पर्यावरण और वर्तमान चुनौतियाँ, पर्यावरण संरक्षण और युवा पीढ़ी [essay on Environmental Pollution in Hindi]
प्रस्तावना
पर्यावरण प्रदूषण- मानव ने जब प्रकृति माता की गोद में आँखें खोली तो उसने अपने चारों ओर उज्ज्वल प्रकाश, निर्मल जल और स्वच्छ वायु का वरदान पाया। वन प्रदेशों की मनोहर हरियाली में उसने जीवन के मधुरतम सपने देखे। उसका पेड़-पौधों से, फल-फूलों से, चहकते पक्षियों से, प्रभात और संध्याबेला नित्य का सम्बन्ध था। प्रकृति के आँगन में खेलते हुए उसने पाया पुष्ट निरोग शरीर और उत्साह-उल्लास से लबालब तनावहीन मानस किन्तु धीरे-धीरे उसके मन में प्रकृति पर शासन करने की लालसा जागी। उसने प्रकृति को माँ के स्थान से हटाकर दासी के स्थान पर धकेलना चाहा। उसको नाम दिया गया “वैज्ञानिक प्रगति” ।
पर्यावरण प्रदूषण के प्रकार
आज सृष्टि का कोई पदार्थ, कोई कोना प्रदूषण के प्रहार से नहीं बच पाया है। प्रदूषण मानवता के अस्तित्व पर एक नंगी तलवार की भाँति लटक रहा है। प्रदूषण के मुख्य स्वरूप निम्नलिखित हैं
(i) जल प्रदूषण
जल मानव जीवन के लिये परम आवश्यक पदार्थ है। जल के परम्परागत स्रोत हैं—कुएँ, तालाब, नदी तथा वर्षा का जल प्रदूषण ने इन सभी स्रोतों को दूषित कर दिया है। औद्योगिक प्रगति के साथ-साथ हानिकारक कचरा और रसायन बड़ी बेदर्दी से इन जल स्रोतों में मिल रहे हैं। महानगरों के समीप से बहने वाली नदियों की दशा तो अकथनीय है। गंगा, यमुना, गोमती सभी नदियों की पवित्रता प्रदूषण की भेंट चढ़ गयी है।
(ii) वायु प्रदूषण
वायु भी जल जितना ही आवश्यक पदार्थ है। श्वास-प्रश्वास के साथ वायु निरन्तर शरीर में जाती है। आज वायु का शुद्ध मिलना भी कठिन हो गया है। वाहनों, कारखानों और सड़ते हुए औद्योगिक कचरे ने वायु में भी जहर भर दिया है। घातक गैसों के रिसाव भी यदा कदा खण्ड प्रलय मचाते रहते हैं।
(ii) खाद्य प्रदूषण
प्रदूषित जल और वायु के बीच पनपने वाली वनस्पति या उसका सेवन करने वाले पशु-पक्षी भी आज दूषित हो रहे हैं। चाहे शाकाहारी हों या माँसाहारी कोई भोजन के प्रदूषण से नहीं बच सकता।
(iv) ध्वनि प्रदूषण
आज मनुष्य को ध्वनि के प्रदूषण को भी भोगना पड़ रहा है। कर्णकटु और कर्कश ध्वनियाँ मनुष्य के मानसिक सन्तुलन को बिगाड़ती हैं और उसकी कार्यक्षमता को भी कुप्रभावित करती हैं। वैज्ञानिक और औद्योगिक प्रगति की कृपा के फलस्वरूप आज मनुष्य कर्कश, असहनीय और श्रवणशक्ति को क्षीण करने वाली ध्वनियों के समुद्र में रहने को मजबूर है। आकाश में वायुयानों की कानफोड़ ध्वनियाँ, धरती पर वाहनों, यन्त्रों और संगीत का मुफ्त दान करने वाले ध्वनि विस्तारक का शोर सब मिलकर मनुष्य को बहरा बना देने पर तुले हुए हैं।
पर्यावरण प्रदूषण बढ़ने के कारण
प्रायः हर प्रकार के प्रदूषण की वृद्धि के लिये हमारी औद्योगिक और वैज्ञानिक प्रगति तथा मनुष्य का अविवेकपूर्ण आचरण ही जिम्मेदार है। चर्म उद्योग, कागज उद्योग, छपाई उद्योग, वस्त्र उद्योग और नाना प्रकार के रासायनिक उद्योगों का कचरा तथा प्रदूषित जल लाखों लीटर की मात्रा में रोज नदियों में बहाया जाता है या जमीन में समाया जा रहा है। गंगाजल, जो कि वर्षों तक शुद्ध और अविकृत रहने के लिए प्रसिद्ध था, वह भी हमारे पापों से मलिन हो गया है। वाहनों का विसर्जन, चिमनियों का धुंआ, रसायनशालाओं की विषैली गैसें मनुष्यों की साँसों में गरल फूँक रही हैं। प्रगति और समृद्धि के नाम पर यह जहरीला व्यापार दिन-दूना बढ़ता जा रहा है। सभी प्रकार के प्रदूषण हमारी औद्योगिक, वैज्ञानिक और जीवन स्तर की प्रगति से जुड़ गये हैं। हमारी हालत साँप-छछूंदर जैसी हो रही है।
पर्यावरण प्रदूषण रोकने के उपाय
प्रदूषण ऐसा रोग नहीं है जिसका कोई उपचार ही न हो। इसका पूर्ण रूप से उन्मूलन न भी हो सके तो इसे हानिरहित सीमा तक नियन्त्रित किया जा सकता है। इसके लिए कुछ कठोर, अप्रिय और असुविधाजनक उपाय भी अपनाने पड़ेंगे।
प्रदूषण फैलाने वाले सभी उद्योगों को बस्तियों से सुरक्षित दूरी पर ही स्थापित और स्थानान्तरित किया जाना चाहिये। उद्योगों से निकलने वाले कचरे और दूषित जल को निष्क्रिय करने के उपरान्त ही विसर्जित करने के कठोर आदेश होने चाहिये। किसी भी प्रकार की गन्दगी और प्रदूषित पदार्थ को नदियों और जलाशयों में छोड़ने पर कठोर दण्ड की व्यवस्था होनी चाहिये। नगरों की गन्दगी को भी सीधा जलस्रोतों में न मिलने देना चाहिए। किसी भी प्रकार का प्रदूषण फैलाने वाले उद्योगों को नगर के बीच नहीं रहने दिया जाना चाहिये। वायु को प्रदूषित करने वाले वाहनों पर भी नियन्त्रण आवश्यक है। ध्वनि प्रदूषण से मुक्ति तभी मिलेगी जबकि वाहनों का आंधाधुंध प्रयोग रोका जाय। हवाई अड्डे बस्तियों से दूर बनें और वायुमार्ग भी | बस्तियों के ठीक ऊपर से न गुजरें। रेडियो, टेपरिकार्डर तथा लाउडस्पीकरों को मंद ध्वनि से बजाया जाय।
उपसंहार
प्रदूषण की समस्या मनुष्य का एक अदृश्य शत्रु है। धीरे-धीरे यह मानव जीवन को निगलने के लिये बढ़ा आ रहा है। यदि इस पर समय रहते नियन्त्रण नहीं किया गया तो आदमी शुद्ध जल, वायु, भोजन और शान्त वातावरण के लिये तरस जायेगा। प्रशासन और जनता दोनों के गम्भीर प्रयासों से ही प्रदूषण से मुक्ति मिल सकती है। गंगा सफाई अभियान प्रशासन का एक ऐसा ही प्रयास था। किन्तु ये आयोजन सिर्फ एक प्रशासकीय फैशन या तमाशा बनकर नहीं रह जायें। एक स्वच्छ और स्वास्थ्यकर विश्व में रहना है तो प्रदूषण से लड़ना ही होगा।
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