बसंतीकरण क्या है | बसंतीकरण का महत्व

बसंतीकरण को परिभाषित कीजिए, बसंतीकरण किसे कहते है और इसका महत्व

बसंतीकरण- अनेक पौधों में पुष्पन की क्रिया पर उचित दीप्तिकालों के अतिरिक्त तापक्रम का भी गहन प्रभाव पड़ता है। कम ताप पर पौधों में पुष्पन की क्रिया आरम्भ करवाने को बसंतीकरण कहते हैं। पौधे के तापक्रम के प्रति व्यवहार का सर्वप्रथम अध्ययन लायसैन्को (Lysenko) ने चावल की दो किस्मों शीत किस्म एवं वसन्त किस्म (winter and spring variety) पर किया था।

एकवर्षी पादपों में पुष्पन पर प्रकाश का मुख्य प्रभाव पड़ता है। तथा तापमान का प्रभाव द्वितीयक होता है। द्विवर्षी पादपों में स्थिति भिन्न होती है। इसमें प्रथम वर्ष में केवल कायिक वृद्धि होती है तथा पुष्पन द्वितीय वर्ष में होता है। पुष्पन से पूर्व इन पादपों का शीत ऋतु के निम्न से के तापक्रम में उपचारित होना आवश्यक होता है। यदि द्विवर्षी पादपों को निम्न तापमान नहीं मिलता तो इनमें जनन अवस्था का प्रारम्भ नहीं होता में है। जैसे गेहूँ सर्दी में बोया जाता है परन्तु फल अथवा दाने गर्मी में काटे जाते हैं परन्तु कुछ गेहूँ की किस्म ऐसी भी हैं जो वसन्त में बोई जाती हैं तथा गर्मी में काटी जाती हैं। यदि सर्दी के गेहूँ के बीजों को कम तापमान पर कुछ समय रखकर वसन्त में बोया जाए तब वे भी गर्मी में फल दे सकते हैं।

यदि पानी सोखे हुए बीजों अथवा नवोद्भिदों (seedling) को निम्न तापक्रम (1-10°C) उपचार दिया जाता है तो उसके प्रभाव से उनकी वृद्धि त्वरित हो जाती है तथा उनमें पुष्पन भी जल्दी होता है। इस प्रभाव का अध्ययन गेहूँ, चावल, कपास आदि में किया जाता है।

सम्भवतः पत्तियों में हॉर्मोन के समान कुछ ऐसे पदार्थ बनते हैं जो वसंतीकरण को नियंत्रित करते हैं। इस अज्ञात पदार्थ को वर्नेलिन (Vernalin) कहा गया। वर्नेलिन पुष्पन की क्रिया को आरम्भ करने वाले हॉर्मोन फ्लोरीजन (florigen) का पूर्वागामी (procursor) है।

फ्लोरीजन पुष्प शीतकालीन पादप कम तापमान, वर्नेलिन फ्लोरीजन पौधों के भ्रूण तथा विभज्योतक शीतन उपचार के ग्राही अंग हैं।

वसंतीकरण से पौधों में कृषि सम्बन्धी कई उपयोगी परिवर्तन किये जा सकते हैं। इसकी सहायता से पौधों के कायिक काल को कम करके उनमें समय पूर्व ही पुष्पन को प्रेरित किया जा सकता है। ठण्डे तापमान के बाद एकदम अधिक तापमान देने से वसन्तीकरण का प्रभाव समाप्त हो जाता है। इस क्रिया को अवसन्तीकरण (devernalization) कहते हैं किन्तु फिर से अधिक ठण्डा तापमान देने पर यह फिर से पैदा हो जाता है।

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