पेशियों की संरचना, पेशी संकुचन की क्रियाविधि, रेखित पेशी, अरेखित पेशियां, हदय पेशी, पेशियों के कार्य [ Human Body Muscles]

संकुचनशीलता तथा गतिशीलता, प्रोटोप्लाज्म के आधारभूत गुण हैं। इस कारण सभी कोशिकाओं में पर्याप्त गतिशीलता पाई जाती है। कोशिकाओं में गति के लिए संकुचन मुख्यतः दो संकुचनशील प्रोटीनों (एक्टिन व मायोसिन) की अंतर्क्रिया के कारण होता है। ये ऊतक विभिन्न उद्दीपनों के अनुरूप शरीर के प्रचलन या अंगों की गति के लिए उत्तरदायी होते हैं। इनकी उत्पत्ति भ्रूणीय मीजोडर्म (mesoderm) से नेत्र के आइरिस व सीलियरी (बॉडी के अतिरिक्त) क्योंकि इन दोनों की उत्पत्ति भ्रूणीय एक्टोडर्म से होती है।

हमारे शरीर में 40% से 50% भाग का निर्माण पेशियों द्वारा होता है। पेशी कोशिकाएँ सदैव लम्बी, संकरी व तर्कुरूपी (Spindle-shaped) तन्तुमय होती हैं अतः उन्हें पेशी तन्तु (Muscle fibres) कहते हैं। इनमें एक्टिन (Actin) व मायोसिन (Myosin) से निर्मित अनेक मायोफाइब्रिल्स पाये जाते हैं। पेशी कोशिकाएँ एक बड़ी सीमा तक विभाजन (division), गुणन (multiplication) तथा पुनर्जनन की क्षमता खो देती हैं । पेशीय कोशिकाएँ शाखित होती हैं muscle cells are branched

पेशियों के प्रकार type of muscle in human body

स्थापन के आधार पर पेशियाँ तीन प्रकार की होती हैं

 1. रेखित पेशियाँ (Striated Muscles) –

शरीर की अधिकांश पेशियाँ रेखित होती हैं। ये सामान्यतः मस्तिष्क के संचेतन नियंत्रण में ऐच्छिक गतियाँ करती हैं अतः इन्हें ऐच्छिक पेशियाँ (Voluntary muscles) भी कहते हैं। इनमें से अधिकांश पेशियाँ शरीर के विभिन्न भागों में अपने दोनों सिरों पर) अस्थियों से सम्बन्धित (Inserted at both end upon bones) रहती हैं। अतः इन्हें कंकालीय पेशियाँ (Skeletal muscles) भी कहते हैं।

रेखित पेशी का चित्र

 

पादों तथा शरीर की गति मुख्यत: इन पेशियों पर निर्भर करती है अतः इन्हें कायिक (Somatic) पेशियाँ भी कहते हैं। इन्हें फेजिक (Phasic) प्रकार की पेशियाँ भी कहते हैं क्योंकि इनका संकुचन तीव्र किन्तु कम समय तक होने के कारण इनमें शीघ्र थकान हो जाती है।

ये मुख्य रूप से चलन क्रिया और शारीरिक मुद्रा बदलने में सहायक होती हैं।

2. अरेखित पेशियाँ (Unstriated Muscles)

रेखाओं या धारियों की अनुपस्थिति के कारण ये पेशियाँ चिकनी (Smooth), प्लैन (Plain), अरेखित (nonstriated) या अनैच्छिक पेशियाँ कहलाती हैं। ये खोखले आन्तरिक अंगों (आहारनाल, पित्ताशय, पित्तवाहिनी, श्वसन मार्ग, गर्भाशय, मूत्र जनन नलिका, मूत्राशय, रक्त वाहिनियाँ आदि), प्लीहा तथा लिम्फ नोड्स के सम्पुट, नेत्र की आइरिस तथा सीलियरीकाय, त्वचा की चर्म (dermis), शिश्न (penis) तथा अन्य जननांगों में पाई जाती हैं।

इन पेशियों का अस्थियों से कोई सम्बन्ध नहीं होता है। त्वचा (skin) की चर्म (dermis) को चिकनी पेशियों में एरेक्टर पिलाई (Arrector Pilli) नामक पेशियाँ पाई जाती हैं, जो रोमों की जड़ों से सम्बन्धित होती हैं और रोमों या रोंगटों के खड़े होने (erection of hairs/goose flesh) के लिए उत्तरदायी होती हैं। शिश्न (penis) का अरेखित पेशी जाल (muscular network) स्तम्भन (erection) एवं लचीला बनाने में सहायता करता है।

अरेखित पेशी का चित्र

अरेखित पेशी तन्तु, अशाखित, तर्कुरूपी (spindle-shaped), एककेन्द्रकीय (uninucleated) तथा सार्कोलेमा रहित होता है। इनका संकुचन (स्वायत्त तन्त्रिका तन्त्र के नियंत्रण में) धीमा तथा अनैच्छिक होता है। क्रियात्मक रूप से अरेखित पेशियाँ दो प्रकार की होती हैं

अरेखित पेशियों के प्रकार

(i) एकल इकाई अरेखित पेशी-

एकल इकाई अरेखित पेशियाँ पेशीय तन्तुओं से मिलकर बनी होती हैं। इन पेशियों के पेशी तन्तु काफी पास-पास जुड़े रहते हैं तथा एक इकाई (Single unit) की भाँति संकुचित होते हैं। जैसे-मूत्राशय, जठर-आंत्रीय मार्ग, छोटी धमनियाँ तथा वाहिनियाँ ।

(ii) बहु इकाई अरेखित पेशी-

ये पेशियाँ अधिक स्वतन्त्र पेशीय तन्तुओं से बनी होती हैं और पृथक्-पृथक् इकाइयों के रूप में संकुचित होती हैं। जैसे-बालों की जड़ों की पेशियाँ, बड़ी रक्त वाहिनियों की भित्तियों की पेशियाँ, सीलियरी पेशियाँ तथा आइरिस एवं श्वसनी (ब्रोन्काई) की पेशियाँ |

3. हृदय पेशियाँ (Cardiac Muscles)-

हृदय की भित्ति (महाशिराओं की भित्ति भी, जहाँ वे हृदय में प्रवेश करती हैं) हृदय पेशियों (Cardiac Muscles) द्वारा निर्मित होती हैं। इसलिए इसे मायोकार्डियम (Myocardium) कहते हैं। रचनात्मक रूप से ये रेखित पेशियों से समानता दर्शाती हैं किन्तु क्रियात्मक रूप से ये अरेखित पेशियों की भाँति अनैच्छिक (मस्तिष्क के संचेतन नियंत्रण से मुक्त होती हैं।

हृदय पेशियों का चित्र

हृदय पेशी कोशिकाएँ या तन्तु अपेक्षाकृत छोटी तथा मोटी, अधिकांशत: एककेन्द्रकीय (केन्द्रक मध्य में स्थित), जबकि कुछ शाखित तथा सार्कोलेमा (Sarcolema) से ढकी होती हैं।

पेशी संकुचन की क्रियाविधि (Mechanism of Muscle Contraction)

सन् 1954 में एच.ई. हक्सले तथा ए.एफ. हक्सले ने पेशी संकुचन की क्रियाविधि को समझाने हेतु एक सिद्धान्त दिया जिसे फिसलन तन्तु सिद्धान्त (Sliding filament theory) कहते हैं।

इस सिद्धांत के अनुसार, संकुचन के दौरान, पतले रेशे (एक्टिन फाइबर) मोटे रेशों (मायोसिन फाइबर) पर सरकते हैं, जिससे सार्कोमा की

लम्बाई कम हो जाती है। मायोसिन तन्तु के सिर अपने सामने स्थित एक्टिन तंतु के साथ ‘हुक’ के समान अनुप्रस्थ सेतु द्वारा जुड़ जाते हैं। इन सेतुओं के संरूपण में परिवर्तन (सीधी अंगुली को मोड़ने के समान) होते हैं, जो एक्टिन तन्तुओं को सार्कोमीयर के केन्द्रीय भाग की ओर खींचते हैं। इस कारण Z-रेखायें एक-दूसरे के समीप आ जाती हैं। ए-पट्टी की लम्बाई यथावत् रहती है लेकिन आई-पट्टी एवं एच-क्षेत्र की लम्बाई कम हो जाती है। इस प्रकार संकुचन हो जाता है। अगले चरण में मायोसिन सिर एक्टिन तन्तुओं से पृथक् होकर पुनः एक्टिन तंतु के अगले बिन्दु पर जुड़ता है और तंतु को खींचता है। यह क्रम कई बार दोहराया जाता है और संकुचन क्रिया जारी रहती है। संकुचन पर एक्टिन तंतु ए-पट्टी से बाहर सरक कर पूर्व अवस्था में आ जाते हैं। संकुचन के समय तन्तुओं की लम्बाई में कोई अन्तर नहीं आता, केवल पतले तन्तु मोटे के सापेक्ष सरकते है।

पेशियों की क्रियाविधि

पेशी संकुचन (Muscle contraction) एवं शिथिलन की क्रिया निम्न चार चरणों में सम्पन्न होती है

1. उत्तेजना (Excitation) –

तंत्रिका आवेग के कारण तंत्रिका पेशी संधि (Neuromuscular Junction) पर तंत्रिकाक्ष (Axon) के

सिरों द्वारा एक तंत्रिका प्रेषी रसायन (Neurotransmitter), एसीटिलकोलीन (Acetylcholine) मुक्त होता है। यह रसायन पेशी प्लाज्मा झिल्ली की Na + के प्रति पारगम्यता को बढ़ा देता है। इस कारण Na+ पेशी कोशिका में प्रवेश करते हैं, जिससे प्लाज्मा झिल्ली की आन्तरिक सतह पर धनात्मक विभव उत्पन्न हो जाता है। सामान्य अवस्था में पेशी प्लाज्मा झिल्ली की भीतरी सतह पर ऋणात्मक विभव होता है। यह धनात्मक विभव पूरी पेशी प्लाज्मा झिल्ली पर संचरित होकर सक्रिय विभव (action potential) उत्पन्न करता है, जिसे पेशी कोशिका की उत्तेजना अवस्था कहते हैं।

2. उत्तेजन-संकुचन युग्म (Excitation-Contraction Coupling) –

इस चरण में सक्रिय विभव पेशी कोशिका में संकुचन प्रेरित करता है। यह विभव पेशी प्रद्रव्य में तीव्रता से फैलता है और Ca+2 आयन मुक्त होकर ट्रोपोनिन-सी से जुड़ जाते हैं और ट्रोपोनिन के अणु संरूपण में परिवर्तित हो जाते हैं। इन परिवर्तनों के कारण एक्टिन के सक्रिय स्थल पर उपस्थित ट्रोपोमायोसिन एवं ट्रोपोनिन दोनों वहाँ से पृथक् हो जाते हैं। मुक्त सक्रिय स्थल पर तुरन्त मायोसिन तन्तु के अनुप्रस्थ सेतु इनसे जुड़ जाते हैं और संकुचन क्रिया प्रारम्भ हो जाती है ।

3. संकुचन (Contraction)

एक्टिन तन्तु के सक्रिय स्थल से जुड़ने से पूर्व सेतु का सिरा एक ATP से जुड़ जाता है। मायोसिन के सिरे के ATPase एन्जाइम द्वारा ATP, ADP तथा Pi में टूट जाते हैं किन्तु मायोसिन के सिर पर ही लगे रहते हैं। इसके उपरान्त मायोसिन का सिर एक्टिन तन्तु के सक्रिय स्थल से जुड़ जाता है। इस बन्धन के कारण मायोसिन के सिर में संरूपण परिवर्तन होते हैं और इसमें झुकाव उत्पन्न हो जाता है जिसके फलस्वरूप एक्टिन तन्तु सार्कोमीयर के केन्द्र की ओर खींचा जाता है। इसके लिए ATP के विदलन से प्राप्त ऊर्जा काम आती है और सिर के झुकाव के कारण इससे जुड़े ADP तथा Pi भी मुक्त हो जाते हैं। इनके मुक्त होते ही नया ATP अणु सिर से जुड़ जाता है। ATP के जुड़ते ही सिर एक्टिन से पृथक् हो जाता है। पुन: ATP का विदलन होता है। मायोसिन सिर नये सक्रिय स्थल पर जुड़ता है तथा पुनः यही क्रिया दोहराई जाती है, जिससे एक्टिन तन्तुक खिसकते हैं और संकुचन हो जाता है।

4. शिथिलन (Relaxation) –

पेशी उत्तेजन समाप्त होते ही Ca++ पेशी प्रद्रव्यी जालिका में चले जाते हैं जिससे ट्रोपोनिन-सी Ca++ से मुक्त हो जाती है और एक्टिन तन्तुक के सक्रिय स्थल अवरुद्ध हो जाते हैं। पेशी तन्तु अपनी सामान्य स्थिति में आ जाते हैं तथा पेशीय शिथिलन हो जाता है।

संकुचन के लिए ऊर्जा स्त्रोत (Energy Source for Contraction) – पेशी संकुचन के लिए ऊर्जा ATP के द्वारा मिलती है। संकुचन के समय उत्पन्न ADP का पुन: ATP में परिवर्तन क्रिएटीन फॉस्फेट द्वारा तुरन्त हो जाता है। पेशी में ATP का निर्माण संचित ग्लाइकोजन व प्राप्त होने वाले ग्लूकोज एवं वसीय अम्लों के ऑक्सीकरण द्वारा होता है। लाल पेशियों में मायोग्लोबिन ऑक्सीजन का भण्डारण कर सकती है जो ATP निर्माण में काम आती है। अनाक्सी अवस्था में अधिक समय तक संकुचन के कारण पेशी में लैक्टिक अम्ल का संचय होने लगता है जिसके कारण पेशी में दर्द होने लगता है।

मानव पेशियों के रोचक तथ्य

  • पेशियाँ रासायनिक ऊर्जा को यांत्रिक ऊर्जा में बदलती हैं।
  • शरीर का 40-50% भाग पेशियों द्वारा निर्मित होता है।
  • मनुष्य में 639 पेशियाँ पाई जाती हैं। 634 पेशियाँ युग्मित व 5 पेशियाँ अयुग्मित होती हैं।
  • मनुष्य में 400 पेशियाँ रेखित प्रकार की होती हैं।
  • शरीर मे सबसे अधिक पेशियाँ पीठ में पाई जाती हैं। यहाँ 180 पेशियाँ पाई जाती हैं
  • जबड़ों की पेशियाँ सबसे मजबूत पेशियाँ हैं।
  • पेशियों में संग्रहित खाद्य पदार्थ ग्लाइकोजन है।
  • मनुष्य में सारटोरियस फिमोरिस सबसे बड़ी पेशी है।
  • पेशियों में मायोग्लोबिन नामक श्वसन वर्णक पाया जाता है।
  • गर्भाशय की अरेखित पेशियाँ सबसे लम्बी होती हैं।
  • बच्चों में हड्डियाँ अधिक लचीली एवं भंगुर होती हैं क्योंकि उनमें कार्बनिक पदार्थ अधिक मात्रा में एवं लवण कम मात्रा में पाये जाते हैं।
  • खोपड़ी और ऐटलस का जोड़, जिसमें कि नोडिंग गति पाई जाती है,अटलांटो-ऑक्सीपीटल जोड़ कहलाता है।
  • एन्डोप्लाज्मिक रेटीकुलम या सारकोप्लाज्मिक रेटिकुलम पेशीय संकुचन, पेशीय उत्तेजना और पेशीय शिथिलन में बड़ी भूमिका निभाते हैं।
  • एक लम्बी हड्डी का केन्द्रीय शाफ्ट डायफाइसिस कहलाता है।
  • मानव का अन्तःकंकाल अस्थि व उपास्थि का बना होता है।
  • पेशियों में मायोग्लोबिन नामक लाल वर्णक पाया जाता है, जिसके कारण ये लाल दिखाई देती हैं।
  • मनुष्य का कंकाल तन्त्र सुरक्षा व आलम्बन प्रदान करने के साथ साथ गमन में भी सहायता करता है।

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By admin

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