जीवाणुओं में प्रजनन, reproduction in bacteria, types of reproduction in bacteria
जीवाणुओं में जनन मुख्यतया कायिक (vegetative) या अलैंगिक ( asexual ) विधि द्वारा होता है । पहले जीवाणुविज्ञ मानते थे कि इनमें लैंगिक प्रजनन नहीं होता लेकिन इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी द्वारा ऐसा देखा गया कि जीवाणुओं में आनुवांशिक पदार्थ का विनिमय / पुनर्योजन ( genetic recombination ) होता है ।
जीवाणु जनन के प्रकार Types of reproduction in Bacteria
I. कायिक जनन Vegetative reproduction
कायिक प्रजनन चार प्रकार से हो सकता है :
(1) द्विविखण्डन binary fission,
(2) मुकुलन budding
(3) पुटी (cyst) एवं
(4) खण्डीभवन (segmentation)
1. द्विविखण्डन Binary fission
वातावरणीय परिस्थितियों जैसे तापमान , भोजन की उपलब्धता , जल इत्यादि के अनकूल होने पर इस विधि द्वारा प्रजनन होता है । जीवाणु की एक मात्र कोशिका , विभक्त होकर दो समान आकार की पुत्री कोशिकाओं को जन्म देती है | दण्डाणु ( bacili ) तथा कुण्डलित ( spiral ) जीवाणु कोशिका की लम्बवत् अंक्ष के समकोण बनाते हुए विभक्त होते हैं जबकि गोलाणु या कॉकस ( coccus ) जीवाणु किसी भी अक्ष पर विभाजित हो सकते हैं । द्विविखण्डन के अन्तर्गत निम्न प्रक्रियाएँ होती हैं । इस सारी प्रक्रिया में मध्यकाय ( mesosomes ) कार्य करते हैं ।
( i ) आनुवांशिक पदार्थ का विभाजन Division of genetic material
जब जीवाणु कोशिका अपना अधिकतम आकार प्राप्त कर लेती है तब विभाजन के लिए कोशिका लम्बाई में बढ़ने लगती है । इसके साथ आनुवांशिक पदार्थ , वृत्ताकार डी.एन.ए. (circular DNA) पुनरावृति ( replication ) द्वारा दो भागों में विभाजित हो जाता है । डी.एन.ए. पुनरावृति की क्रिया अर्द्धसंरक्षित ( semiconservative ) प्रकार की होती है । यह मत कैर्न ( Cairn , 1963 ) ने दिया था , अतः इसे कैर्न का प्रारूप ( Cairn’s model ) भी कहते हैं ।
( ii ) विभाजिका का बनना Formation of septum
जीवाणु कोशिका के मध्य स्थान पर कोशिका झिल्ली अन्तर्वलित ( invaginate ) होनी प्रारम्भ होती है।
कोशिका भित्ति के 4 परतों में से सबसे अंदर की परत कोशिका झिल्ली की सहगामी होती है
है और प्रारम्भिक पट ( septum initial ) बनाती है । कोशिका झिल्ली के अन्तर्वलय धीर – धीरे बढ़ते हैं और आपस में मिल जाते हैं और कोशिकाद्रव्य को दो बराबर भागों में विभक्त कर देते हैं ।
( iii ) पुत्री कोशिकाओं का पृथक्करण Separation of daughter cells
कोशिका सतह बना संकीर्णन ( constriction ) गहरा होता जाता है और अब कोशिका पूरी तरह से ( बाहरी सतह से भी ) विभक्त हो जाती है , साथ ही पुत्री कोशिकाओं का आकार भी बढ़ने लगता है और दोनों कोशिकाएँ अलग हो जाती हैं । ये दोनों कोशिका भित्ति की बाहरी दो परतों का निर्माण स्वयं ( de novo ) करती हैं । अनुकूलन वातावरण में द्विखंडन की प्रक्रिया में 15-20 मिनट लगते हैं । शुरू में विभाजन की गति कम होती है फिर एकदम से बहुत अधिक हो जाती है इसके बाद भोजन इत्यादि की कमी के कारण फिर से मंद हो जाती है ।
2. मुकुलन Budding
जीवाणु कोशिका के एक ध्रुव पर या उसके करीब ही कोशिका भित्ति की मोटाई कम हो जाती है । यहाँ से पतली भित्ति कोशिका कला से ढका , कोशिकाद्रव्य का प्रवर्ध उभार निकल आता है जो आकार में बढ़ता जाता है इसे मुकुल ( bud ) कहते हैं । इसी दौरान मातृ कोशिका में आनुवांशिक पदार्थ का विभाजन होता है और संकीर्णन ( contriction ) के द्वारा मातृ कोशिका से अलग हो जाता है । पुत्री कोशिका या मुकुल मातृ कोशिका के बराबर आकार प्राप्त कर स्वयं मुकुलन के द्वारा पुत्री कोशिकाओं का निर्माण करती है ।
3. पुटी Cysts
कुछ जीवाणुओं में कोशिका का सम्पूर्ण जीव द्रव्य Protoplast , कोशिका भित्ति ( cell wall ) से अन्दर की ओर इकट्टा हो जाता है । फिर इसके सभी ओर एक मोटी भित्ति बन जाती है । यह रचना अन्तःबीजाणु ( endospore ) जैसी प्रतिरोधी होती है । ये एजोबेक्टर ( Azobacter ) की कुछ जातियों में पाये जाते हैं । अनुकूल परिस्थितियाँ आने पर पुटी ( cysts ) अंकुरित होकर एक नयी जीवाणु कोशिका बनाते हैं ।
4. खण्डीभवन Segmentation
कुछ जीवाणु कायिक जनन खण्डीभवन प्रक्रिया द्वारा करते हैं इसमें जीवाणु कोशिका का जीवद्रव्य किसी अवस्था में , विभाजित होकर बहुत छोटी – छोटी संरचनायें बनाता है जिन्हें गोनिडिया (gonodia) कहते हैं । कोशिका भित्ति के फटने से ये सूक्ष्म गोनिडिया बाहर आ जाते हैं जो कि उपयुक्त वातारण में जीवाणु की नयी कोशिकाओं के रूप में वृद्धि करते हैं ।
II . अलैंगिक जनन Asexual reproduction
1. कोनिडिया द्वारा By conidia
एक्टिनोमाइसिटीस ( actinomycetes ) प्रकार के स्ट्रेप्टोमासीज ( Streptomyces ) जीवाणुओं में गोल या छड़ के अकार के कोनिडिया ( conidia ) शाखाओं के सिरों पर निर्मित होते हैं । सामान्य जीवद्रव्य एवं कुछ केन्द्रीय पदार्थ एक संकीर्णन ( constriction ) द्वारा मुख्य शाखा से अलग हो जाते हैं । इस प्रकार ये तलाभिसारी क्रम ( basipetal succession ) में होते हैं | अनुकूल परिस्थितियाँ प्राप्त होने पर प्रत्येक कोनिडियम अंकुरित होकर नये जीवाणु सूत्र को जन्म देता है ।
2. ऑइडियोबीजाणु द्वारा By oidiospores
एक्टीनोमाइसिज ( Actinomyces ) के तन्तुओं ( hyphae ) के खुले सिरों पर कोनिडिया बनने के बजाय इनमें पूरे तन्तुओं में पट ( septa ) बन जाते हैं इस प्रकार इनमें असंख्य छोटी – छोटी जनन इकाइयाँ बन जाती हैं जिन्हें ऑइडियो बीजाणु कहते हैं । प्रत्येक ऑइडियम ( oidium ) अंकुरित होने पर एक तन्तुनुमा जीवाणु बनाता है ।
3. स्पोरेन्जियोबीजाणु द्वारा By sporangiospores
कुछ शाखित जीवाणुओं ( branching bacteria ) में तन्तुओं के सिरों पर स्पोरेन्जिया सदृश्य संरचनाएँ बन जाती हैं जो बाद में मातृ तन्तु से अलग हो जाती है । स्पोरेन्जियम ( sporangium ) का जीवद्रव्य विभक्त होकर स्पोरेन्जियोबीजाणु बना सकता है । स्पोरोन्जियोबीजाणु अनुकूल परिस्थितियों में अंकुरित होकर तन्तुनुमा शाखित जीवाणु बनाते हैं ।
4. अन्तःबीजाणु द्वारा By endospores
कुछ जीवाणु प्रतिकूल परिस्थितियाँ आने पर एक विशिष्ट संरचना का निर्माण करते हैं जिसे अन्तःबीजाणु ( endospore ) कहते हैं । ये मातृ जीवाणु कोशिका में बनने वाली अति प्रतिरोधी ( highly resistant ) , उपापचयी क्रिया रूप से सुषुप्त ( dormant ) एक कोशिकीय संरचना है । आमतौर पर बड़े आकार के दण्डाणु ( bacilli ) जैसे बैसिलस ( Bacillus ) तथा क्लॉस्ट्रीडियम ( Clostridium ) में अन्तः बीजाणु पाये जाते हैं । ये अधिकतर ग्राम ग्राही ( Gram + ve ) प्रकार के होते हैं |
III . जीवाणु में लैंगिक जनन
जीवाणुओं में वास्तविक लैंगिक जनन नहीं होता क्योंकि इनमें कोई प्रजनन अंग ( sex organs ) नहीं होते हैं और इनमें लैंगिक युग्मन के बाद एक कोशिकीय संरचना नहीं बनती बल्कि दोनों कोशिकाएँ अलग – अलग ही रहती हैं । जीवाणु में केन्द्रक संयुग्मन ( nucleogamy ) तथा अर्द्धसूत्री विभाजन ( meiosis ) भी नहीं होता है । इनमें आनुवांशिक पदार्थ का आदान – प्रदान तीन प्रकार से हो सकता है
( 1 ) रूपान्तरण ( Tranformation ) , ( 2 ) संयुग्मन ( Conjugation ) तथा ( 3 ) पराक्रमण ( Transduction )
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