नवीन लोक प्रशासन

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नवीन लोक प्रशासन का परिचय Introduction to New Public Administration

नवीन लोक प्रशासन ने लोक प्रशासन विषय को न केवल ताजा प्राणवायु प्रदान की अपितु नई सारगर्भित विषय-वस्तु प्रदान की है। यद्यपि आज यह ‘नवीन’ नहीं रह गया है, किन्तु किसी नवीनतम नारे के अभाव के कारण इसे ही आज भी लोक प्रशासन का नवीनतम सीमा-चिह्न माना जाता है। वैसे ‘नवीन लोक प्रशासन’ आन्दोलन ओझल-सा हो गया है तथापि इसके कतिपय विद्वान इसके मूलभूत मन्तव्यों- प्रासंगिकता, सक्रियतावाद और समता का ढोल आज भी बजाते फिरते हैं।

1960 के बाद उत्पन्न अमरीकी बुद्धिजीवियों के विद्रोह और सामाजिक-आर्थिक उथल-पुथल में इस आन्दोलन की पैदाइश दिखलाई देती है; 1960-70 के दशक में यह आन्दोलन अपनी परवान पर था और आज यह आन्दोलन अपनी महत्तता की चमक खो चुका है तथापि उसका प्रभाव सर्वत्र दृष्टिगोचर है।

नवीन लोक प्रशासन के उद्भव की पृष्ठभूमि Background of the emergence of new public administration

1960 के दशक के अन्त में अमरीकी समाज विघटन एवं टूटन की स्थितियों में से गुजरता हुआ दिखाई दे रहा था। परम्परावादी लोक प्रशासन अमरीकी समाज के संकट को समझने में असफल रहा । सामाजिक-आर्थिक संकटों से उत्पन्न नित-नई माँगों और चुनौतियों का यह सामना करने में अपने आपको असमर्थ पा रहा था। आणविक शस्त्रों से उत्पन्न आतंक, गृहयुद्ध, सामाजिक विभेद, वियतनाम में अघोषित युद्ध, जो विश्व की नैतिक अन्तरात्मा पर प्रहार कर रहा था, ने अमरीकी बुद्धिजीवियों एवं चिन्तकों को चिंतित कर दिया था।

ऐसे माहौल ने अमरीका के युवा बुद्धिजीवियों को तो और भी बेचैन कर दिया क्योंकि एक ओर न तो शासन के संस्थापित केन्द्र कुछ कर पा रहे थे और न मान्यता प्राप्त शिक्षा के मठों में ही कोई हलचल थी। समाज विज्ञान के अन्य विषयों की तरह लोक प्रशासन जैसा विषय भी सामाजिक उथल-पुथल के इस तौर में पूरी तरह से हिल उठा। समाज के समक्ष इन चुनौतियों का उत्तर नए विचारों और नए नारों में ढूँढ़ना आवश्यक हो गया। ऐसा ही एक नया नारा, नया आन्दोलन ‘नवीन लोक प्रशासन’ के नाम से चल निकला।

नवीन लोक प्रशासन आन्दोलन लोक प्रशासन के युवा विद्वानों का आन्दोलन है। यह आन्दोलन 1960 के दशक के उत्तरार्द्ध में शुरू हुआ और लगभग एक दशक तक प्रखर में सामाजिक जागरण का उत्प्रेरक बना, जैसा कि इसके एक प्रमुख समर्थक एच. जार्ज फ्रेडरिक्शन की कृति ‘न्यू पब्लिक ऐडमिनिस्ट्रेशन’ शीर्षक से इंगित होता है, जो 1980 में प्रकाशित हुई थी। ‘नवीन लोक प्रशासन’ शब्द का प्रयोग लोक प्रशासन विषय के लिए नई दार्शनिक दृष्टि का बोध कराने हेतु किया गया।

लोक प्रशासन के रूढ़िवादी नारे थे—‘कुशलता’ और ‘मितव्ययिता’ जिन्हें लोक प्रशासन जैसे गतिशील विषय ने अपर्याप्त और असन्तोषजनक लक्ष्य माना। चूँकि समस्त प्रशासनिक क्रियाविधियों की धुरी मनुष्य है और मनुष्य को कुशलता के यान्त्रिक सांचे में बाँधकर नहीं रखा जा सकता, अतः प्रशासन को मानव उन्मुखी होना चाहिए तथा उसका दृष्टिकोण मूल्य आधारित हो ।

अतः नवीन लोक प्रशासन के समर्थकों ने शोध की प्रासंगिकता पर जोर देते हुए यह प्रतिपादित किया कि अनुसन्धान के लिए परिष्कृत उपकरणों का विकास करना उपयोगी है, परन्तु उससे भी अधिक महत्त्वपूर्ण बात यह उद्देश्य है जिसके लिए इन नूतन उपकरणों को प्रयोगों में लाया जा रहा है। नवीन लोक प्रशासन के विद्वानों का स्पष्ट मत था कि मूल्यों की आधारशिला पर ही ज्ञान की इमारत खड़ी की जा सकती है और यदि मूल्यों को ज्ञान की प्रेरक शक्ति न माना जाए तो सदा ही यह खतरा रहता है कि ज्ञान को गलत लक्ष्यों के लिए काम में लाया जाएगा।

ज्ञान का उपयोग यदि सही उद्देश्यों के लिए करना है तो मूल्यों को उनकी केन्द्रीय स्थिति को फिर से स्थापित करना आवश्यक होगा। शोध महत्त्वपूर्ण सामाजिक समस्याओं से सम्बद्ध होनी चाहिए और लोक प्रशासन विज्ञानियों का काम, समाधान का सुझाव देने के अतिरिक्त, यह भी है कि वे अभीप्सित सामाजिक परिवर्तन को लाने के आन्दोलन का क्रियाशील नेतृत्व अपने हाथों में लें।

नवीन लोक प्रशासन के उदय के कारण या नवीन लोक प्रशासन के लक्ष्य Causes of rise of new public administration or goals of new public administration

नवीन लोक प्रशासन के उदय के कारणों या इसके लक्ष्यों को निम्न बिन्दुओं से स्पष्ट किया जा सकता है

1. लोक प्रशासन की प्रासंगिकता परम्परागत लोक प्रशासन के लक्ष्य थे—कार्यकुशलता व मितव्ययिता। जबकि नवीन लोक प्रशासन का ध्येय है-प्रासंगिकता; अर्थात् सम्बद्ध सामाजिक समस्याओं के प्रति इसकी गहरी चिन्ता । इसका मूल मन्तव्य है— लोक प्रशासन का ज्ञान एवं शोध समाज की आवश्यकता के संदर्भ में ‘प्रासंगिक’ तथा ‘संगतिपूर्ण’ होना चाहिए।

ड्वाइट वाल्डो के शब्दों में, “नव लोक प्रशासन का सार तत्त्व यह है कि वह एक सैद्धान्तिक विचारधारा, दर्शन, सामाजिक चिन्ता तथा सक्रियतावाद की दिशा में एक प्रकार की प्रगति है।”

आधुनिक युग में लोक प्रशासन केवल पोस्डकोर्ब तकनीक से ही सम्बद्ध नहीं रहा अपितु लोक प्रशासन के अध्ययनकर्ताओं को समाज की मूलभूत चिन्ताओं में प्रत्यक्ष भागीदारी का अवसर मिला है। नवीन लोक प्रशासन के उदयकर्ताओं की मान्यता है कि लोक प्रशासन को समाज के उन वर्गों के उत्थान के लिए काम करना है जो गरीब, तिरस्कृत और परित्यक्त हैं। वाल्डो ने बार-बार इस बात पर बल दिया है कि लोक प्रशासन उन मुद्दों से अछूता नहीं रह सकता जिनका सामना समाज को निरन्तर करना है।

2. मूल्यों की पुनर्स्थापना-नवीन लोक प्रशासन स्पष्ट रूप से आदर्शात्मक (Normative) है। यह परम्परावादी लोक प्रशासन के मूल्यों को छिपाने के व्यवहार तथा प्रक्रियात्मक तटस्थता को अस्वीकार करता है। मिन्नोबुक सम्मेलन के प्रतिनिधियों ने यह स्पष्टतः कहा कि मूल्य के प्रति तटस्थ लोक प्रशासन असम्भव है। बुद्धिजीवियों के स्तर पर, अमरीका में हाल के कुछ लेखों में लोक प्रशासन में नैतिकता के महत्त्व पर प्रकाश डाला गया है।

चूंकि लोक प्रशासन के कार्यों का विस्तार हो रहा है अतः यह जरूरी है कि सार्वजनिक पदाधिकारियों के क्रियाकलापों में नैतिकता के प्रति जागरूकता लाई जाए। नैतिक मूल्यों के प्रति फिर से जोर देने के कारण अनेक महत्त्वपूर्ण परिणाम सामने आए हैं जिनका लोक प्रशासन के अध्ययन पर प्रत्यक्ष एवं महत्त्वपूर्ण प्रभाव हमारे सामने है। इससे लोक प्रशासन में उत्तरदायित्व और नियन्त्रण की भावना के प्रति फिर से रुचि बढ़ाने में मदद मिली।

3. सामाजिक समता की स्थापना का लक्ष्य परम्परागत लोक प्रशासन यथास्थितिवादी स्वरूप का था जबकि नवीन लोक प्रशासन सामाजिक समता के सिद्धान्त पर बल देता है। यह समाज के कमजोर वर्गों मसलन, महिलाओं, बच्चों तथा दलितों को सामाजिक न्याय प्रदान करने के लिए संवेदनशील रहता है। नवीन लोक प्रशासन का उद्देश्य विशेषाधिकार प्राप्त वर्ग का अन्त कर सामाजिक समता पर बल देना।

4. महत्त्वपूर्ण परिवर्तन पर बल-सामाजिक समता की प्राप्ति के लिए नवीन लोक प्रशासन परिवर्तन पर बल देता है। यह समाज में यथास्थितिवाद, शोषण, सामाजिक एवं आर्थिक विषमता को समाप्त कर समतायुक्त एवं शोषणविहीन नए समाज की स्थापना करता है। नवीन लोक प्रशासन समाज में परिवर्तन लाने के औजार के रूप में कार्य करता है। यदि समाज का वर्तमन संकट गम्भीर सामाजिक संघर्षों का परिणाम है तो यह आवश्यक हो जाता है कि उन संघर्षो को समाप्त करने का प्रयत्न किया जाए।

इन संघर्षों को दूर करने के लिए यदि वर्तमान राजनीतिक और सामाजिक व्यवस्था को तोड़ना आवश्यक हो तो लोक प्रशासन के विशेषज्ञों को हिम्मत एवं साहस के साथ उसकी माँग करनी चाहिए और उसे केवल सुधारों के अथवा आवश्यक हो तो क्रान्ति के सम्बन्ध में सुझाव मात्र से ही सन्तुष्ट नहीं हो जाना चाहिए, अपितु इस दृष्टि से समाज का पुनर्निर्माण करने के प्रयत्नों में भी योग देना चाहिए कि वह अपेक्षित लक्ष्यों को प्रभावशाली ढंग से क्रियान्वित कर सके।

लोकतंत्र से उनका अर्थ ऐसे ‘सहभागी लोकतंत्र’ participatory democracy) से था जिसमें आम लोगों की सक्रिय सहभागिता हो

संक्षेप में, नवीन लोक प्रशासन आचारशास्त्र, मूल्यों, अभिनव परिवर्तन तथा सामाजिक समानता पर बल देता है। इसके अनुसार मूल्यों की आधारशिला पर ही लोक प्रशासन का भवन खड़ा किया जा सकता है। लोक प्रशासन का औचित्य उसी स्थिति में मान्य होगा, जबकि समाज में व्याप्त विषमताओं, संघर्षों, आकांक्षाओं, संदर्भों एवं चिन्ताओं के उचित समाधान निकाले जाएँ।

नवीन लोक प्रशासन की संभावनाएँ

लोक प्रशासन को नूतन आयाम दिए जाने की आवश्यकता है। जिन नवीन समस्याओं का उसे सामना करना है, उनमें से कुछ बढ़ती हुई सैनिक शक्ति, दौड़ती हुई प्रविधि, तकनीकें, शहरीकरण, नागरिक अधिकार एवं सहभाग तथा विकास से सम्बन्ध रखती हैं। उसे नवीन कार्यात्मक क्षेत्रों में प्रवेश करने के लिए आमन्त्रित किया जा रहा है; यथा जनसंख्या विस्फोट तथा उसका नियंत्रण, मद्यनिषेध तथा अन्य अस्वास्थ्यकर उत्पादनों की रोकथाम, पर्यावरण एवं प्रदूषण से सम्बन्धित व्यवस्था, पुलिस और अपराध, विदेशी मामले तथा सांस्कृतिक आदान-प्रदान, सार्वजनिक नैतिकता, आदि।

इसके लिए लोक प्रशासन सिद्धान्त में नवीन संगठन, संरचनाएँ, प्रक्रियाएँ, कार्यविधियाँ आदि विकसित करने की क्षमता होनी चाहिए। लोकविज्ञानी आई. शरकान्स्की ने ऐसे सिद्धान्तों की रूपरेखा ईस्टन और आमण्ड के प्रारूपों के आधार पर दी है। उत्तर-औद्योगिक समाज की कतिपय सर्वथा नवीन समस्याओं का सामना करने के लिए ऐसा सिद्धान्त एक तात्कालीन आवश्यकता बन गया है। लोक विज्ञानिकों ने नवीन लोक प्रशासन को उत्साही सुधारक, सजग नीति-निर्माता, सामाजिक परिवर्तन का अभिकर्ता, संकट प्रबन्धक, मानवीय नियोक्ता, मध्यस्थ, राजनीतिक आन्दोलनकर्ता, रचनात्मक, आशावादी नेता, आदि भूमिकाएँ प्रदान की हैं।

निस्सन्देह इन भूमिकाओं के निर्वहन के लिए उसमें नवीन गुणों एवं क्षमताओं की आवश्यकता होगी। सामान्य लोक प्रशासन सिद्धान्त इस दिशा में निरन्तर मार्गदर्शन करता रहेगा। स्पष्टतः ऐसा लोक प्रशासन सिद्धान्त लोचशील, गतिमान, आनुभविक एवं लक्ष्योन्मुख व सृजनात्मक होगा। लोक प्रशासन के वर्तमान विकास को देखते हुए उसके ‘निर्माण’ और ‘विकास’ की काफी सम्भावनाएँ प्रतीत हो रही हैं।

निष्कर्ष

नवीन लोक प्रशासन की धारणा ने लोक प्रशासन की विषय-वस्तु को व्यापक बना दिया है। लोक प्रशासन की नवीन धारणा के अनुसार उसका समाज से सीधा सम्बन्ध स्थापित हो गया। नवीन लोक प्रशासन की धारणा से लोक प्रशासन सम्बन्धी परम्परागत धारणा एवं विचारों को गहरा धक्का लगा है और लोक प्रशासन का विषय-क्षेत्र बढ़ा है। यह और अधिक रूप में आदर्शात्मक होता जा रहा है, क्योंकि यह अब सामाजिक समता के प्रति उन्मुखता, गैर-नौकरशाही, विकेन्द्रीकरण, लोकतान्त्रिक निर्णय प्रक्रिया, आचार सम्बन्धी व्यवहार एवं निरन्तर फैलती हुई प्रशासनिक व्यवस्थाओं व नागरिकों की भागीदारी के प्रश्नों से सम्बन्धित है। यह लोक प्रशासन को ‘नौकरशाही‘ के जाल से निकालकर ‘मैनेजीरियलिज्म’ की ओर उन्मुख करना चाहता है।

यह पदसोपान की कड़ाई से कार्मिकों को मुक्त कर ‘साहसिक सरकार’ की अवधारणा को साकार करना चाहता है। नौकरशाही के मैक्स वेबर प्रतिमान को नवीन लोक प्रशासन सीधी चुनौती देता है। मुवक्किल उन्मुख, मूल्यों पर जोर देने वाला अथवा आदर्शी एवं सामाजिक दृष्टि से सजग लोक प्रशासन, जैसा नव आन्दोलन ने प्रतिपादित किया, ‘तीसरे विश्व के लिए प्रत्यक्ष रूप से प्रासंगिक है। नवीन लोक प्रशासन ने, संक्षेप में, मानवीय चिन्ताओं पर जोर दिया और विकेन्द्रीकरण, प्रतिनिधित्व, सामाजिक समता और ऐसे ही अन्य सामाजिक गुणों के विकास पर जोर दिया।

आलोचकों के अनुसार नवीन लोक प्रशासन के समर्थकों की रुचि वर्तमान समाज को बदल डालने में थी न कि एक नवीन सामाजिक व्यवस्था की स्थापना में। परन्तु इसमें सन्देह नहीं कि उन्होंने अमेरिका के शैक्षणिक जगत में ऐसे सामाजिक आलोचकों को प्रेरणा दी जिन्होंने सामाजिक विद्रोह के अधिक सुलझे हुए सिद्धान्तों के विकास की दिशा में कुछ ठोस कदम उठाए।

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