जीवाणुओं और विषाणु

जीवाणुओं और विषाणुओ में अंतर difference between bacterium and virus

जीवाणुओं का सामान्य विवरण (General account of bacteria)

1. जीवाणु सर्वव्यापी ( omnipresent ) अर्थात भू , जल तथा वायु सभी स्थानों पर पाये जाते हैं।

2. ये अत्यन्त सरल संरचना युक्त एक कोशिकीय (umicellular) प्रोकेरियोटिक (procaryotic) सूक्ष्म जीव होते हैं ।

3. अधिकांश जीवाणु , क्लोरोफिल के अभाव के कारण अपना भोजन स्वयं नहीं बना सकते हैं अतः वे मृतोपजीवी ( saprophytic ) अथवा परजीवी ( parasitic ) होते हैं ।

4. इनमें दृढ़ कोशिकाभित्ति ( cell wall ) पायी जाती है जो म्यूकोपेप्टाइड ( mucopeptide ) से निर्मित होती है । इनमें सेलुलोज ( cellulose ) नहीं पाया जाता है ।

5. अन्य प्रोकेरियोट जैसे नील – हरित शैवालों ( blue – green algae ) के समान इनमें सुस्पष्ट केन्द्रक नहीं होता है केन्द्रक कला ( nuclear membrane ) तथा केन्द्रित ( nucleolus ) का अभाव होता है ।

6. आर . एन . ए . ( RNA ) तथा डी . एन . ए . ( DNA ) दोनों प्रकार के न्यूक्लिक अम्ल ( nucleic acids ) उपस्थित होते हैं ।

7. इनमें माइटोकोन्ड्रिया ( mitochondria ) , गॉल्जी उपकरण ( golgi apparatus ) अन्तःप्रर्दव्यी जालिका (endoplasmicreticulum) का अभाव होता है ।

8. कोशिका में श्वसन का कार्य अन्तर्वलित कोशिकाद्रव्यी कला ( involuted cytoplasmic membrane ) र में स्थित मीजोसोम ( mesosome ) द्वारा किया जाता है ।

9. इनमें अन्य पादपों से भिन्न , क्लोरोफिल – ए ( chlorophyll – a ) का अभाव होता है ।

10. स्वयंपोषी जीवाणुओं (autotrophic bacteria) में जीवाणु क्लोरोफिल (bacterio chlorophyll) वर्णक (pigment) पाया जाता है ।

11. अलैंगिक जनन (asexual reproduction) प्रायः विखण्डन (fission) द्वारा होता है ।

12. लैंगिक जनन ( sexual reproduction ) स्पष्ट रूप से नहीं होता है परन्तु कुछ जीवाणुओं में लैंगिक अथवा आनुवांशिक पुनर्योजन ( sexual or genetic recombination ) होता है जो कि संयुग्मन ( conjugation ) पराक्रमण ( transduction ) तथा रूपान्तरण ( transformation ) द्वारा होता है ।

13. जीवाणुओं के कारण ही प्रकृति में नाइट्रोजन एवं कार्बन चक्र निरन्तर चलते रहते हैं जिससे पृथ्वी पर जीवन का अस्तित्स सम्भव हो सका है ।

विषाणु के सामान्य गुण General Characters of Virus

1. विषाणु अति सूक्ष्म कणिकामय (particulate) संरचनायें होती है जिनको केवल इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी द्वारा ही देखा जा सकता है । इनकी नाप 10-300 मिलि माइक्रोन ( mu ) के लगभग होती है ।

2. विषाणुओं को जीवाणुज फिल्टर (bacterial filter) द्वारा छानने पर फिल्टरित ( Filtrate ) से नहीं किया जा सकता है लेकिन विशेष प्रकार के आणविक फिल्टरों ( molecular filters ) द्वारा जो कि बहुत ही सूक्ष्म छिद्र वाले कॉलोडीऑन ( collodion ) या प्लास्टिक पदार्थों से बने होते हैं , फिल्टर पर रोका जा सकता है ।

3. सजीव पोषक कोशिका के बाहर उपस्थित विषाणु , निर्जीव कणों ( non – living particles ) के रूप में होते हैं लेकिन इनके किसी सजीव कोशिकाद्रव्य में पहुँचते ही ये सजीव ( living ) के लक्षण दर्शाते ।

4. एक परिपक्व विषाणु कण ( virion ) में आनुवांशिक पदार्थ के रूप में एक ही प्रकार का न्यूक्लिक अम्ल , डी.एन.ए. ( DNA ) या आर.एन.ए ( RNA ) होता है । यह प्रोटीन या लाइप्रोटीन के एक संरक्षी आवरण से संरक्षित रहता है

5. इनमें प्रकार्यक स्वायत्तता ( functional autonomy ) का अभाव होता है ।

6. विषाणु उपयुक्त अन्तःकोशिकी ( intracellular ) वातावरण में बहुगुणन ( multiply ) कहते हैं तथा पुनरावृत्ति ( replication ) के लिये अन्तःकोशिकी घटकों जैसे राइबोसोम ( ribosomes ) , ऊर्जा इत्यादि पर निर्भर करते हैं , अतः ये अविकल्पी अन्तःकोशिकीय परजीवी ( obligate intracellular parasites ) कहलाते हैं ।

7. विषाणुओं का संवर्धन कृत्रिम माध्यम ( artificial medium ) पर नहीं किया जा सकता है । कोई भी मृतोपजीवी विषाणु ( saprophytic virus ) ज्ञात नहीं है ।

8. विषाणुओं में लिपमेन तंत्र ( Liprman system ) जो कि कोशिकाओं में उच्च ऊर्जा उत्पादन के लिये आवश्यक होता है , के संश्लेषण के लिये आनुवांशिक पदार्थ अनुपस्थित होते हैं ।

9.विषाणुओं में न तो वृद्धि ( growth ) होती है न ही वे द्वि – विभाजन ( binary fission ) कहते हैं लेकिन वे पुनरावृत्ति ( replication ) करते हैं ।

10. विषाणुओं में स्वयं के प्रोटीन संश्लेषण के कल – संसाधन ( protein synthetic machinery ) नई होते हैं वरन् वे परपोषी ( host ) के कल – संसाधनों का उपयोग स्वयं के लिये करते हैं ।

11. विषाणु अत्यन्त संक्रामक ( infective ) हाते हैं । कुछ विषाणु अत्यन्त कम संख्या में भी रोग फैलाने में सक्षम होते हैं ।

12. विषाणु परपोषी विशिष्टता ( host specificity ) वाले होते हैं अर्थात एक विषाणु पादपों या जन्तुओं की एक विशेष प्रजाति पर ही संक्रमण करते हैं तथा लाक्षणिक लक्षण उत्पन्न करते हैं ।

13. ये ताप ( temperature ) एवं आर्द्रता ( humidity ) के प्रति अनुक्रिया ( response ) प्रकट करते हैं ।

14. साधारणतया , विषाणु अम्लों , क्षारों तथा लवणों आदि के प्रति प्रतिरोधी होते हैं लेकिन इनको रसायन तथा ताप उपचार ( chemo एवं thermotherapy ) द्वारा निष्क्रिय ( inactive ) किया जा सकता है ।

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