मोलस्का का वर्गीकरण

संघ मोलस्का (Phylum Mollusca) जंतु जगत का दूसरा सबसे बड़ा समूह है। इस संघ के सदस्यों का शरीर कोमल तथा खण्डविहीन होता है। शरीर लिफाफेनुमा मेन्टल (mental) से घिरा रहता है, जो बाह्य कवच (shell) का स्त्रावण करता है।

मोलस्का के सामान्य लक्षण (General characteristics of Mollusca

  • इस संघ के सदस्य समुद्री जल, अलवणीय जल या नम भूमि में पाये जाते हैं।
  • ये स्वतंत्र जीवी तथा चट्टानों से चिपके हुए पाये जाते हैं।
  • इनका शरीर द्विपार्श्व सममित (bilateral symmetry), त्रिस्तरीय (triploblas tic) एवं अखण्डीय (unsegmented) होता है। अनेक जन्तुओं में ऐठन (torsion) के कारण शरीर असममित हो जाता है।
  • शरीर श्लेष्मा के द्वारा चिकना होता है।
  • शरीर सिर, पाद आन्तरांग (visceral organs) तथा प्रावार (mental) में विभाजित होता है। प्रावार देह भित्ति के ऊपर लिफाफेनुमा रचना होती है जो कठोर कैल्शियमी कवच (shell) का स्रावण करती है।

  • सिर पर अन्तस्थ मुख, नेत्र, स्पर्शक तथा अन्य संवेदी अंग स्थित होते हैं। ये पेलेसिपोड़ा तथा स्कैफोपोडा में अनुपस्थित होता है।
  • पाद अधर सतह पर स्थित होता है, जो पेशीय (muscular) होता है। यह रेंगने, बिल बनाने या तैरने में सहायक होता है।
  • आहार नाल सीधी या ‘U’ आकार की या कुण्डलित होती है। मुख गुहा (buccal cavity) में भोजन पीसने के लिए रेतनांग (radula) पाया जाता है।
  • आंतराग (viseral mass) में सभी अंग स्थित होते हैं।
  • श्वसन अंग एक या अधिक क्लोम या टीनिडिया (ctenidia) या फुफ्फुस (lungs) होते हैं।
  • परिसंचरण तन्त्र खुले प्रकार का होता है। यह कुछ जगह कोटरों (lacunae) में खुलता है। सेफेलोपोडा वर्ग के सदस्यों में परिसंचरण तंत्र बन्द प्रकार का होता है।
  • श्वसन वर्णक हीमोसायनिन (heamocyanin) होता है।
  • उत्सर्जन अंग वृक्क (kidney) या मेटानेफ्रीडिया (matanephridia) या वोजनस के अंग (organ of bojanus) या केबर की ग्रन्थि (Keber’s organ) आदि पाये जाते हैं।
  • तंत्रिका तन्त्र युग्मित गुच्छक (paired ganglia), संयोजक (connective) तथा तन्त्रिकाओं का बना होता है।
  • संवेदी अंग नेत्र, स्टेटोसिस्ट (statocyst) या जलक्षिका (osphradium) पाये जाते हैं।
  • जन्तु एकलिंगी (unisexual) होते हैं।
  • निषेचन (fertilization) आन्तरिक या बाह्य होता है।
  • विदलन सर्पिल (spiral) प्रकार का होता है।
  • परिवर्धन प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष प्रकार का होता है।
  • स्वतंत्र जीवी लार्वा वेलिजर (velliger) या ग्लॉकीडियम (glochidium) होता है।

मोलस्का का वर्गीकरण (Classification)

मोलस्का के जन्तुओं का वर्गीकरण पाद (foot), श्वसन अंग (respiratory organs), प्रावार (mental) तथा कवच (shell) के आधार पर किया जाता है। मोर्टन व योंग (1964) और पार्कर व हैसवेल (1972) के अनुसार संघ मोलस्का को 6 वर्गों में वर्गीकृत किया गया है

(A) वर्ग- मोनोप्लैकोफोरा (Class-Monoplacophora)

  1. इस वर्ग के सदस्य समुद्री जल में पाये जाते हैं।
  2. इनमें ऐनेलिडा (Annelida) एवं आर्थोपोडा (Arthopoda) दोनों संघ के लक्षण मिलते हैं।
  3. कवच एककपाटीय होता है।
  4. शरीर द्विपार्श्व सममित तथा सखण्ड होता है।
  5. पृष्ठ सतह पर कुण्डलित कवच उपस्थित होता है।
  6. 8 जोड़ी पेशियाँ, 5 जोड़ी गिल्स तथा 6 जोड़ी नेफ्रीडिया पाये जाते हैं। उदाहरण- निओपिलाइना (Neoplina) ।

(B) वर्ग- एम्फीन्यूरा (Class-Amphineura)

  1. सभी सदस्य समुद्री जल में पाये जाते हैं।
  2. शरीर द्विपार्श्व सममित होता है, स्पष्ट सिर का अभाव होता है।
  3. कवच अनुपस्थित या उपस्थित होता है।
  4. प्रावार व रेड्यूला उपस्थित होता है।
  5. निषेचन बाह्य एवं परिवर्धन अप्रत्यक्ष होता है।
  6. ट्रोकोफोर लार्वा पाया जाता है।

(C) क्लास-स्कैपोपोडा

  1. सभी सदस्य समुद्री तथा बिलकारी हैं।
  2. कवच नलाकार (tubular) होता है, जो दोनों सिरों पर खुला होता है।
  3. स्पष्ट सिर, नेत्र तथा पाद अनुपस्थित होते हैं।
  4. पाद शंकुरूपी होता है।
  5. गिल अनुपस्थित होते हैं।
  6. हृदय अवशेषी प्रकार का होता है।
  7. एकलिंगी होते हैं।

उदाहरण- डेन्टालियम (Dentalium)

(D) वर्ग- गैस्ट्रोपोडा (Class-Gastropoda)

  1. इस वर्ग के सदस्य अलवणीय जल, समुद्री जल या नम भूमि पर जाये जाते हैं
  2. ऐंठन (torsion) के कारण शरीर तथा कवच असममित हो जाता है।
  3. सिर स्पष्ट, स्पर्शक एवं नेत्र उपस्थित होते हैं।
  4. रेड्यूला उपस्थित होता है।
  5. पाद अधरीय, चौड़ा, चपटा व पेशीय होता है।
  6. हृदय एक परिहृदीय झिल्ली (pericardium) द्वारा परिबद्ध होता है।
  7. श्वसन अधिकांशतः गिल द्वारा होता है।
  8. परिवर्धन के समय वेलियर या टोकोफोर लार्वा उपस्थित होता है।

(E) वर्ग- पेलेसिपोडा या बाइवाल्विया (Class-Pelecypoda or bivalvia)

  1. इसके सदस्य भी समुद्री या अलवणीय जल में पाये जाते हैं।
  2. इनका कवच दो कपाटों (bivalved) का बना होता है।
  3. सिर अस्पष्ट होता है, नेत्र व स्पर्शक अनुपस्थित होते हैं।
  4. पाद (foot) हलनुमा (फरसे की आकृति) होता हैं।
  5. प्रावार द्विपालि युक्त होता है।
  6. उत्सर्जी अंग एक जोड़ी वृक्क या वृक्कक होते हैं।
  7. ज्ञानेन्द्रियाँ मुख्यतः स्टेटोसिस्ट (statocyst) तथा जलेक्षिका होती है।
  8. जीवन वृत्त में वेलीजर (Velliger) या ग्लॉकीडियम लार्वा पाया जाता है।

उदाहरण- यूनियों (Unio), माइटिलस (Mytilus), ट्रेरिडो (Teredo), पर्ल आयस्टर पिन्कटैंडा (Pinchtada) |

(F) वर्ग- सेफैलोपोडा (Class-Cephalopoda )

  1. सभी सदस्य समुद्री जल में पाये जाते हैं। ये स्वतन्त्र जीवी होते हैं।
  2. बाह्य कंकाल (exoskeleton) तथा अन्त: कंकाल (endoskeleton) उपस्थित या अनुपस्थित होता है।
  3. शरीर द्विपार्श्व सममित होता है.
  4. प्रावार (mental) मोटा तथा माँसल होता है।
  5. पाद, सिरे पर भुजाओं में विभाजित होता है। भुजाओं पर चूषक पाये जाते हैं।
  6. जीवन वृत्त में लार्वा अवस्था अनुपस्थित होती है।
  7. इस वर्ग के सदस्य सबसे बड़े अकशेरूकी होते हैं।
  8. स्याही ग्रन्थि (ink glands) उपस्थित होती है।

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