राजस्थान की प्रमुख झीलें ( Significant Lakes )
राजस्थान में जहां एक ओर खारी झीलें अपनी महत्वता रखती है वहीं दूसरी ओर मीठे पानी की झीलों का महत्व भी कम नहीं है । जहाँ प्राकृतिक झीलें मन को मोह लेती है वहीं कृत्रिम झीलें भी कम सौन्दर्यमयी नहीं है और साथ ही उपयोगिता की दृष्टि से भी लाभमयी है । राजस्थान की अधिकतर खारी झीलें आन्तरिक अपवाह के क्षेत्रों में हैं जहां छोटी – छोटी नदियाँ आकर प्राय : उनमें गिर कर समाप्त हो जाती हैं ।
अपने सामान्य पथ से हटकर निरन्तर उत्तरी दिशा में सीधे ही लगभग 20 किलोमीटर तक, जब तक यह मीठा खाड़ी में नहीं गिर जाती, बहती रहती है। इस प्रकार यह नदी तीन अवस्थाओं में बहती है लेकिन यह सब जल आपूर्ति पर निर्भर करता है।
राजस्थान की खारे पानी की झीले
1. सांभर झील
सांभर झील की लम्बाई दक्षिण – पूर्व से उत्तर – पश्चिम की ओर लगभग 32 किलोमीटर तथा चौड़ाई 3 किलोमीटर से 12 किलोमीटर है । इस क्षेत्र में औसत वार्षिक वर्षा लगभग 50 से.मी. है । मानसून काल में इसका जल 145 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैल जाता है । ग्रीष्म ऋतु में जब वाष्पीकरण की दर तेज होती है तो इसका विस्तार बहुत कम रह जाता है।
ऐसा अनुमान है कि झील में 4 मीटर की गहराई तक नमक की मात्रा 350 लाख टन है अर्थात् प्रति वर्ग किलोमीटर क्षेत्र पीछे 60,000 टन नमक होने का अनुमान है । वर्तमान में सांभर नमक परियोजना का प्रबन्ध हिन्दुस्तान नमक कम्पनी के हाथ में है । एक सोडियम सल्फेट संयंत्र स्थापित किया गया है । जिससे 50 टन प्रतिदिन सोडियम सल्फेट का उत्पादन किया जाता है
2 . डीडवाना झील :
यह नागौर जिले के डीड़वाना नगर के समीप .4 किलोमीटर लम्बी झील है । यह 27 ° 24 ‘ उत्तरी अक्षांश और 74 ° 34 पूर्वी देशान्तर पर स्थित है ।
इसके पेटे में चिपचिपी काली कीचड़ है जो संरचना की दृष्टि से सांभर झील के अनुरूप है । इसके नीचे खारे पानी के भण्डार हैं । यहाँ का नमक प्रायः खाने के अयोग्य होता है ।
3. पचपदरा झील :
यह झील बाड़मेर जिले में पचपदरा नामक स्थान पर खारे पानी की झील है । यह लगभग 25 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र पर विस्तृत है । यह झील वर्षा जल के ऊपर निर्भर नहीं है बल्कि – नियतवाही जल स्त्रोतों से इसे पर्याप्त खारी जल मिलता रहता है । लगभग 400 वर्ष पूर्व एक पंचा था जिसने इस झील के समीप आकर एक खेड़ा या पुरवा स्थापित किया। अतः उसके नाम के पीछे इसे पंचपदरा तथा बाद में अपभ्रंश होकर यह पचभद्रा पुकारा जाने लगा।
इसके पश्चात् खारवाल जाति के लोग ( अब खेरवाल कहलाते हैं ) यहाँ आंकर बसे जिन्होंने नमक निर्माण के कार्य को क्रमबद्ध तरीकों से प्रारम्भ किया । यह लोग मोरली झाड़ी की टहनियों का उपयोग नमक के स्फटिक बनाने के लिए करते हैं । नमक उत्तम किस्म का होता है जिसमें 98 % तक सोडियम क्लोराइड की मात्रा पाई जाती है ।
4. लूनकरनसर झील :
यह खारी झील बीकानेर के लूनकरनसर में स्थित है । इस झील से नमक बहुत ही कम बनाया जाता है । अन्य नमकीन झीलें फलोदी , कावोद ( जैसलमेर ) , कछोर और ‘ रेवासा है । लेकिन आश्चर्य इस बात का है कि प्रतिवर्ष इनसे बहुत बड़ी मात्रा में नमक तैयार करने के बाद भी नमक की मात्रा में कमी नहीं ! आई है । इस विषय में हूम्स , नोटिलिंग तथा हालैण्ड और क्राइस्ट आदि विद्वानों ने अपने विचार प्रकट किये हैं।
हूम्स के अनुसार इन झीलों के स्थान पर पहले एक विशाल जलाशय था जिसके सूख जाने के परिणामस्वरूप यहां नमक के इतने बड़े जमाव पाये जाते हैं । नोटिलिंग का अनुमान है कि सांभर झील में नमक भूमि के नीचे लवणीय जल के स्त्रोतों के प्रवाहित होने के फलस्वरूप मिलता है ।
हालैण्ड और क्राइस्ट के विचार हैं कि राजस्थान में इन झीलों में इतनी अधिक मात्रा में नमक पाये जाने का एक मात्र कारण ग्रीष्म ऋतु में चलने वाली दक्षिणी – पश्चिमी मानसून हवाएं हैं जो अपने साथ कच्छ की खाड़ी से सोडियम क्लोराइड नामक नमक धूल के कणों के रूप में राजस्थान की ओर ले आती हैं । ज्यों – ज्यों ये हवाएं राजस्थान की ओर अग्रसर होती हैं ,
उनकी गति में शिथिलता आने के कारण नमक के कणों को और आगे ले जाने में असमर्थ पाती हैं । फलस्वरूप नमक के कण राज्य के रेगिस्तानी क्षेत्रों में गिर पड़ते हैं । यह असंख्य नमक कण इस भाग की छोटी – छोटी नदियों के द्वारा वर्षा ऋतु में सांभर जैसी झीलों में पहुंचा दिये जाते हैं । ऐसा अनुमान लगाया जाता है कि प्रतिवर्ष ग्रीष्म ऋतु में इन पवनों द्वारा औसतन एक लाख टन नमक राजस्थान की इन झीलों में पहुंचा दिया जाता है । फलतः झीलों में नमक की मात्रा में कभी भी कमी महसूस नहीं होती है ।
राजस्थान की मीठे पानी की झीलें
जयसमन्द झील :
राणा जयसिंहजी ने सन् 1685-1691 में गोमती नदी पर बांध बनाकर इस झील को वर्तमान रूप दिया । यह बांध 375 मीटर लम्बा और 35 मीटर ऊँचा है । इसको देबर झील भी कहते हैं । यह झील उदयपुर शहर से लगभग 51 किलोमीटर दक्षिण – पूर्व में स्थित है । इस झील की लम्बाई उत्तर – पश्चिम से दक्षिण – पूर्व की ओर लगभग 15 किलोमीटर है और इसकी चौड़ाई 2 से 8 किलोमीटर तक है । इस झील का क्षेत्रफल 55 किलोमीटर झील है ।
राजस्थान की मीठे पानी की झीलों में यह सबसे बड़ी है और विश्व की दूसरी सबसे कृत्रिम झील है । इसकी परिधि 145 किलोमीटर है । इस झील का अपवाह क्षेत्र लगभग 1800 वर्ग किलोमीटर है । इस झील के क्षेत्र में छोटे – बड़े सात टापू हैं जिन पर भील व मीणा जाति के लोग रहते हैं । सबसे बड़े टापू का नाम बाबा का भागड़ा तथा उससे छोटे का नाम प्यारी है ।
सन् 1950 के पश्चात इस झील से सिंचाई के लिये दो नहरें श्यामपुरा नहर व भाट नहर बनाई गई । इन मुख्य नहरों की लम्बाई 324 किलोमीटर व वितरक नहरों की लम्बाई 125 किलोमीटर है । इसका प्रबन्ध अब राज्य सरकार के सिंचाई विभाग के हाथों में है ।
राजसमन्द झील :
महाराणा राजसिंह ने सन् 1662 में कांकरोली रेल्वे स्टेशन के निकट इस झील का निर्माण करवाया था । इस झील में गोमती नदी आकर गिरती है । यह झील लगभग 6.5 किलोमीटर लम्बी तथा 3 किलोमीटर चौड़ी है । इस झील का उत्तरी भाग नौ चौकी के नाम से प्रसिद्ध है जहां संगमरमर के 25 शिलालेखों मेवाड का इतिहास संस्कृत भाषा में अंकित हैं ।
आजकल इस झील से सिंचाई का काम भी लिया जाता है ।
पिछोला झील :
14 वीं शताब्दी के अन्त में राणा लाखा के शासन काल में एक बनजारे ने इस झील को बनवाया था । यह झील उदयपुर के पश्चिम में पिछोली गांव के किनारे पर स्थित होने के कारण के पिछोला के नाम से जानी जाती है ।
यह झील लगभग 7 किलोमीटर चौड़ी है । इस झील में स्थित दो टापुओं पर जग मन्दिर और जग निवास दो सुन्दर महल बने हुए हैं । इसमें अब लेक पेलेस होटल खुला हुआ है । आनासागर झील- यह झील अजमेर में दो पहाड़ियों के मध्य अत्यन्त रमणीय लगती है । यह एक सुन्दर कृत्रिम झील है ।
इस झील को सम्राट पृथ्वीराज चौहान के पितामह आनाजी ने सन् 1137 के लगभग बनाया था । जहाँगीर इस स्थान की सुन्दरता से इतना प्रभावित हुआ कि उसने बांध के नीचे एक उद्यान ‘ दौलत बाग ‘ बनवाया जिसे अब ‘ सुभाष उद्यान ‘ के नाम से जाना जाता है ।
सिलिसेढ़ झील :
यह झील अलवर नगर से लगभग 12 . किलोमीटर दूर है तथा लगभग 10 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैली है । यह पर्यटकों का मुख्य आकर्षण केन्द्र है साथ ही इसमें नौका विहार की भी सुविधा है ।
कोलायत झील :
बीकानेर से लगभग 48 किलोमीटर दक्षिण पश्चिम की ओर कोलायत झील स्थित है । कहा जाता है कि यहाँ कपिल मुनि का आश्रम था । यहाँ वर्ष में कार्तिक पूर्णिमा के समय एक बड़ा मेला भी लगता है।
पुष्कर झील :
यह झील अजमेर से 11 किलोमीटर दूर पुष्कर में स्थित है । इनमें वर्ष भर पानी रहता है । झील के चारों ओर स्नान घाट बने हुए हैं । यहां अनेक मंदिर हैं। जिनमें ब्रह्मा जी का मंदिर सबसे प्राचीन है । पवित्र झील के पश्चिम में एक सीधी पहाड़ी की चोटी पर श्री ब्रह्मा जी की पत्नि सावित्री मां मन्दिर है ।
रंगजी के नाम से ज्ञात एक बैकुण्ठ नाथ जी का मन्दिर विशिष्ट दक्षिणी भारतीय शैली में बना हुआ है।