टेलीविजन – वरदान और अभिशाप, दूरदर्शन और उसका प्रभाव
प्रस्तावना
टेलीविजन पर निबंध- आज का युग विज्ञान का युग है। वैज्ञानिकों ने अपने विविध आविष्कारों से मानव का जीवन सुख-सुविधा सम्पन्न बनाया है। वैज्ञानिक उपलब्धियों ने इस धरती को स्वर्ग के समान बना दिया है तथा जीवन के स्वरूप में क्रान्तिकारी परिवर्तन ला दिए हैं। 26 जनवरी, 1926 ई. को जब लन्दन में हजारों लोगों ने पहली बार पर्दे पर टेलीविजन के सफल प्रयोग द्वारा बेतार के दूरस्थ चित्रों को देखा, तो उनके आश्चर्य की सीमा न रही और जेम्स लागी बेयर्ड ने विश्व को एक अपूर्व नवीनतम आविष्कार मानव की सेवा में समर्पित कर अलौकिक यश प्राप्त किया।
“टेलीविजन विज्ञान के आविष्कारों में से एक अभूतपूर्व आविष्कार है, जिसमें ध्वनि के साथ-साथ चित्र भी देखे जा सकते हैं। इसमें हम किसी वक्ता के भाषण के साथ-साथ प्राकृतिक दृश्यों एवं विभिन्न घटनाओं के विवरण अपनी आँखों से देख सकते हैं। भारत में भी दूरदर्शन का प्रारम्भ दिल्ली में हुआ। जिसे दिल्ली और दिल्ली के चारों ओर लगभग 60 किलोमीटर तक देखा जा सकता था। सन् 1972 में बम्बई और श्रीनगर में दूरदर्शन केन्द्र स्थापित किये गये। आज तो भारत सरकार द्वारा 500 से अधिक टी.वी. रिले केन्द्र भारत के विभिन्न जिलों में लगाये। जा चुके हैं।
दूरदर्शन से प्रसारित होने वाले कार्यक्रमों में शिष्ट और स्वस्थ मनोरंजन के लिए गीत-संगीत, नाटक, नृत्य, घर-बार की बातें, साहित्यिक कार्यक्रम, विशिष्ट व्यक्तियों के साथ वार्ता, खेलकूद, फिल्म आदि हैं, साथ ही समाचार भी होते हैं। देश-विदेश की महत्त्वपूर्ण घटनाओं की फिल्म दिखाई जाती है। इसके अतिरिक्त स्कूल शिक्षा के कार्यक्रम भी विशेष रूप से प्रसारित होते हैं जो हमारे सामाजिक जीवन को प्रभावित किए बिना नहीं रह सकते हैं। समाज का निरक्षर वर्ग भी सुनकर व देखकर बात को समझ जाता है। यह आँखों देखी व कानों सुनी घटनायें होने के कारण आम मानव को सुलभता से ग्राह्य होती है।
दूरदर्शन से समाज को लाभ
भारतीय समाज में जाति प्रथा, बाल-विवाह, दहेज प्रथा, मद्य-पान, अन्ध-विश्वास आदि अनेक कुरीतियाँ फैली हुई हैं जिन्हें सरकार मात्र कानून बनाकर रोकने में असफल रही है। जनसंख्या की वृद्धि पर प्रभावशाली अंकुश अभी तक नहीं लगाया जा सका है। लेकिन इन अन्धविश्वासों व कुरीतियों के दुष्परिणामों को दूरदर्शन पर दिखाकर आम जनता को सजग किया जा सकता है। उन्हें यह सोचने को मजबूर किया जा सकता है कि वस्तुतः वे जो कुछ कार्य कर रहे हैं वे कहाँ तक ठीक हैं। ऐसा करने से जनता में एक नवीन सोच जागृत होगा। वे कुरीतियों से बचने के यथासम्भव प्रयास करेंगे। इसका सीधा प्रभाव समाज पर पड़ता है। सामाजिक चेतना तथा जन-जागरण लाने में दूरदर्शन एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।
दूरदर्शन ने विद्यार्थियों के जीवन को भी प्रभावित किया है। आजकल दूरदर्शन पर प्रतिदिन नियमित रूप से कुछ घण्टों का कार्यक्रम विद्यार्थियों के लिए प्रसारित होता है। इसमें पाठ्यक्रम को चित्रों द्वारा समझाया जाता है। इस प्रकार से विद्यार्थियों का ध्यान विभिन्न विषयों की ओर अधिक अच्छी तरह से आकर्षित करके उनके प्रति रुचि जागृत की जा सकती है। छात्र पढ़े या सुने प्रकरण को विस्तृत कर देता है लेकिन जब वह उसी घटना को दूरदर्शन पर प्रत्यक्ष देख लेता है व सुन लेता है तो उसे वह घटना कभी नहीं भूलती है। जो उसकी याददास्त को भी बढ़ाती है। इस प्रकार समाज को सुशिक्षित, उच्च ज्ञान प्राप्त विद्यार्थी मिलते हैं। जो समाज के नव निर्माण में सहायक होते हैं।
दूरदर्शन औपचारिक शिक्षा के साथ-साथ अनौपचारिक शिक्षा देने का भी कार्य करता है। दूरदर्शन पर कृषकों के लिए भी विशेष कार्यक्रम प्रस्तुत किया जाता है, जिसमें उन्हें खेती के आधुनिकतम साधनों के उपयोग की शिक्षा दी जाती है। उन्हें सिचाई, कीटनाशक दवाइयों का प्रयोग, बीज बोने का समय, उसकी उन्नत किस्म, फसल की देखभाल आदि के साथ ही पशुओं की देखभाल, उनके रोग व चिकित्सा की जानकारी भी प्रदान की जाती है।
इस प्रकार की जानकारी को किसान वर्ग सुगमता से ग्रहण कर लेते हैं और वे इसे प्रयोग में भी लाते हैं क्योंकि इनके उपयोग के लाभ वे अपनी आँखों से देख लेते हैं कानों से सुन लेते हैं। इस प्रकार से समाज को अधिक अन्न के साथ ही अधिक दुधारु पशु भी प्राप्त होते हैं।
मनोरंजन के क्षेत्र में दूरदर्शन की श्रेष्ठता असंदिग्ध है। उपग्रह संचार के माध्यम से देश-विदेश में होने वाले मनोरंजक कार्यक्रमों, खेल-कूद प्रतियोगिताओं का सीधा प्रसारण होता है मनोरंजन के क्षेत्र में दूरदर्शन के माध्यम से एक नया अध्याय जुड़ा है। टेलीविजन कैमरे से चन्द्रमा की सतह के चित्र ढ़ाई लाख मील दूर से पृथ्वी पर भेजना, देश-विदेश के मौसम के चित्रों से मौसम का पूर्वानुमान करना अब सरल हो गया है।
विज्ञापन का तो दूरदर्शन सर्वश्रेष्ठ माध्यम माना जाने लगा है। खोये हुए व्यक्तियों की सचित्र सूचनायें, विभिन्न संस्कृतियों, धार्मिक पर्वो, उत्सवों तथा वैज्ञानिक उपलब्धियों की चित्रमय झाँकी दूरदर्शन द्वारा देखी जा सकती है।
दूरदर्शन का समाज पर बुरा प्रभाव
दूरदर्शन के उपर्युक्त लाभों के साथ ही इसका एक-दूसरा पक्ष भी है। आज दूरदर्शन से लोगों में निष्क्रियता, आलस्य, पंगुता और वैयक्तिकता बढ़ने लगी है और पारिवारिक व सामाजिक सम्बन्धों पर उसका अच्छा प्रभाव नहीं पड़ रहा है। एक ही चलचित्र को परिवार के सारे सदस्य एक ही स्थान पर बैठ कर देखते हैं तो उनकी भिन्न-भिन्न प्रतिक्रियायें दब कर रह जाती हैं,
कुण्ठायें उत्पन्न होती हैं और पारस्परिक सम्मान व लिहाज की भावनायें समाप्त हो जाती हैं। आज विद्यार्थी दूरदर्शन देखने में अपना समय बरबाद ही करता है, क्योंकि सूर्योदय के साथ ही वह पुस्तकें छोड़कर दूरदर्शन के सामने जाकर बैठ जाता है और प्रत्येक कार्यक्रम देखता है।
बच्चे तो अनुकरणप्रिय होते हैं और वे दूरदर्शन से ढिसूग-ढिसूग, हाथों की पिस्तौल बनाकर गोलियाँ चलाना, नाचना कूदना व कई भद्दे गानों की तर्जे मस्ती से गाते नजर आते हैं। इतना ही नहीं कभी किसी पाउडर, कभी किसी साबुन, कभी किसी डिटरजेन्ट व कभी किसी लिपस्टिक की माँग करने लगते हैं तथा मद्यपान और फैशन का अनुकरण करते हुए इठलाते हुए चलते हैं।
दूरदर्शन के विभिन्न चैनलों से कभी एक ही समय में दो उपयोगी कार्यक्रम एक साथ प्रसारित होते हैं, जिनमें से एक को देखने से हमें वंचित होना पड़ता है। वास्तव में दूरदर्शन हमें यथार्थ से हटाकर काल्पनिक जीवन की विकृतियों की ओर ले जा रहा है।
उपसंहार
दूरदर्शन के इन अच्छे बुरे प्रभावों के विश्लेषण से हमें इसकी अच्छाई-बुराई का ज्ञान हो जाता है परन्तु इसकी सामाजिक उपादेयता असंदिग्ध है। जनमानस में व्याप्त कुरीतियों, साम्प्रदायिक भावनाओं, जातिवाद, दहेज जैसी अनेक कुप्रथाओं और कुरीतियों से मुक्ति दिलाने में इसका सहयोग अतुलनीय है।
शिक्षा के क्षेत्र में भी इसने क्रान्ति उपस्थित की है। परन्तु इसके कुप्रभावों को दूर करना भी आवश्यक है और उसके लिए हमें दूरदर्शन के माध्यम से सर्वजनोपयोगी शिक्षाप्रद कार्यक्रमों के प्रसारण की ओर ही ध्यान देना चाहिए। दूरदर्शन की इतनी उपयोगिता होते हुए भी वह शिक्षक का स्थान नहीं ले सकता है क्योंकि दूरदर्शन से जो बातें स्पष्ट नहीं होती हैं, उन्हें स्पष्ट करने के लिए अध्यापक की आवश्यकता होती है।
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