भारतीय नागरिकों के मौलिक अधिकार Fundamental Rights of Indian Citizens in Hindi
व्यक्ति समाज में जन्म लेता है, वहीं वह रहता है और वहीं उसका पालन-पोषण होता है। इसलिए मौलिक अधिकार भी सामाजिक व्यक्ति की स्वतन्त्रता से सम्बन्धित होते हैं। नागरिकों के अधिकारों की सुरक्षा के लिए अनेक तरीके अपनाए गए हैं। सबसे उत्तम तरीका कानून का शासन है। कुछ संविधानों में कतिपय मौलिक अधिकारों और व्यक्ति स्वातंत्र्य की भी व्यवस्था की गई है।
हमारे संविधान निर्माताओं ने इन अधिकारों को अपृथक्करणीय माना था। वे इस बात को जानते थे कि मौलिक अधिकार हमारी स्वतन्त्रता की गारन्टी हैं। इन अधिकारों के बिना लोकतन्त्र भी निरंकुश शासन में बदल जाता है। जैसा कि अम्बेडकर ने कहा था कि “मनुष्य के अधिकारों की घोषणा हमारे मानसिक ढांचे का अंग बन चुकी है। वे हमारे दृष्टिकोण का विशिष्ट अंग है।” डॉ. राधाकृष्णन ने कहा था कि “हमें राज्य के हस्तक्षेप के विरुद्ध मानव आत्मा की स्वाधीनता की सुरक्षा करनी चाहिए।” जे. बी. कृपलानी ने कहा कि “सदन को यह याद रखना चाहिए कि हमने जो कुछ बनाया है वे केवल कानूनी, संवैधानिक और औपचारिक सिद्धान्त नहीं हैं बल्कि नैतिक सिद्धान्त हैं। ” अन्य देशों की भांति भारतीय संविधान में भी नागरिकों को सात प्रकार के मौलिक अधिकार प्रदान किये गये थे परन्तु 44वें संशोधन द्वारा सम्पत्ति के अधिकार को समाप्त कर दिया गया है। इस प्रकार अब नागरिकों को निम्नलिखित छ मूल अधिकार प्राप्त हैं
(1) समानता का अधिकार, (2) स्वतन्त्रता का अधिकार (3) शोषण के विरुद्ध अधिकार (4) धार्मिक स्वतन्त्रता का अधिकार, (5) संस्कृति व शिक्षा सम्बन्धी अधिकार, तथा (6) संवैधानिक उपचारों का अधिकार।
1. समानता का अधिकार (Right to Equality)
(i) विधि के समक्ष समानता-
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 के अन्तर्गत “कानून की दृष्टि में प्रत्येक व्यक्ति समान समझा जायेगा। भारत का कानून सबको समान रूप से रक्षा करेगा और समान अपराध के लिए समान दण्ड दिया जाएगा। कानून के समक्ष समानता’ ब्रिटिश सामान्य विधि की देन है जबकि कानून का समान संरक्षण अमरीको संविधान की देन है। प्रथम अधिकार का नकारात्मक पहलू है जबकि दूसरा सकारात्मक कानून के समक्ष सभी व्यक्ति समान हैं। इस प्रकार अनुच्छेद 14 ऐसी परिस्थितियों की स्थापना करता है जिनके अन्तर्गत स्वेच्छाचारी एवं भेदभावपूर्ण कानूनों की रचना नहीं हो पायेगी, और न ही कानून के प्रयोग में भेदभाव बरता जा सकेगा।
समान संरक्षण का अर्थ यह है कि स्वयं कानूनों के प्रशासन में मनमाना भेद-भाव नहीं किया जायेगा।
परन्तु अनुच्छेद 14 के दो अपवाद हैं-प्रथम, राज्य स्त्रियों एवं बच्चों के लिए विशेष उपबन्ध की व्यवस्था कर सकता है। द्वितीय, इस अनुच्छेद की किसी बात से अथवा अनुच्छेद 29 की धारा 2 से राज्य को शिक्षा एवं सामाजिक दृष्टि से पिछड़े हुए वर्गों, अनुसूचित जातियों तथा अनुसूचित जनजातियों की उन्नति के लिए कोई विशेष उपबन्ध बनाने में किसी प्रकार की बाधा न होगी।
(ii) धर्म, जाति, लिंग, स्थान आदि के भेदभाव का अन्त-
अनुच्छेद 15 के अनुसार राज्य धर्म, जाति, वंश, लिंग आदि के आधार पर नागरिकों में भेदभाव नहीं करेगा। किसी नागरिक को सार्वजनिक स्थानों होटलों, सिनेमाघरों, कुंओं, सड़कों, तालाबों, रेलवे, बसों आदि में प्रवेश से वंचित नहीं किया जा सकता।
(iii) सरकारी नौकरियों तथा पदों को पाने का समान अवसर दिया गया है (अनुच्छेद 16)। इस प्रकार सभी नागरिक योग्यतानुसार पद प्राप्त कर सकते हैं। इस अधिकार में निम्नलिखित अपवाद भी हैं
(अ) राज्य के आधीन नौकरियों के सम्बन्ध में संसद निवास स्थान सम्बन्धी शर्त लगा सकती है ।
(ब) पिछड़ी जातियों के लिये स्थान सुरक्षित किये जा सकते हैं। समानता के अधिकार का मुख्य उद्देश्य यह है कि राज्य सब नागरिकों को उनके व्यक्तित्व के विकास के लिए समान अवसर प्रदान करेगा।
(iv) अस्पृश्यता का अन्त कर दिया गया है। (अनुच्छेद 17 )
(v) उपाधियों का अन्त कर दिया गया है। (अनुच्छेद 18)
2. स्वतन्त्रता का अधिकार (Right to Freedom)
संविधान के अनुच्छेद 19 से 22 तक में व्यक्ति स्वातन्त्रय की व्यवस्था की गई है। इनमें अनुच्छेद 19 का महत्व अधिक है क्योंकि इसमें सात स्वतन्त्रताओं का उल्लेख है। अनुच्छेद 19 खण्ड (1) में निम्नलिखित अधिकारों का उल्लेख किया गया है
(क) वाक्-स्वातन्त्रय एवं अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता ।
(ख) शांतिपूर्ण एवं शस्त्रविहीन सभा की स्वतन्त्रता ।
(ग) संगम या संघ बनाने की स्वतन्त्रता ।
(घ) भारतीय राज्य क्षेत्र में अबाध आने-जाने की स्वतन्त्रता ।
(ङ) भारतीय राज्य क्षेत्र के किसी भी भाग में निवास करने तथा बसने की स्वतन्त्रता ।
(च) कोई वृत्ति, व्यापार, उपजीविका या कारोबार की स्वतन्त्रता ।
अपवाद – परन्तु स्वतन्त्रताओं के उपर्युक्त अधिकार निर्बाध (absolute) नहीं हैं। अनुच्छेद 19 के खण्ड 2 से 6 तक में कुछ अपवादों का उल्लेख किया गया है। ये अपवाद इन अधिकारों को सीमित कर देते हैं। इस प्रकार एक ओर तो नागरिकों को स्वतन्त्रता के अधिकार दिये गये हैं और दूसरी ओर उन्हें सीमित कर दिया गया है। यहां पर यह भी उल्लेखनीय है कि केवल वैध कानूनों द्वारा ही इन अधिकारों को सीमित किया जा सकता है। बिना कानूनी अधिकार के कार्यपालिका इन अधिकारों पर कोई प्रतिबन्ध नहीं लगा सकती केवल संविधान संशोधन द्वारा निरस्त किये जा सकते हैं। जैसा कि 44वें संशोधन द्वारा अनुच्छेद 19 (च) में दिये गये सम्पत्ति के अर्जन, धारण एवं व्यय करने की स्वतन्त्रता के अधिकार को समाप्त कर दिया गया है।
3. शोषण के विरुद्ध अधिकार (Right againt Exploitation)
इस अधिकार द्वारा शोषण का अन्त कर दिया गया है.
(i) बालक या स्त्री को क्रय-विक्रय करने का अधिकार नहीं है।
(ii) किसी से जबरदस्ती बेगार नहीं ली जा सकती है। (अनुच्छेद 23)
(iii) 14 साल से कम आयु के बच्चों को कारखानों में नहीं रखा जा सकता । (अनुच्छेद 24)
अपवाद-परन्तु राज्य सार्वजनिक हित के लिए अपने नागरिकों से बाध्य सेवा ले सकता है और असाधारण परिस्थितियों में विशेष प्रकार की सेवा करने के लिये विवश कर सकता है।
4. धार्मिक स्वतन्त्रता का अधिकार (Right to Freedom of Religion)
(i) व्यक्ति किसी भी धर्म का पालन कर सकता है और उसका प्रचार कर सकता है। (अनुच्छेद 25)
(ii) व्यक्तियों को धार्मिक संस्थाओं के निर्माण का अधिकार दिया गया है। (अनुच्छेद 26)
(iii) धार्मिक कार्यों के लिये किसी धर्म विशेष द्वारा लिये गये धन को कर की अदायगी से छूट प्रदान की गई है। (अनुच्छेद 27)
(iv) सरकारी स्कूलों में धार्मिक शिक्षा नहीं दी जायेगी। (अनुच्छेद 28) अपवाद सरकार इस अधिकार पर सार्वजनिक व्यवस्था, सदाचार तथा स्वास्थ्य हित में उचित प्रतिबन्ध लगा सकती है। राज्य समाज कल्याण के लिए कानून बना सकता है।
5. सांस्कृतिक व शिक्षा सम्बन्धी अधिकार (Cultural and Educational Rights)
अनुच्छेद 29 के अन्तर्गत प्रत्येक जाति या सम्प्रदाय को अपनी संस्कृति, भाषा तथा लिपि को सुरक्षित रखने का अधिकार दिया गया है। प्रत्येक नागरिक सरकारी संस्थाओं में भर्ती होवर शिक्षा प्राप्त कर सकता है। उसकी जाति, वंश या धर्म इस मामले में बाधक नहीं होंगे। सरकार सबको समान सहायता प्रदान करेगी।
अनुच्छेद 30 के अन्तर्गत धर्म एवं भाषा पर आधारित सभी अल्पसंख्यक वर्गों को ऐच्छिक शैक्षणिक संस्थाओं की स्थापना तथा प्रशासन का अधिकार होगा। राज्य शैक्षणिक संस्थाओं को अनुदान देने में किसी प्रकार का भेद-भाव नहीं करेगा।
अपवाद– पिछड़ी जातियों के लिए सरकार स्थान सुरक्षित रख सकती है।
6.संवैधानिक उपचारों का अधिकार (Right to Constitutional Remedies )
अनुच्छेद 32 मूल अधिकारों के प्रवर्तन के लिए संवैधानिक उपचारों की व्यवस्था करता है। डॉ. अम्बेडकर के अनुसार, “संवैधानिक उपचारों का उपबन्ध समस्त संविधान की आत्मा इनके अनुसार नागरिकों को यह अधिकार दिया गया है कि वे अधिकारों के अपहरण होने हैं।” की स्थिति में सरकार के विरुद्ध भी हाईकोर्ट तथा सुप्रीम कोर्ट में जा सकते हैं और न्याय की मांग कर सकते हैं। न्यायालयों का कर्तव्य है कि वे नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करें। यह अधिकार संविधान की आत्मा तथा उसका हृदय है।
मूल अधिकारों की आलोचना
(1) मौलिक अधिकारों पर इतने प्रतिबन्ध लगाये गये हैं कि उनके परिणामस्वरूप वे अर्थहीन हो गये हैं। छागला का मत है कि “यह कहा जाता है कि हमारा संविधान एक हाथ से मौलिक अधिकार प्रदान करता है तथा दूसरे हाथ से उन्हें छीन लेता है मेरे विचार में यह आलोचना उचित है।” प्रतिबन्धों की अधिकता के कारण यह समझना कठिन है कि इन अधिकारों द्वारा कौन-सी सुविधाएँ दी गई हैं। जे. पी. कपूर ने व्यंग्य करते हुए संविधान सभा में यह सुझाव दिया था कि “मौलिक अधिकारों के अध्याय का नाम ‘मौलिक अधिकारों पर प्रतिबन्ध’ या ‘मौलिक अधिकार व उन पर प्रतिबन्ध’ रखा जाना चाहिए।
(2) भारतीय संविधान में रूस की भांति कई महत्वपूर्ण अधिकारों का उल्लेख नहीं किया गया। जैसे, नागरिकों को काम करने का अधिकार, अवकाश पाने का अधिकार, शिक्षा का अधिकार आदि। इसलिए ये अधिकार अपूर्ण हैं।
(3) मौलिक अधिकारों के अध्ययन की भाषा बड़ी कठिन तथा अस्पष्ट है। जबकि अमेरिका के संविधान में अधिकारों की भाषा निश्चित स्पष्ट तथा सुलझी हुई है। डॉ. जैनिंग्स का कहना है कि “भारतीय ‘अधिकार-पत्र’ अमेरिकन अधिकार-पत्र’ की भांति स्पष्ट तथा संक्षिप्त नहीं है।”
(4) नजरबन्दी अवस्था भी संविधान पर एक काला दाग है। खेद इस बात का है कि इसे शान्तिकाल में भी लागू किया जा सकता है।
(5) संकटकाल में अधिकारों को स्थगित किया जा सकता है। इस प्रकार इनका कुछ समय के लिए अन्त हो जाता है।
(6) संविधान के 24वें संशोधन के द्वारा संसद को संविधान में संशोधन करके मूल अधिकारों में कमी करने या उन्हें छीन सकने की शक्ति प्राप्त हो गई है। इसलिए सारे देश में इसकी आलोचना हुई है। लोगों का कहना है कि इस संशोधन द्वारा मूल अधिकारों की पवित्रता एवं महत्व समाप्त हो गया है।
(7) डी. आई. आर., मीसा, रासुका आदि अधिनियमों के द्वारा मूल अधिकार बिल्कुल समाप्त हो जाते हैं।
(6) संविधान के 44वें संशोधन द्वारा सम्पत्ति के अधिकार को मूल अधिकारों से निकाल दिया गया है। अब सम्पत्ति का अधिकार केवल मात्र कानूनी अधिकार रह गया है।
(9) 1950 का नजरबन्दी कानून (Prentive Detention Act) मौलिक अधिकारों पर बड़ा प्रतिबन्ध था।
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