राजस्थान में जिले की न्यायव्यवस्था

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राजस्थान में जिले की न्यायव्यवस्था– देश में शांति एवं कानून व्यवस्था बनाये रखने के लिए कार्यपालिका के साथ स्वतंत्र न्यायपालिका की व्यवस्था की गई है । न्यायपालिका समाज में उत्पन्न आपसी विवादों के समाधान के लिए उचित एवं अनुचित का फैसला करती है । राज्य उच्च न्यायलय एवं समस्त अधीनस्थ न्यायालय मिलकर राज्य की न्याय व्यवस्था का निर्माण करते हैं ।

संविधान के भाग ( VI ) के अनुच्छेद 233 से 237 तक में राज्य के अधीनस्थ न्यायालयों से संबंधित प्रावधान दिये गये है । राज्य के जिला न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति राज्यपाल द्वारा उस राज्य के उच्च न्यायालय के परामर्श के उपरान्त की जाती है । जिला न्यायाधीश से अवर न्यायाधीशों की नियुक्ति उच्च न्यायालय एवं राज्य लोकसेवा आयोग से परामर्श के पश्चात् की जाती है । जिला स्तर पर सर्वोच्च न्यायिक अधिकारी जिला न्यायाधीश होता है । जिला स्तर पर न्याय सुलभ कराने हेतु प्रत्येक जिले में न्यायालय स्थापित किये गये हैं ।

राजस्थान में प्रत्येक जिले में न्यायिक व्यवस्था में तीन प्रकार के न्यायालय स्थापित किये गये हैं-

1. दीवानी न्यायालय

2. फौजदारी न्यायालय

3. राजस्व न्यायालय ।

प्रत्येक जिले में आम नागरिकों के आपसी विवादों के निपटारे के लिए स्थापित न्यायालयों का संक्षिप्त विवरण निम्न प्रकार है

दीवानी न्यायालय

सम्पति संबंधी विवादों को दीवानी विवाद कहते हैं । दीवानी झगड़ों का निपटारा करने वाले न्यायालयों को दीवानी न्यायालय कहते हैं । जिले के दीवानी न्यायालय निम्न हैं

1. कनिष्ठ सिविल न्यायालय या मुंसिफ मजिस्ट्रेट-

25,000 रुपये तक के मूल्यों के दीवानी विवाद का निपटारा करने हेतु कनिष्ठ सिविल न्यायालय में वाद प्रस्तुत किया जाता है । इस न्यायालय के निर्णय के विरुद्ध वरिष्ठ सिविल न्यायालय में अपील की जा सकती है ।

2. वरिष्ठ सिविल न्यायालय-

वरिष्ठ सिविल न्यायालय में कनिष्ठ सिविल न्यायालय के निर्णय के विरुद्ध अपील की जा सकती है । इसके अलावा 25001 / – से 50000 / – तक के मूल्यों के विवादों को सीधे वरिष्ठ सिविल न्यायालय में दायर किया जाता है । वरिष्ठ सिविल न्यायालय के निर्णय के विरुद्ध जिला सिविल न्यायालय में अपील की जा सकती है ।

3. जिला सिविल न्यायालय –

जिला स्तर पर दीवानी मामलों के निपटारे हेतु यह सर्वोच्च न्यायालय है । इस जिला न्यायालय में 50,001 / – या अधिक मूल्यों से संबंधित दीवानी विवादों को सीधे प्रस्तुत किया जा सकता है । इसके अलावा वरिष्ठ सिविल न्यायालय के निर्णय के विरुद्ध अपील भी जिला सिविल न्यायालय में की जा सकती है ।

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सिविल ( दीवानी ) न्यायालयों में मुख्यत : उधार दिये धन की वसूली , अचल सम्पत्ति से संबंधित विवाद , किराये पर दिये मकान खाली कराने , इकरारनामा की पालना कराने , गोद लेने से संबंधित आदि विवादों का निपटारा होता है । जिला सिविल न्यायालय के निर्णयों से असंतुष्ट होने पर पीड़ित व्यक्ति राज्य के उच्च न्यायालय में अपील कर सकता है । उच्च न्यायालय के निर्णयों के विरुद्ध सर्वोच्च न्यायालय में अपील की जा सकती है ।

फौजदारी न्यायालय

चोरी , शांतिभंग , मारपीट एवं लड़ाई – झगड़े आदि से संबंधित विवादों को फौजदारी विवाद कहते हैं । फौजदारी विवादों का निपटारा फौजदारी न्यायालयों में किया जाता है । फौजदारी मामलों की सुनवाई हेतु निम्र न्यायालय प्रत्येक जिले में कार्यरत है

1. न्यायिक मजिस्ट्रेट ( प्रथम वर्ग ) –

सामान्य मारपीट , चोरी – डकैती आदि से संबंधित विवादों को सुलझाने हेतु न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम वर्ग के न्यायालय में वाद प्रस्तुत किया जाता है । इनके निर्णय के विरुद्ध अपील मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट के समक्ष की जा सकती हैं ।

2. मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट-

गंभीर प्रकृति के फौजदारी विवादों के निपटारे हेतु बाद मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट के समक्ष प्रस्तुत किया जाता है । इनके निर्णय के विरुद्ध अपील जिला सत्र न्यायाधीश के न्यायालय में प्रस्तुत की जाती है ।

3. जिला सत्र न्यायाधीश या सैशन कोर्ट –

हत्या जैसे गंभीर मामलों से संबंधित फौजदारी विवाद जिला सत्र न्यायाधीश के समक्ष प्रस्तुत किये जाते हैं । इनके अलावा मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट के निर्णयों के विरुद्ध अपील जिला सत्र न्यायालय में की जा सकती है । जिला सत्र न्यायालय के निर्णयों से असंतुष्ट होने पर संबंधित पक्ष राज्य के उच्च न्यायालय में अपील कर सकता है ।

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फौजदारी न्यायालयों में कार्य प्रक्रिया :

किसी भी प्रकार के फौजदारी विवादों में सर्वप्रथम पीड़ित पक्ष को अपने क्षेत्र के पुलिस थाने में सूचना देना आवश्यक होता है । थाने में लिखाई गई इस सूचना को प्रथम सूचना प्रतिवेदन ( First Information Report – F.L.R. ) कहते हैं । इसके बाद पुलिस आरोपी की छानबीन कर सबूत इकट्ठा करती है और फिर न्यायालय में लोक अभियोजक द्वारा उस मामले का चालान प्रस्तुत किया जाता है ।

न्यायालय पुलिस द्वारा प्रस्तुत साक्ष्यों ( प्रमाणों गवाहों ) आदि के आधार पर अपराध का स्तर तय करता है । दोनों पक्षों की ओर स अपना – अपना पक्ष प्रस्तुत किया जाता है और अन्त में न्यायालय अपना निर्णय देता है जिसमें वह आरोपों को सजा या जुर्माना या दोनों देता है लेकिन यदि अपराध सिद्ध नहीं हो तो व्यक्ति को आरोप मुक्त कर छोड़ दिया जाता है । इन विवादों में भी सत्र न्यायालयों के निर्णय के विरुद्ध अपील क्रमश : उच्च न्यायालय व सर्वोच्च न्यायालय में की जा सकती है ।

राजस्व न्यायालय

कृषि भूमि से संबंधित विवादों को राजस्व न्यायालयों में दायर किया जाता है जिनमें कृषि भूमि उत्तराधिकारी समान्तरण , खातेदारी , लगान आदि के विवाद आते हैं । ऐसे मामले क्षेत्राधिकार के अनुसार उप तहसीलदार , तहसीलदार अथवा सहायक कलक्टर के यहाँ प्रस्तुत होते है ।

तहसीलदार के निर्णयों के विरुद्ध अपील प्राय : सहायक कलक्टर ( या उपखण्ड अधिकारी ) के यहाँ होती है तथा अंतिम रूप से जिले में जिला कलक्टर ही इन मामलों की अपीलों का निर्णय करता है । राजस्व के मामलों में जिला कलक्टर के निर्णय के विरुद्ध अपील क्रमशः संभागीय आयुक्त , राजस्व अपीलीय अधिकारी , राजस्व मण्डल अजमेर तथा उच्च न्यायालय में की जा सकती है ।

लोक अदालत

हमारे देश में न्यायालयों में मुकदमों की संख्या निरंतर बढ़ती जा रही है । इसके परिणामस्वरूप नागरिकों को समय पर न्याय मिलना कठिन हो गया है । इस कारण लोगों को त्वरित न्याय प्रदान करने हेतु हमारे देश में लोक अदालतों की व्यवस्था की गई है । न्यायालयों द्वारा पूर्व निर्धारित कार्यक्रमानुसार लोक अदालतों को स्थानीय स्तर पर भी लगाया जाता है जिसमें संबंधित पक्ष आपस में समझौता ( राजीनामा ) कर अपने विवादों का स्थाई समाधान कर लेते हैं , जो न्यायालयों को मान्य होता है ।

इसके अन्तर्गत न्यायाधीश उस क्षेत्र के बुजुर्ग व्यक्तियों की उपस्थिति में न्याय करता है । इनमें आपसी समझौतों द्वारा विवाद सुलझाने से वैमनस्यता व कटुता दूर होती है और धन का अपव्यय रुकता है । राजस्थान में यह बहुत लोकप्रिय है , हजारों मुकदमों का निपटारा लोक अदालतों द्वारा किया जा चुका है । इनके अतिरिक्त जिले में और भी कई प्रकार के न्यायालय है यथा- पारिवारिक न्यायालय , अनुसूचित जाति , जनजाति मामलों संबंधी न्यायालय , श्रम न्यायालय , मोटर वाहन दुर्घटना न्यायालय आदि ।

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