी फड़ है। इन्होंने धोरी जाति को संरक्षण दिया था, जबकि पाबूजी से संबंधित गाथा गीत, पाबूजी के पवाड़े माठ वाद्ययंत्र के साथ नायक व रेबारी जाति के द्वारा गाये जाते है।
- 1276 ई. में जोधपुर के देचु गांव में पाबुजी अपने बहनोई श्री जींदराव खींची से देवल चारणी की गायों को छुड़ाते हुए वीर गति को प्राप्त हो गये।
- – पाबुजी की पत्नी फूलमदे पाबुजी के वस्त्रों के साथ सती हो गयी। पाबुजी का प्रतीक चिन्ह भाला लिये अश्वारोही बायी ओर झुकी पाग (पगड़ी)।
- – पाबुजी रा छन्द की रचना बीसूजा ने की।
- – पाबूजी रा दोहा लघराज
- पाबूजी के पावड़े ‘माठ’ वाद्य यंत्र के साथ थोरी जाति के लोगों द्वारा बांचे जाते
- पाबूप्रकाश आशिया मोडजी की रचना (पाबूजी की जीवनी)। कोलुमण्ड में चैत्र अमावस्या को पाबूजी का मेला लगता है।
- पाबुजी के भक्तों द्वारा थाली नृत्य किया जाता है।
- पाबूधणी से रचना थोरी जाति द्वारा सारंगी पर किया जाने वाला पाबूजी का यशोगान
- पाबूजी नारी सम्मान, गोरक्षा, शरणागत रक्षा एवं चीरता के लिये प्रसिद्ध है।
- पाबूजी विवाह के समय सूचना मिलते ही देवल चारण की गायों को मुक्त कराने के लिए बहनोई जायल नरेश जींदराव खींची से युद्ध करने चले गये तथा वीरगति को प्राप्त हुए।
4. हरभूजी / हडबू जी
विवाह मण्डप से उठकर हरभूजी भूडेल (नागौर) ग्राम के महाराजा सांखला के पुत्र थे। शस्त्र त्याग कर ये बाली जी के शिष्य बन गये। ये राव जोधा के समकालीन थे इन्होंने राव जोधा को मेवाड़ के अधिकार से मंडोर मुक्त कराने हेतु अपना आशीर्वाद व कटार भेंट की। मंडोर विजय के पश्चात राव जोध ने कृतज्ञता स्वरूप वेंगरी ग्राम अर्पण किया। हरभूजी बड़े सिद्ध योगी थे। जाति वर्ग का भेद किये बिना वे सबकों कृतार्थ करते थे। ईश्वर स्मरण व सत्संग का महत्व बताते हुए इन्होंने निम्न माने जाने वाली जातियों में आध्यात्मिक चेतना जागृत की। इनके प्रमुख स्थान ‘बेंगटी’ में मंदिर में मनौती पूर्ण होने पर जातरू हरभूजी की गाड़ी की पूजा करते हैं।
हडवू जी | शकुन शास्त्र के ज्ञाता |
मुख्यमंदिर | बैगटी गाँव, फलौदी, जोधपुर |
जन्म स्थान |
भूडोल “नागौर” (15 वीं शताब्दी में राव जोधा (1438-89 ई.) के समकालीन थे) बाबारामदेव के मौसरे भाई, पांचों पीरों के तीसरा स्थान है। |
गुरु | बालिनाथ |
पिता | मेहाजी साँखला (भूडोल के शासक) |
- मुख्यमंदिर का मुख्य आकर्षण पूजा स्थल पर मूर्ति के स्थान पर हड्बू जी की गाड़ी की पूजा की जाती है।
- हडबू जी रावजोधा के समकालीन थे।
- हडबू जी के पुजारी सांखला जाति के होते है।
- संकट काल में राव जोधा को तलवार भेंट की राव जोधा ने हरबू जी को बेंगटी की जागीर प्रदान की।
- मन्दिर में छकड़ा गाड़ी की पूजा।
- छकड़ा गाड़ी में हरवू जी पंगु गायों के लिए दूर-दूर से घास भरकर लाते हैं।
- सवारी-सियार,
- पुजारी परमार सांखला राजपूत
- बेंगटी में मंदिर का निर्माण 1721 ई. महाराजा अजित सिंह द्वारा
- खेतिहर और निम्न जातियों को आध्यात्मिक उन्नति की ओर ले जाने में महत्वपूर्ण योगदान मूर्तिपुजा तीर्थ यात्रा का विरोध, ईश्वर स्मरण, सत्संग, अच्छे कर्म पर जोर शकुन शास्त्र ज्ञाता भविष्य दृष्टा तथा वचनसिद्धे थे। रावजोधा की ओर से मेवाड़ की सेना (सिसोदिया अक्का व अहाड़ा हिंगोला) से मंडोर के युद्ध (1453 ई.) में शहीद
- हडबू जी रामदेव जी के मौसरे भाई थे।
5. तेजाजी
मारवाड़, अजमेर व किशनगढ़ में मुख्यतः जाट समुदाय द्वारा पूजित तेजाजी का जन्म, माघ शुल्ला चतुर्दशी वि.सं. 1130 को नागौर जिले के खड़नाल ग्राम में हुआ था। तेजाजी ने भी गौ रक्षा में अपने प्राणों की बाजी लगाई। मेरे लोगों से गायों की रक्षा करने के बाद जब वे घायलावस्था में थे तो सर्प दंश से उनकी मृत्यु हो गई। ऐसी मान्यता है कि सर्प दश से पीड़ित व्यक्ति यदि दांये पैर में तेजाजी की तांत (डोरी) बांध ले तो विष नहीं चढ़ता। राजस्थान के हर गाँव में तेजाजी का मंदिर मिल जाता है। भाद्रपद शुक्ला दशमी को इनकी स्मृति में परबतसर में विशाल पशु मेला लगता है।
वीर तेजाजी | काला बाला का देवता |
मुख्य मंदिर | सुरसरा,अजमेर |
अन्य मंदिर |
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जन्म स्थान |
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उपनाम |
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पत्नी | पैमल दे (पनेर के रायमल जी झांझर की पुत्री) |
कुल | नागवंशीय जाट |
घोड़ी | लीलण |
- भाद्रपद सुदी दशमी से पूर्णिमा तक पर्वतसर (नागौर)
- तेजाजी के संबंध में रोचक तथ्य यह है कि उन्होंने सर्पदंश के इलाज के लिए सबसे पहले गोबर की राख व गौमूत्र केप्रयोग की शुरूआत की थी।
- प्रतीक तलवार धारी, अश्वरोही
- तेजाजी के चबूतरे को थान व पुजारी को घोड़ला कहा जाता है।
- तेजाजी ने मेरो से लाछा गुजरी की गाय मुक्त कराते हुए प्राणोत्सर्ग किया।
मारवाड़ के जाटो के इतिहास पुस्तक मे तेजाजी का धौल्पा गौत्र बताया गया। धौल्या गौत्र की महिलाएँ पुनर्विवाह नहीं करती। किसान अच्छी फसल के लिए तेजाजी की पूजा करते है।
6. मेहाजी मांगलिया
बापणी गाँव जोधपुर में भाद्रपद कृष्ण अष्टमी (जन्माष्टमी) को मेला लगता है। इनके भोपों से संबंधित रोचक तथ्य यह है कि इनके भोपों की वंशवृद्धि नहीं होती है।
मांगलिया | मांगलिकों के इष्टदेव |
मुख्यमंदिर | बापणी गाँव, जोधपुर |
जन्म | बापणी गाँव ‘जोधपुर’ (15 वीं शताब्दी राव चुड़ा के समकालीन, मांगलियों के इष्ट देव।) |
घोड़ा | किरड़ काबरा गायों की रक्षा की। जैसलमेर के राव रणगदेव भाटी से युद्ध करते शहीद कृष्णा जन्माष्टमी को मेहाजी का मेला बापनी |
कुल | मांगलिया राजपूत गांव (ओसिया) में प्रमुख पूजा स्थला पालन-पोषण ननिहाल मांगलिया गोत्र में होने के कारण मेहाजी मागालिया नाम से प्रसिद्ध पूजा करने वाले भोपों की वंश वृद्धि नहीं होती। |
7. मल्लीनाथ जी
मल्लीनाथ जी | भविष्य दृष्टा व चमत्कारी पुरूष तिलबाड़ा, बाड़मेर |
मुख्य मंदिर |
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जन्म | जोधपुर 1358 ई. |
पिता | राव सलखा ( महेवा खेड़ बाड़मेर के शासक) |
दादा | राव तीड़ा |
माता | जाणी दे |
पत्नि | रानी रूपा दे |
- मल्लीनाथ जी निर्गुण व निराकर ईश्वर को मानते हैं। इन्हीं के नाम पर बाड़मेर के मालाणी क्षेत्र का नाम पड़ा।
8. तल्लीनाथ जी
तल्लीनाथ जी – प्रकृति प्रेमी लोक देवता
मुख्य मंदिर |
पंचमुखी पहाड़, पांचोटा गाँव, जालौर |
जन्म स्थान | शेरगढ़ (जोधपुर) |
वास्तविक नाम | गंगदेव राठौड़ |
पिता | शेरगढ़ ठिकाने के शासक वीरमदेव |
गुरू | जालन्धर नाथ |
उपनाम | जालौर के अत्यन्त प्रसिद्ध लोकदेवता |
- पंचमुखी पहाड़ के आस-पास के क्षेत्र को स्थानीय लोग ओरण मानते है।
- यहाँ कोई पेड़-पौधों को नहीं काटता है।
- आज भी पांचोटा गाँव के लोग किसी व्यक्ति या पशु के बीमार पड़ने या जहरीला कीड़ा काटने पर इनके नाम का डोरा बाँधते है।
- जहरीला जानवर काटने पर पूजा | ओरण के देवता के रूप में प्रसिद्ध । जालोर के प्रसिद्ध लोकदेवता । स्वभाव से प्रकृति प्रेमी व रणकौशल में निपूण | जालोर जिले के पाँचोटा गांव के निकट पंचमुखी पहाड़ी के बीच घोड़े पर सवार मूर्ति स्थापित।
9. देवजी (देवनारायणजी)
- गुर्जर जाति के आराध्यदेव
देवनारायण जी मुख्यमंदिर | गौठ दडावता, आसीन्द, भीलवाड़ा |
अन्य मंदिर |
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जन्म |
गौठा दडावता, आसीन्द (भीलवाड़ा) |
पिता | सवाई भोज |
वास्तविक नाम | उदयसिंह |
अन्य नाम | उदल जी |
पत्नी |
धारनरेश जयसिंह की पुत्री पीपलदे |
घोड़ा | लीलागर |
वंश | बगडावत (नागवंशीय गुर्जर) |
- इनका मेला भाद्रपद शुक्ल छठ व सप्तमी को लगता है।
- मेले से संबंधित रोचक तथ्य यह है कि इस दिन गुर्जर जाति के लोग दूध नहीं बेचते है।
- देवनारायण जी के मंदिरों से संबंधित मुख्य आकर्षण यह है कि देवरों में उनकी प्रतिमा के स्थान पर ईटों की पूजा की जाती है।
- भारत सरकार ने इनकी फड़ पर 2 सितम्बर, 1992 को पांच रू. का डाक टिकट जारी किया, जो राजस्थान की पहली । गुर्जरों का तीर्थ स्थल, सवाई भोज का मंदिर, आंसीद (भीलवाड़ा ) । मंदिर में नीम के पतों का प्रसाद चढाया जाता है।
- देवजी के पूजा स्थल – देवधाम जोधपुरीया (टोंक), देवमाली (भीलवाड़ा), देवमाली (ब्यावर ) । देव डुंगरी (चित्तौड़) – पूजा स्थल | देवरों में प्रतिमा के स्थान पर बड़ी ईंटों की पूजा देवजी का मूल ‘देवर’ आसीद के पास गोंठा दड़ावत में ।
- बाला व बाली इनकी संतानें। देवमाली (ब्यावर) में देह त्याग भाद्रभद शुक्ला षष्टी व सप्तमी को अजमेर, भीलवाड़ चित्तौड़ टोंक में मेले ।
- देवनारायण की फड़ जन्तर नामक वाद्ययंत्र के साथ बांची जाती है।
- इनकी फड़ सभी लोकदेवताओं मे सबसे लम्बी फड़ है।
- – 2 सितम्बर 1992 को देवनारायण जी की फड़ पर 5रू. का डाक टिकट जारी किया गया।
- देवनारायण जी ने मुस्लिम आक्रमणकारियों से युद्ध करते हुए देवमाली ब्यावर मे देह त्यागी थी।
- उपनाम- आयुर्वेद के ज्ञाता, विष्णु के अवतार
10. देवबाबा
देवबाबा- ग्वालों के देवता
मुख्य मंदिर | नगला जहाजपुर, भरतपुर |
उपनाम |
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- भाद्रपद शुक्ल पंचमी एवं चैत्र शुक्ल पंचमी नग्ला जहाज पुर मे मेला लगता है।
- वर्ष मे दो बार लगने वाले इन मेलों पर ग्वालों को भोजन कराने की परम्परा है।
- इनकी याद में श्रद्धालु लोग चरावाहों को भोजन कराते ।
11. भूरिया बाबा / गौतमेश्वर
भूरिया बाबा / गौतमेश्वर मीणाओं के इष्टदेव
जन्म | गौड़वाड़ क्षेत्र, शिवगंज तहसील (सिरोही)में मंदिर, सूकड़ी नदी के किनारे । |
मुख्य मंदिर | दिल्ली – अहमदाबाद के रेल्वे लाइन के पास सिरोही जिले के औसलिया गाँव मे जवाई नदी के तट पर। |
उपनाम |
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- भीणा जनजाति के लोक देवता, मीणा जाति के लोग इनकी झूठी कसम नहीं खाते।
- अरावली पर्वत श्रृंखला मे गौडवाड़ क्षेत्र मे मीणाओं का यह सबसे बड़ा मेला 13 अप्रैल से 15 अप्रैल के मध्य लगता है।
- इस मेले मे वर्दी धारी पुलिसकर्मियों का प्रवेश वर्जित है।
- इस मेले मे मीणा जाति के लोगों सत्य बोलने की शपथ लेते है।
- सिरोही में इनके मंदिर पर वसुन्धरा राजे पर हमला।
- प्रतिवर्ष 13 व 15 अप्रैल को मेला।
12. वीर कल्लाजी राठौड़
- चार हाथ वाले लोक देवता
मुख्य मंदिर | चित्तौड़ दुर्ग मे भैरवपॉल के पास |
मुख्यपीठ | रनेला नागौर |
जन्म | सामियाना गाँव मेड़ता (नागौर) (1544 ई.) |
पिता | राव अचला जी |
दादा | आससिंह, मीराबाई के भतीजें, राव जयमल के छोटे भाई, |
गुरू | योगी भैरवानाथ |
उपनाम | केहर, कल्याण, कमधज, ब्रह्मचारी, योगी, |
उपनाम |
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- नागणेची देवी की पूजा करके कई योग्य सिद्धियाँ प्राप्त की।
- 1568 में अकबर आक्रमण के समय अपने ताऊ जयमल को कन्धे पर बैठाकर युद्ध किया इसलिए इन्हों दो सिर व चार हाथ वाले देवता कहते है।
- सर्वाधिक मान्यता बाँसवाड़ा में (लगभग 200 मंदिर )
- चित्तौड़ किले के भैरव पोल के पास छतरी ( आश्विन शुक्ला नवमी को मेला ) ।
- थान पर भूत-पिशाच ग्रस्त लोगों व रोगी पशुओं का ईलाज जड़ी-बुटियों का ज्ञान व सिद्धियों के बल पर असाध्य रोग का इलाज।
- अकबर के विरुद्ध जयमल को कन्धे पर बिठाकर
- युद्ध लड़ा।
- कृष्ण नामक युवती ने कल्ला से विवाह नही किया फिर भी वह सती हुई थी।
13. वीर बग्गाजी
वीर बग्गाजी – जाखड़ समाज के कुलदेवता
पिता | रावमहन |
माता | सुल्तानी |
जन्मस्थान | रीडी गाँव, बीकानेर का जाट परिवार (1301 ई.) |
- इन्होंने मुस्लिम लुटेरों से गाय को बचाने हेतु प्राणोत्सर्ग किए थे। 1393 ई. राठली जोहड़ी के युद्ध में जंझार हुए।
- सम्पूर्ण जीवन गौ सेवा में व्यतीत, डूंगरगढ़ तहसील का बग्गा गांव इनके नाम पर।
- प्रति वर्ष 14 अक्टूबर को मेला । जाखड़ समाज के कुल देवता।
14. वीर फत्ता जी
- जन्म- सांथू गांव (जालौर), गज्जारणी परिवार में,
- मुख्य मंदिर- सांथू गाँव, जालौर
- सांथू गाँव में प्रतिवर्ष भाद्रपद शुक्ल नवमी को लगता है।
- इन्होंने लुटेरों से गाँव की रक्षा करते हुए प्राणोत्सर्ग किया।
- मुस्लिम लुटेरों से गांव की रक्षा करते शहीद।
15. वीरपनराजजी
- मुख्यमंदिर- पनराजसर गाँव, जैसलमेर
- जन्मस्थान – नगा गाँव जैसलमेर के क्षत्रिय परिवार में
- इन्होने काठोड़ी गाँव जैसलमेर के बाह्यण परिवार की गाय को मुस्लिम लुटेरों से बचाने हेतु प्राणोत्सर्ग।
16. हरिराम बाबा
- जन्म- 1602 ई (विक्रम संवत 1659)
- पिता- रामनारायण,
- माता- चन्दणी देवी,
- गुरू -भूरा
- मुख्य मंदिर- झोरड़ा गाँव (नागौर)
- इनके मंदिर में साँप की बाम्बी व बाबा के चरण प्रतीक के रूप में पूजा जाते है।
- इनके मेले चैत्र शुक्ल चतुर्थी और भाद्रपद हैं शुक्लचतुर्थी को लगता है।
17. भौमिया जी
- भौमिया जी- भूमि के रक्षक देवता
- राजस्थान किसान इनकी पूजा प्रायः खेत-खलिहान में करते है।
18. केसरिया कुँवर जी
- केसरिया कुँवर जी – सर्पदंश के इलाजकर्ता
- इनके स्थान पर सफेद रंग ध्वज होता है।
- गोगाजी के पुत्र
- इनके भोपा सर्पदंश से पीड़ित व्यक्ति का सफलता पूर्वक इलाज करते है।
- थान खेजड़ी वृक्ष के नीचे थान पर सफेद रंग की ध्वजा ।
19. बाबा झुंझर जी
- मुख्य मंदिर – मेलासियालोदरा (साधक)
- जन्म स्थान – इमलोहा गाँव सीकर के राजपूत परिवार में
- प्रतिवर्ष रामनवमी को स्यालोदड़ा गाँव मे मेला लगता है।
- इन्होंने अपने भाइयों के साथ मिलकर मुस्लिम लुटेरों से गाँव की रक्षा करते हुए प्राण गवा दिए थ।
20. झरड़ा जी / रूपनाथ
- जन्म स्थान – कोलूमण्ड, जोधपुर
- विशेष मंदिर- शिम्भूदडा गाँव, नोखा मण्डी बीकानेर
- अन्य मंदिर कोलुमण्ड जोधपुर
- इनकी हिमाचल प्रदेश मे बालकनाथ के नाम से पूजा की जाती है। पाबूजी के बड़े भाई बुढों जी के पुत्र थे।
- इन्होंने पिता व चाचा की मृत्यु का बदला जिदराव खींची को मारकर लिया था।
21. डूंगरजी- जवाहरजी- ( काका भतीजा)
- डूंगजी-जवाहरजी-सीकर के प्रसिद्ध लोकदेवता
- शेखावाटी क्षेत्र के ये दोनों भाई धनी लोगों को लूटकर सारा धन गरीबों में बाँट देते थे।
- डाकू के रूप में प्रसिद्ध लोकदेवता ।
- नसीराबाद छावनी को लुटा।
- लोटिया जाट व करणिया मीणा इनके प्रमुख सहयोगी ।
- सीकर जिले के लोक देवता (बठोठ-पाटोदा के कछवाह राजपूत) लुटेरे लोक देवता ।
- धनवानों व अंग्रेजों से धन लेकर गरीबों में बांटते ।
22. गालव ऋषि
- गालव ऋषि- 1857क्रांति के समय क्रांतिकारी
- मुख्यपीठ- गलता जी (जयपुर)
- जयपुर इस तीर्थ को राजस्थान का बनारस, जयपुर की छोटी काशी कहा जाता है।
23. मामादेव
- मामादेव- बरसात का देवता
- राजस्थान में जब कोई वीर योद्धा अपने चमत्कारों से स्थानीय क्षेत्र में विख्यात हो जाता है उसे मामाजी कहा जाता है।
- इनके पूजास्थल के स्थान पर मूर्ति के स्थान पर काष्ठ का तोरण होता है। जो गाँव के बाहर मुख्य सड़क पर प्रतिष्ठित होता है।
- इनको प्रसन्न करने हेतु भैसे की बलि दी जाती है।
- प्रतीक- अश्वारूढ मृणमूर्तियाँ जोकि हरजी गाँव जालौर की प्रसिद्ध है।
24. इलोजी
- छेड़छाड़ के लोक देवता
- स्वयं कुँवारे रहे लेकिन विवाह का वरदान देते है।
- मारवाड़ में छेडछाड के लोक देवता, अविवाहितों को दुल्हन व नवदम्पतियों को सुखद जीवन, बाँज स्त्रियों को संतान देन में सक्षम।
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