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प्रोग्रामिंग लेंग्वेजेस प्रोग्रामिंग, लैंग्वेज के प्रकार, कंप्यूटर प्रोग्रामिंग क्या है – What is Programming in Hindi

प्रोग्रामिंग लैंग्वेजेज Programming Languages में मशीन लैंग्वेजेज , असेंबली लैंग्वेजेज , थर्ड – जेनरेशन लैंग्वेजज , फोर्थ – जेनरेशन लैंग्वेजज और नेचुरल लैंग्वेजज नाम की पांच मुख्य लैंग्वेजज हैं । मशीन व असेंबली लैंग्वेजज लो – लेवल लैंग्वेजज मानी जाती हैं । थर्ड जेनरेशन लैंग्वेजज , फोर्थ – जेनरेशन लैंग्वेजज और नेचुरल लेंग्वेजेस , हाई लेवल लैंग्वेजज हैं । लो – लेवल लैंग्वेजज एक खास प्रकार के कम्प्यूटर को चलाने के लिए राइट की जाती है । हाई लेवल लैंग्वेजज कई विभिन्न प्रकार के कम्प्यूटरों को चला सकती है ।

मशीन लैंग्वेज ( Machine Language )

फस्ट्र – जेनरेशन लेंग्वेज के नाम से मशहूर मशीन लेंग्वेज अकेली लेंग्वेज है , जिसे कम्प्यूटर सीधा समझता है । मशीन लैंग्वेज इंस्ट्रक्शंस बाइनरी डिजिट्स ( 1s and Os ) की सीरीज प्रयोग करती है । बाइनरी डिजिट्स कम्प्यूटर की इलेक्ट्रिकल स्थिति को ऑन व ऑफ करती है ।

असेंबली लैंग्वेज ( Symbolic / Assem bly Language )

असेंबली लेंग्वेज भी प्रोग्रामिंग लेंग्वेज की सेकंड जेनरेशन है , जो इसलिए डेवलप की गई , क्योंकि लेंग्वेज प्रोग्राम्स लिखने में इतने कठिन थे । असेंबली लेंग्वेज में इंस्ट्रक्शंस , एब्रीविएशंस और कोड्स का इस्तेमाल करते हुए लिखे जाते हैं । मशीन लेंग्वेज की तरह असेंबली लेंग्वेज प्रायः पढ़ने में कठिन और मशीन – डिपेंडेंट होती है ।

हाई लेवल लेंग्वेजज ( High Level Language )

हाई – लेवल लेंग्वेजेस 1950 और 1960 के दशक में विकसित की गई । मशीन व असेंबली लेंग्वेज जैसी लो लेवल लेंग्वेज के विपरीत , हाई – लेवल लेंग्वेजेस प्रोग्रामर के लिए प्रोग्राम्स डेवलप व मेंटेन करना आसान बनाती है ।

प्रोग्रामर्स के लिए पढ़ना और इस्तेमाल करना भी आसान हो गया है , क्योंकि हाई लेवल लॅग्वेजेज मशीन इनडिपेंडेंट हैं ।

तृतीय पीढ़ी ( 3G ) की भाषाएँ

1. प्रोफशेनल प्रोग्रामार इसका प्रयोग करते हैं ।
2. कार्य को कैसे करना है ( How ) के Spect fication की आवश्यकता होती है।
3. सारे विकल्प को Specified किया जाता है ।
4. बहुत सारे instructions की जरूरत होती है ।
5. ‘ कोड ‘ को पढ़ना एवं समझना मुश्किल होता है ।
6. शुरुआत में batch के लिए तैयार किया गया था ।
7. याद रखने में मुश्किल होता है ।
8. Debug करने में मुश्किल होता है ।
9. यह file oriented होता है ।

चतुर्थ पीढ़ी ( 4G ) की भाषाएँ

1. इसका प्रयोग कोई भी कर सकता है ।
2. क्या कार्य करना है ( What ) के Specification की आवश्यकता होती है।
3. Default विकल्प तैयार किया जाता है।
4. बहुत कम instructions की जरूरत होती है ।
5. ‘ कोड ‘ को पढ़ना एवं समझना आसान होता है ।
6. online के लिए तैयार किया गया ।
7. याद रखना आसान होता है ।
8. गलतियों ( Errors ) को आसानी से पकड़ा जा सकता है ।
9. यह database oriented होता है ।

लैंग्वेज ट्रांसलेटर प्रोग्राम ( Language Translator )

कम्प्यूटर केवल मशीन की भाषा ( 0 या 1 ) को समझ सकता है । मशीनी भाषा में प्रोग्राम लिखना कठिन कार्य है । अतः प्रोग्राम को उच्च स्तरीय भाषा ( High Level Language ) में लिखकर लैंग्वेज ट्रांसलेटर की मदद से मशीनी भाषा में बदला जाता है ।

लैंग्वेज ट्रांसलेटर के प्रकार

असेम्बलर ( Assembler )

यह क्रियान्वयन से पहले असेम्बली भाषा ( Assem bly Language ) या निम्नस्तरीय भाषा ( Low Level Language ) को मशीनी भाषा में परिवर्तित करता है ।

कम्पाइलर ( Compiler )

कंपाइलर एक बार पूरे सोर्स प्रोग्राम को मशीनी लेंग्वेज में कन्वर्ट करता है । यदि कंपाइलर को कोई एरर मिलती है , तो वह उन्हें प्रोग्राम लिस्टिंग फाइल में रिकॉर्ड करता है , जिन्हें कोई प्रोग्रामर पूरी कंपाएलेशन का काम समाप्त करने के बाद प्रिंट कर सकता है । मशीन लेंग्वेज वर्जन , 3GL से कंपाइल करता है , उसे ऑब्जेक्ट कोड या ऑब्जेक्ट प्रोग्राम कहा जाता है । बाद में ऑब्जेक्ट कोड को एग्जीक्यूशन के लिए डिस्क पर स्टोर किया जाता है ।

इंटरप्रेटर ( Interpreter )

जब कम्पाइलर एक बार पूरा प्रोग्राम ट्रांसलेट कर लेता है , तो इंटरप्रेटर प्रोग्राम कोड स्टेटमेंट को ट्रांसलेट करता है । इंटरप्रेटर कोड स्टेटमेंट को पढ़ता है , वह इसे एक या ज्यादा मशीन लेंग्वेज इंस्ट्रक्शंस में बदलता है और वह प्रोग्राम में अगले कोड स्टेटमेंट से पहले मशीनी लेंग्वेज इंस्ट्रक्शंस को एग्जीक्यूट करता है । यदि इंटरप्रेटर कोड की लाइन बदलते समय कोई एरर देखता है , तो स्क्रीन पर तुरंत ही एरर मैसेज डिसप्ले होता है और इंटरप्रेशन रुक जाती है । हर बार आप सोर्स प्रोग्राम चलाते हैं , सोर्स प्रोग्राम मशीनी लेंग्वेज में इंटरप्रेट होते हैं , स्टेटमेंट के बाद स्टेटमेंट और तब एग्जीक्यूट होते हैं ।

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