प्रस्तावना Preface
स्वतन्त्रता प्राप्ति के साथ ही हमारे देश में अनेक समस्याएं उत्पन्न होने लगीं। उस समय नये स्वतन्त्र राष्ट्र के निर्माण की समस्या प्रमुख थी, परन्तु साथ हो साम्प्रदायिकता, जातिवाद, भाषावाद, प्रान्तवाद, बेरोजगारी और भ्रष्टाचार की समस्याएँ भी उत्तरोत्तर बढ़ती गई, आज यह स्थिति है कि इन सभी समस्याओं से सारा देश आक्रान्त है। इनमें भी भ्रष्टाचार की समस्या तो सुरसा की भाँति समाज के हर वर्ग, हर क्षेत्र और हर स्तर पर इस तरह बढ़ रही है कि उसका निवारण करना अत्यन्त कठिन हो गया है।
जब देश के राजनेता ही भ्रष्ट हों, राजनीति और शासन-तन्त्र में ऊपर से नीचे तक सर्वत्र भ्रष्टाचार हो, तो फिर इसका निवारण भी कौन कर सकता है। लगता है कि आज भ्रष्टाचार हमारे देश का शिष्टाचार बन गया है और इसके सामने राष्ट्रीयता तथा चरित्र की बात गौण हो गई है। भ्रष्टाचार ही अपनी उन्नति का सुलभ मार्ग रह गया है। इस कारण हमारे देश की हालत एकदम बदतर हो गई है।
भ्रष्टाचार के कारण due to corruption
आज प्रत्येक व्यक्ति पाश्चात्य ढंग से जीवनयापन करना चाहता है। वह भौतिक सुख-सुविधाओं के लिए लालायित रहता है, इसलिए वह गलत तरीके अपनाकर भी रातोरात लखपति बनना चाहता है। हमारे देश में भ्रष्ट राजनीति का जोर है, राजनेता अपना घर भरने के लिए भ्रष्ट तरीके अपनाते हैं, उनकी देखा-देखी शासन तंत्र में भ्रष्टाचार पनपता है। सरकारी नौकरी करने वाला व्यक्ति हर तरीके से अपनी पदोन्नति चाहता है, ऐसे ऑफिस में तबादला चाहता है कि जहाँ पर ऊपरी आमदनी हो इसके लिए वह अफसरों को मुंहमांगी रिश्वत देता है। अब स्थानान्तरण करवाने और रुकवाने के लिए रिश्वत देना एक साधारण बात मानी जाती है।
भाई भतीजावाद के कारण योग्य लोगों को नौकरी में उचित अवसर नहीं मिलता है, बेरोजगारी बढ़ रही है, महँगाई रात-दिन बढ़ रही है। इस कारण भ्रष्टाचार की गति स्वतः बढ़ रही है। व्यापारी वर्ग भी सम्पत्ति कर, आयकर, वाणिज्य कर आदि से बचने के लिए काला धन्धा करते हैं. माल की नकली कमी दिखाते हैं और अधिकारियों को रिश्वत देकर अपना उल्लू सीधा करते रहते हैं। अधिक मुनाफा कमाने की प्रवृत्ति से भी भ्रष्टाचार बढ़ रहा है। देश में उत्पादन को अपेक्षा जनसंख्या का तीव्र गति से विस्तार हो रहा है, इससे भी जन-साधारण में आपाधापी मची हुई हैं।
भ्रष्टाचार के दुष्परिणाम consequences of corruption
भ्रष्टाचार के कारण आज हमारे देश में राष्ट्रीय चरित्र तथा सांस्कृतिक मूल्यों का हास हो रहा है। इससे सामाजिक जीवन में नैतिकता का लोप होने लगा है। स्वार्थ और प्रलोभन के चक्कर में हम अपने आदशों को भूलते जा रहें हैं। राजनीति में सबसे अधिक भ्रष्टाचार पनप रहा है। जब राजनेता ही भ्रष्ट आचरण पर उतर आते हैं और भ्रष्ट तरीके अपनाकर जन सेवा के नाम पर अपने ही परिवार की सेवा करते हैं, हर काम में दलाली, कमीशन व रिश्वत लेकर जनता के सामने सफेदपोश बनने की चेष्टा करते हैं तो उनकी देखादेखी सरकारी कर्मचारी, अफसर और जनता भी वैसा ही आचरण करने लगी है।
नौकरी पाने के लिए अब योग्यता का मापदण्ड नहीं रह गया है, इसके लिए रिश्वत तथा भाई-भतीजावाद चल रहा फलस्वरूप नवयुवकों में असन्तोष बढ़ रहा है। समाज में अशान्ति फैल रही है। लूटपाट तथा अपराधिक प्रवृत्तियों में वृद्धि हो रही है। मूल्य वृद्धि, पंचवर्षीय योजनाओं की विफलता, विकास की मन्द गति और अन्य कई समस्याएँ इसी भ्रष्टाचार के कारण बढ़ रही हैं। धन के लोभी, भौतिक सुख-भोग के बिलासी तथा स्वार्थी लोग गन्दी राजनीति अपनाकर अनाचार फैला रहे हैं
ऐसा लगता है कि हमारे देश का राष्ट्रीय चरित्र एकदम समाप्त हो गया है। आज भ्रष्टाचार की खातिर झूठ बोलना, मिलावट करना, पैतरेबाजी दिखाना खुलेआम कपट आचरण करना, धोखाधड़ी और रिश्वतखोरी करना आदि सब कुछ जायज हो गया है और उन्हें रोकने वाला कोई नहीं है। आज सारे भारत में भ्रष्टाचार का अन्त फैला हुआ है जिससे हमारा व्यक्तिगत, राष्ट्रीय और सांस्कृतिक स्तर एकदम कलंकित हो रहा है तथा हम मानवीय आदशों से बिल्कुल ही गिर गये हैं।
समाधान के उपाय solution measures
भ्रष्टाचार का निवारण करने के लिए सरकार ने पृथक से भ्रष्टाचार उन्मूलन विभाग बना रखा है और इसे व्यापक अधिकार दे रखे हैं। समय समय पर अनेक कानून बनाये जा रहे हैं और इसे अपराध मानकर कठोर दण्ड व्यवस्था का भी विधान है, फिर भी देश में भ्रष्टाचार बढ़ ही रहा है। इसके निराकरण के लिए सर्वप्रथम जन जागरण की आवश्यकता है। राजनीति में आचरण और नैतिक मूल्यों को प्राथमिकता दी जाए, राजनेताओं को स्वयं भ्रष्टाचार से दूर रहना चाहिए और उनके लिए आचार संहिता होनी चाहिए। भाई-भतीजावाद को रोका जाना चाहिए, व्यापारी वर्ग पर शासन का उचित नियन्त्रण होना चाहिए।
नवयुवकों को उनकी योग्यता के अनुसार रोजगार के अवसर मिलने चाहिएँ शिक्षा में चरित्र विकास को प्राथमिक लक्ष्य बनाया जाना चाहिए। सामाजिक जीवन में गिरते सांस्कृतिक मूल्यों को पुनः प्रतिष्ठा होनी चाहिए। पाश्चात्य सभ्यता का अन्धानुकरण नहीं हो, भौतिक सुख भोग की प्रवृत्ति कम हो तथा जनतन्त्र में सामाजिकता का प्रचार होइन बातों पर विशेष ध्यान रखना चाहिए। इस तरह के उपाय करने पर हमारे देश से भ्रष्टाचार का निवारण किया जा सकता है।
उपसंहार Epilogue
भारत जैसे स्वतन्त्र, विकासशील लोकतन्त्र में भ्रष्टाचार का होना एक विडम्बना है। इसके कारण आज हमारे सांस्कृतिक मूल्य गिर रहे हैं, राष्ट्रीय चरित्र पर कीचड़ छाला जा रहा है तथा हमारा नैतिक स्तर एकदम निन्दनीय बन गया है। जब शासन-तन्त्र ही भ्रष्ट हो तो फिर जनता को सही रास्ते पर कौन ला सकता है? इसके लिए राजनेताओं, सरकारी तन्त्र और जनता का पारस्परिक सहयोग अपेक्षित है तभी यह राक्षसी प्रवृत्ति समाप्त हो सकती है।