आज की युवा पीढ़ी पर निबंध

राष्ट्र निर्माण में युवा वर्ग का योगदान, राष्ट्र निर्माण और युवा वर्ग का दायित्व Essay on the younger generation in hindi

प्रस्तावना

किसी देश और किसी काल की गवाही ले लो, युवावर्ग ने ही मानवीय मूल्यों को सम्मान की मालाएँ पहनाई हैं। युवा शक्ति ने बर्बर साम्राज्यवादी लिप्सा की आँधियों से सीना अड़ाया है। अन्याय शोषण और उत्पीड़न के खण्डहरों पर युवा हाथों ने ही आजादी का परचम लहराया है। हर चुनौती के जवाब में युवा वाणी ने यही दोहराया है

सर फरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है।
देखना है जोर कितना, बाजुए कातिल में है॥

युवावर्ग की क्षमता

विधाता के किसी निर्माण को देखो। जवानी उसकी आयु का चरम क्षण होती है। जवानी की उमंगें सागर को मात करती हैं। जवानी की कल्पनाएँ आकाश को भी छोटा साबित कर देती हैं, धरती को फोड़कर जलधारा निकाल सकती हैं, पहाड़ों के सिर पर से | रास्ता बना लेती हैं। कवि प्रसाद ने भी युवारक्त की भूमिका को सराहा है

‘प्रकृति के यौवन का श्रृंगार करेंगे कभी न बासी फूल।’

हर देश को, हर समाज को जवानी चाहे तो उन्नति के चरम शिखर पर पहुंचा दे और जवानी चाहे तो पतन के गर्त में गिरा दे। युवावर्ग की क्षमताओं का दोहन करने वालों के ईमान पर निर्भर है कि वे इस छुरी से निरपराध का गला काटते हैं या इसे एक शल्य चिकित्सक के हाथ में थमा कर किसी मरणोन्मुख के प्राण बचाते हैं। युवा व्यक्ति की कार्यक्षमता, उसका उत्साह, उसकी कल्पनाएँ और उसकी अभिलाषाएँ, उच्च स्तर की होती हैं। उनको सही दिशा मिल जाय तो वे राष्ट्र तो क्या सारे संसार को बदल सकते हैं।

यदि वृद्ध पुरुष राष्ट्र का मस्तिष्क होते हैं तो युवक उसकी माँसपेशियाँ, उसके हाथ, उसके पाँव होते हैं। जीवन के हर क्षेत्र में युवावर्ग की आवश्यकता होती है चाहे वह साधना का क्षेत्र हो या युद्ध का क्षेत्र, उद्यम का क्षेत्र हो या उत्पादन का निर्माण का क्षेत्र हो या ध्वंस का, कला का क्षेत्र हो या साहित्य का क्षेत्र । अतः युवावर्ग की क्षमताएँ अनन्त हैं। उनका सही उपयोग ही महत्त्वपूर्ण है।

युवावर्ग का देश के प्रति दायित्व

देश एक विशाल परिवार होता है। अतः जो भूमिका युवावर्ग की परिवार में होती है उसी का विराट रूप देश के प्रति भी देखने को मिलना चाहिये। हर देश का भविष्य उसके युवावर्ग पर निर्भर होता है। अतः युवावर्ग को इस उत्तरदायित्व की योग्यता प्राप्त करनी चाहिये। वह जहाँ भी, जिस भी देश में है वहीं रहते हुए वह देश के प्रति अपने कर्त्तव्य का पालन कर सकता है।

विद्यार्थी के रूप में उसे अध्ययनशील, अनुशासित, स्वस्थ और चरित्रवान बनना चाहिये। व्यापारी के रूप में उसे उचित मुनाफा लेते हुए उपभोक्ताओं की सुविधा पर ध्यान देना चाहिये। प्रशासक के रूप में उसे भ्रष्ट और समाज विरोधी लोगों पर नियन्त्रण करना चाहिये। राजनीतिज्ञ के रूप में उसे बूढ़े शिकारियों की कठपुतली न बनकर देशहित के अनुकूल आचरण करना चाहिये। सेना में रहकर देश पर आने वाले संकट के मुकाबले को तैयार रहना चाहिये ।

स्वस्थ तन और स्वस्थ मन, यही युवावर्ग की सच्ची पूँजी है। आज की टेलीविजनीय संस्कृति ने युवावर्ग को अपने मायाजाल में इस प्रकार उलझा लिया है कि वह अपने कर्तव्यों से भटक रहा है। वह झूठी कल्पनाओं और निराधार महत्त्वाकांक्षाओं के हाथों बिकता जा रहा है। इसी का दुष्परिणाम सामाजिक अशान्ति और अव्यवस्था के रूप में सामने आ रहा है। आज के युवकों को देश और समाज के हित पर चर्चा करना, समय नष्ट करना प्रतीत होता है। यह शुभ संकेत नहीं है। है

युवावर्ग के प्रति समाज का दायित्व

जहाँ युवावर्ग से राष्ट्र और समाज के प्रति बड़ी अपेक्षायें की जाती हैं वहीं युवावर्ग के प्रति समाज का दायित्व भी विचारणीय है। युवावर्ग से सारा समाज लाभ उठाना चाहता है। पिता उसे आज्ञाकारी पुत्र, गुरु प्रतिभाशाली और सुसंस्कृत छात्र, प्रशासन कानून और व्यवस्था का सम्मानकर्ता और लोकतन्त्र एक सजग पहरेदार देखना चाहता है। प्रश्न यह है कि इस युवाशक्ति के प्रति समाज या राष्ट्र क्या कर्त्तव्य निभाता है? उसकी आकांक्षाओं,उसके भविष्य,उसके कुशल-क्षेम के प्रति राष्ट्र या लोकतन्त्र कितना सजग है ?

समाज का हर वर्ग, लोकतन्त्र का हर स्वयंभू ठेकेदार युवकों को अपने पक्ष में खरीद लेना चाहता है। उसकी क्षमता, उसकी प्रतिभा, उसके साहस, सभी पर सामाजिक डकैतों की आँखें लगी रहती हैं। उसकी समस्याओं और अभावों के प्रति लोकतन्त्र की क्या कोई भूमिका नहीं? भारतीय लोकतन्त्र का भविष्य जिनके कन्धों पर टिका है उन युवाओं को बेरोजगार भटकते देखकर, उनका चरित्र पतन होते देखकर क्या लोकतन्त्र को तनिक भी लज्जा का अनुभव होता है। केवल युवावर्ग के बाहुबल का और उसकी प्रतिभा का शोषण ही लोकतन्त्र का पावन कर्त्तव्य बन गया है। युवावर्ग की उपेक्षा करके कोई समाज सुखी नहीं रह सकता।

लोकतन्त्र की प्रतिष्ठा

पूरे भारत के लिये लोकतन्त्र या गणतन्त्र कुछ नई या अद्भुत राजनीतिक प्रणाली नहीं है। प्राचीनकाल में भी भारत में गणतन्त्रात्मक राज्य थे और आज भी लोकतन्त्र की जड़ें बहुत गहरी हो चुकी हैं। केवल मताधिकार दे देने से कोई लोकतन्त्र प्रगतिशील, स्थायी और प्रतिष्ठा का पात्र नहीं हो सकता। लोकतन्त्र को प्रतिष्ठा और स्थायित्व दिलाने वाले उसके युवक ही होते हैं। भारतीय लोकतन्त्र की अधिकांश समस्यायें उसके युवकों की समस्यायें हैं और युवावर्ग पर ही उनके समाधान भी हैं। बबूल बोकर आम खाने की आशा करना, मात्र मूर्खता ही नहीं अपितु लोकतन्त्र के प्रति एक अपराध भी है। युवा पीढ़ी में हम जैसे संस्कार बोयेंगे वैसे ही काटने पड़ेंगे। उनकी सुशिक्षा, स्वास्थ्य, मनोरंजन, जीवन-यापन और अभिलाषाओं के प्रति यह लोकतन्त्र जितना जागरूक और सचेष्ट रहेगा, उतना ही उनसे अपेक्षाएँ कर सकेगा।

भारतीय लोकतन्त्र के युवावर्ग में व्याप्त असन्तोष, भटकाव और निराशा उसकी प्रतिष्ठा को कभी उज्ज्वल नहीं बना पायेगी। इन समस्याओं का उचित निदान करने पर ही एक राष्ट्र प्रेम और लोकतन्त्र की प्रहरी युवाशक्ति का निर्माण होगा और लोकतन्त्र का भविष्य सुरक्षित होगा।

उपसंहार

युवावर्ग और अणुशक्ति की प्रकृति एक जैसी है। यह एक दुधारी तलवार के समान है। इसका उचित और विवेकपूर्ण प्रयोग ही राष्ट्र के सर्वांगीण कुशलक्षेम का आधार है। युवावर्ग पर दोषारोपण करने वाले वयोवृद्धों को नहीं भूलना चाहिये कि अपने तुच्छ स्वार्थों के साधन के लिये उन्होंने ही युवावर्ग को पथभ्रष्ट, अनुशासनहीन और अनुत्तरदायी बनाया है। वृद्ध पीढ़ी को चाहिए कि युवापीढ़ी के सामने आचरण का आदर्श रखे, उसे केवल कुर्सियों की सीढ़ी और तिजोरियों का पहरेदार बनाकर ने रखें।

 

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