थायराइड ग्रंथि के कार्य क्या है

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थायराइड ग्रन्थि ग्रीवा क्षेत्र में श्वास नली के ऊपर व पाश्र्व भाग में श्वास नली से जुड़ी रहती है।

थायराइड ग्रंथि की संरचना

यह ग्रन्थि द्विपालित होती है और दोनों पालि पट्टीनुमा संयोजक (isthmus) से जुड़ी रहती हैं। यह ग्रन्थि ‘H’ आकार की प्रतीत होती है। इसका रंग गुलाबी होता है, यह सबसे बड़ी अन्तःस्रावी ग्रन्थि है। मनुष्य में इसका वजन 25 से 30 ग्राम होता है। मादा में यह कुछ बड़ी होती है। थायराइड ग्रन्थि में अनेक छोटे-छोटे पुटक (follicle on acini) होते हैं।

इन पुटकों के अन्दर कोशिकाओं के समूह पैरापुटिकीय कोशिकाएँ या सी-कोशिकाएँ (Parafollicular or C cell) एवं लसदार, पारदर्शी कोलाइडी थायरोग्लोब्युलिन (thyroglobulin) प्रोटीन भरा रहता है जो निष्क्रिय अवस्था में होता है। एक विशेष हार्मोन TSH (थॉयराइड उत्तेजक हार्मोन) थायरो – ग्लोब्यूलिन प्रोटीन को उत्तेजित करता है जिससे पुटिकाओं में उपस्थित आयोडीन टाइरोसीन (Tyrosine) अमीनो अम्ल (थायरोग्लोब्यूलिन का भाग) से क्रिया कर दो हार्मोन, टेट्रा-आयोडोथायरोनिन (Tetra iodo – thyronine – T4 ) या थायरॉक्सिन तथा ट्राई – आयोडोथाइरोनिन ( Tri – iodo – thyronine – T3 ) बनाता है । थायरॉक्सिन की मात्रा 65 % से 90 % व T3 की मात्रा 10 % से 35 % तक होती है । C- कोशिकाओं द्वारा थायरोकेल्सिटोनिन हार्मोन स्रावित होता है ।

थाइरॉइड हार्मोन्स के कार्य

( i ) यह ऑक्सीकारक उपापचय ( Oxidative metabolism ) को कोशिकाओं में ऊर्जा उत्पादन की दर अर्थात् ‘ जीवन की रफ्तार ‘ ( tempo of life ) बढ़ाता है । अतः शरीर की वृद्धि में सहायक है।

( ii ) यह आंत्र से ग्लूकोज के अवशोषण को O2 की खपत को , आधार उपापचयी दर ( BMR ) तथा हृदय – स्पंदन दर को बढ़ाता ।

( iii ) यह एन्जाइम , प्रोटीन के संश्लेषण , ग्लूकोनिओजिनेसिस , शरीर के ताप तथा तंत्रिका के कार्य को बढ़ाता है ।

( iv ) थायरोकैल्सिटोनिन रक्त में कैल्सियम की सान्द्रता को कम करता है तथा ऊतकीय द्रव ECFमें Ca ++ की संख्या को घटाता है ।

( v ) यह उभयचरों में कायान्तरण के लिए आवश्यक है । जल में आयोडीन की कमी से मेंढक शिशुओं ( Tadpoles ) में कायान्तरण नहीं होता है और टेडपोल बिना कायान्तरण के ही जनन करते हैं , इसे नियोटिनी ( neoteny ) या पीडोजिनेसिस ( Pedogenesis ) कहते हैं ।

( vi ) शीत रुधिर कशेरुकियों में यह हार्मोन परासरण नियमन और निर्मोचन का कार्य भी करता है ।

थाइरॉइड अनियमितताएँ एवं रोग

थायराइड ग्रंथि के कार्य क्या है

1. अल्पस्त्राव Hypothyroidism

थाइरॉइड अल्प स्त्राव , आनुवंशिक दोष है जो भोजन में आयोडीन की कमी या मूत्र में अधिक आयोडीन जाने से होता है । इससे निम्न रोग हो जाते हैं

( i ) अबुटवामनता या जड़मानवता Cretinism

बचपन में थाइरॉइड के अल्प स्रावण से यह रोग होता है । इस रोग में शारीरिक व मानसिक वृद्धि मन्द हो जाती है । हाथ – पाँव बेडौल हो जाते हैं तथा बच्चे बौने रह जाते हैं । ऐसे बच्चों को क्रीटिन्स कहते हैं । इनके जननांग भी विकसित नहीं होते तथा अप्रजायी ( Sterile ) होते हैं ।

( ii ) मिक्सीडिमा Myxoedema

यह रोग प्रौढ़ व्यक्तियों में थाइरॉइड के अल्प स्रावण से होता है । इस रोग में जड़मानवता के साथ त्वचा का मोटा होना , बालों का झड़ना , स्मरण शक्ति कमजोर होना , त्वचा पीली होना और जनन क्षमता कम हो जाती है । थॉयरोक्सिन देने से यह रोग ठीक हो जाता है ।

( iii ) सामान्य घेंघा या गलगण्ड Simple Goitre

यह रोग भोजन में आयोडीन की कमी के कारण होता है । इसमें थॉयराइड ग्रन्थि फूलकर बड़ी हो जाती है । इस रोग को हाइपोलसिया भी कहते हैं । जब यह रोग किसी क्षेत्र विशेष जैसे पहाड़ी क्षेत्र में होता है तब इसे एन्डेमिक ( endemic ) घेंघा कहते हैं ।

( iv ) हाशीमोटो का रोग Hashimoto’s Disease

जब थाइरॉइड का स्रावण अत्यधिक कम हो जाता है तब उपचार हेतु दिया गया प्रोटीन हार्मोन विष ( Antigen ) जैसा काम करता है , जिसे नष्ट करने हेतु प्रतिविष ( Antibody ) बनने लगते हैं जो स्वयं ग्रन्थि को नष्ट कर देते हैं । इसे थाइरॉइड की आत्महत्या ( Suicide ) कहते हैं ।

2. अतिस्त्रावण Hyperthyroidism

थाइरॉइड के अतिस्त्रावण से उपापचय दर , हृदय की स्पन्दन दर , रक्त – दाब बढ़ जाता है तथा निम्न अनियमिततायें हो जाती हैं

( i ) अतिस्रावण से शरीर में अनावश्यक उत्तेजना , थकावट , चिड़चिड़ापन , घबराहट आदि अवस्थाएँ प्रकट होने लगती हैं ।

( ii ) थायरॉक्सिक के अतिस्रावण से नेत्रों के नीचे श्लेष्म जमा हो जाता है और नेत्र गोलक बाहर की ओर आ जाते हैं । इस प्रकार के रोग को नेत्रोंसेंधी गलकण्ड ( exopthalmic goitre ) कहते हैं । ऐसे व्यक्ति की दृष्टि डरावनी , घूरती हुई सी ( staring ) होती है । प्लूमर के रोग ( Plumer’s disease ) में ग्रन्थि में जगह – जगह गांठें बन जाने के कारण यह फूल जाती है ।

( iii ) यदि थाइरॉइड ग्रन्थि में जगह – जगह गांठें बन जायें तो यह अवस्था प्लूमर का रोग कहलाती है ।

( iv ) ग्रन्थि के फूल जाने की अवस्था को ग्रेवी का रोग ( Grave’s disease ) कहते हैं ।

अल्प स्राव वाली सभी बीमारियों को भोजन में आयोडीन की मात्रा में बढ़ाने से ठीक किया जा सकता ।

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