महाद्वीपीय विस्थापन (Continential Drift)
आधुनिक महाद्वीपों की उत्पत्ति को समझने के लिए इस शताब्दी के प्रारम्भ में महाद्वीपीय विस्थापन (continential drift) की परिकल्पना की गई। इस परिकल्पना के प्रथम प्रवर्तक जर्पन भूगर्भशास्त्री वेगनर (Wagner, 1880- 1930) थे। पृथ्वी के उद्भव से ही भूमि का ऊपर उठना, नीचे धंसना अथवा सागर तल का ऊपर उठना तथा भूखण्डों के मध्य सम्बन्ध बनना व बिगड़ना जारी रहा है।
अनेक द्वीप समुद्र में इसी प्रकार बने हैं या समुद्र में डूबकर लुप्त हो गये है। अभी हाल में ही अपने देश की समुद्री सीमा में बंगाल की खाड़ी में लगभग 60 किमी. भूमि प्रकट हुई तथा यह क्रम अभी भी जारी है। कुछ क्षेत्रों में इसके फलस्वरूप विभिन्न महाद्वीप आपस में जुड़ गये हैं। ऐसे स्थान भी हैं जहाँ महाद्वीपों के भाग डूब गये हैं जिससे समुद्री मार्गों का निर्माण हुआ है।
इस तरह से पनामा भूसंधि का दोनों अमेरिका के बीच होना व उत्तरी अमेरिका व एशिया के बीच बैरिंग जल संधि का उदय हुआ है। आधुनिक मध्य भारत के स्थान पर किसी समय टेथिस सागर (Sea of Tethys) था यह सबको मालूम है। इसी के कारण भारतीय प्रायद्वीप एशिया से पृथक था। इसको ही गोडवाना (Godwana) प्रदेश कहते हैं।
इस सदी के प्रारम्भ में महाद्वीप विस्थापन (continental drift) की परिकल्पना की गई थी ताकि आधुनिक महाद्वीपों की उत्पत्ति को समझाया जा सके। इसके अनुसार शुरू में पृथ्वी एक विशाल भूखण्ड थी जो कि बाद में टुकड़ी में विभक्त हो गई, मानचित्र के कटे महाद्वीपों का इस प्रकार पुनः संयोजन सम्भव है। लेकिन इस परिकल्पना का समर्थन अधिकांश वैज्ञानिक ने नहीं किया है।
किन्तु अब यह आधुनिक शोध के आधार पर फिर से जोर पकड़ रही है। चट्टानों के चुम्बकीय नाप-तौल से यह पता चल जाता है कि प्रारम्भ में यह किस दिशा में थी इससे यह स्पष्ट होता है कि चट्टानों के बनने से महाद्वीपों का विस्थापन हुआ है। चुम्बकीय नाप-तौल से पता चला है कि आज जहाँ पर सहारा मरूस्थल है, वहाँ उस समय ब्रिटेन था क्योंकि ब्रिटेन से प्राप्त 20 करोड़ साल पुराना बलुआ पत्थर सहारा जैसी जलवायु का समर्थन करता है।
अफ्रीका का पश्चिम तट तथा दक्षिणी अमेरिका का पूर्वी तट एक-दूसरे के पूरक प्रतीत होते हैं। लेकिन यदि दक्षिणी अमेरिका के नियोट्रोपिकल जन्तु समूह के साथ तुलना की जाये तो दोनों में कोई समानता नहीं मिलती है। जिराफ (Giraffe), एंटिलोप (Antilop), कपि (Apes), धानि प्राणी (Marsupials), स्लोथ (Sloth) एक विशेष क्षेत्र में मिलते हैं पहले किसी क्षेत्र में नहीं थे। इसी प्रकार की स्थिति अन्य जन्तुओं में ही मिलती है।
इसके विपरीत ट्राऐसिक कल्प (Triassic periode) की विभिन्न जातियों में इतना सादृश्य है कि इनके कई वंशों में समानताएँ मिलती है। यह जन्तु दक्षिणी अमेरिका में उत्तरी अमेरिका से तो नहीं पहुँचे यह तो निश्चित ही है। आधुनिक मछली गण ऑस्टेरियोफिसी (Ostariophysi) की प्रजनन आदिम अलवण जलीय कारसिन (Chara cin) मछलियों का विवरण दोनों महाद्वीपों में बहुत महत्त्वपूर्ण है। एक ही विकल्प शेष रहता है कि लगभग जुरैसिक (Jurassic) कल्प के प्रारम्भ तक दक्षिणी अमेरिका तथा अफ्रीका एक बड़ा भूखण्ड था। जो धीरे-धीरे महाद्वीपीय विस्थापन के कारण एक-दूसरे से पृथक हो गये।
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