चाय उत्पत्ति तथा वितरण, वानस्पतिक लक्षण, जलवायु और मिट्टी, चाय की खेती, चाय के उपयोग

चाय उत्पत्ति तथा वितरण, वानस्पतिक लक्षण, जलवायु और मिट्टी, चाय की खेती, चाय के उपयोग [Tea Origin and Distribution, Botanical Characteristics, Climate and Soil, Cultivation of Tea, Uses of Tea]

चाय की दो प्रसिद्ध किस्में निम्न प्रकार की हैं-

  • चीनी चाय के साइनेन्सिस वेराइटी साइनेन्सिस
  • असामी चाय के. साइन्सिस वेराइटी असामिका

1. उत्पत्ति तथा वितरण (Origin and Distribution)

चाय की उत्पत्ति के सम्बन्ध में विशेषज्ञ एकमत नहीं है। संभवतः इसकी उत्पत्ति चीन अथवा भारत (आसाम) अथवा दोनों देशों व पड़ोसी देश बर्मा में हुई है। चाय के जंगली जनक पादप भी इन देशों में पाये जाते हैं। ऐसा माना जाता है कि आसाम के पहाड़ी क्षेत्रों में उगने वाले थीया आसामिका (Thea assamica) नामक जंगली पादप में सभी कृषित जातियाँ (Cultivated species) विकसित हुई हैं।

चाय कृषित करने के प्रमाण प्राचीन काल से उपलब्ध है। चीन में इसे 2700 B.C. से कृषित किया जा रहा है। चीन में चायपान 5वीं शताब्दी में प्रारम्भ हुआ। यहाँ से यह रिवाज 8वीं शताब्दी में जापान तक पहुंचा तथा एशिया में चाय 17वीं शताब्दी में तुर्कों द्वारा चीन से पहुँचाई गयी। भारत में चाय का प्रसार ईस्टइण्डिया कम्पनी (1657) द्वारा हुआ। अमेरिका में चाय सबसे अन्त में प्रचलित हुई।

अनेक एशियन देशों में चाय की बड़े पैमाने पर कृषि की जाती है। भारत, चीन, श्रीलंका, जापान, रूस, इण्डोनेशिया, केन्या, बर्मा, बंगलादेश तथा ईरान आदि प्रमुख चाय उत्पादक देश है। हाल ही के वर्षों में पूर्वी अफ्रीका, युगाण्डा, मोजाम्बिक तथा दक्षिण अमेरिका (अर्जेन्टिना) में चाय का उत्पादन होने लगा है। भारत तथा श्रीलंका चाय के प्रमुख निर्यातक देश है।

भारत में आसाम तथा पश्चिम बंगाल चाय के प्रमुख उत्पादक राज्य हैं। जहाँ कुल चाय के उत्पादन का 73% हिस्सा पैदा होता है। दक्षिण भारत के नीलगिरी व अन्नामलाई जिलों में 20% तथा रांची, देहरादून, कांगड़ा व कुमायु जिलों में शेष 7% का उत्पादन होता है।

वानस्पतिक लक्षण (Botanical Charcteristics)

केमेलिया का पादप सदाबहार, काष्ठीय क्षुप (shrub) होता है। प्राकृतिक अवस्था में पादप की ऊंचाई 9.1-15.2 m होती है परन्तु कृषित अवस्था में इसे 1-2 मीटर से अधिक नहीं बढ़ने दिया जाता है जिससे पत्तियाँ तोड़ने में आसानी रहती है।

पत्तियाँ सरल, एकान्तर, भालाकार तथा इनके किनारे दंतूर होते हैं। प्रौढ़ पर्णे चर्मिल, चमकदार, हरी तथा 5-30 cm लम्बी होती हैं। पत्तियों में तेल मंथिया मिलती हैं। पुष्प समूह में अथवा एकल कक्षस्थ, बड़े सफेद या गुलाबी रंग के होते हैं जिनका केन्द्र पीले रंग का होता है। फल-काष्ठीय, त्रिकोष्ठीय केप्सूल होता है। प्रत्येक कोष्ठ में 1.25 cm व्यास का एक भूरा बीज पाया जाता है।

जलवायु और मिट्टी climate and soil

चाय के पादप गर्म जलवायु वाले पर्वतीय प्रदेशो में आसानी से उगते हैं। चाय की वृद्धि के लिए वार्षिक वर्षा 150 cm तथा औसत 21° 23°C तापमान उपयुक्त होता है। चाय के पादप भारी, अम्लीय मृदा (pH 4.0-6.0) जिसमें जल निकासी की सुविधा हो तो तथा ह्यूमस की बाहुलता हो, भली भांति वृद्धि करते हैं।

चाय की खेती (Cultivation of Ten)

चाय की खेती निम्न चरणों में पूर्ण होती हैं-

1. मृदा की तैयारी (Prepation of Soil) – भूमि को जुताई कर पहाड़ी ढलानों को परिरेखाओं या कन्दूरों (Conturs) में परिवर्तित कर दिया जाता है। कन्टूरों के किनारों पर जलनिकासी के लिए नालियाँ बना दी जाती है।

2. पौध की तैयारी (Seeding Formation ) – चाय का प्रवर्धन बीजों से होता है। बीजों को छायादार क्यारियों में बोकर पौध बनायी जाती है। 6-9 माह पुरानी 30 सेमी लम्बी पौध, कन्टूर खेतों में स्थानान्तरण के लिए उपयुक्त होती है।

3. पौध का रोपण (Plantation of Seedling) – स्वस्थ पौध को कार्बनिक खाद युक्त मिट्टी से भरे गड्ढों में रोपा जाता है। गड्ढे से गड्ढे की दूरी 3-4.5′ रखी जाती है। पौध के आस-पास शिम्बी पादपों को उगाकर नन्हें पादपों को छाया प्रदान की जाती है।

4. कटाई-छटाँई (Pruning) – पादप 2-3 वर्ष के हो जाने पर इनकी शाखाओं के शीर्ष भागों की कटाई की जाती है। फलस्वरूप पादप की वृद्धि तीव्रता से होती है इसके साथ ही शाखाओं की संख्या में भी वृद्धि होती है जिससे पादप झाड़ीनुमा हो जाते हैं।

5. तुड़ाई (Plucking of Leaves) – 3-4 वर्ष आयु के पादपों से पत्तियों को तोड़ा जाता है। चाय की गुणवत्ता पत्तियों को आयु पर निर्भर होती है। युवा व कोमल पत्तियों से सर्वोत्तम चाय की प्राप्ति होती है। आयु बढ़ने के साथ-साथ पत्तियों में सुगंध तेल, ऐल्केलॉइड व टैनिन की मात्रा में निरंतर कमी आती है।

सामान्यतः तुड़ाई का कार्य औरतों द्वारा किया जाता है। एक औरत प्रतिदिन 18-34 किमा चाय की ताजा पत्तियों को तोड़ लेती हैं। तुड़ाई के समय शाखा के शीर्ष पर स्थित कोमल पर्णकलिका तथा इसके नीचे स्थित 2-3 पत्तियाँ को तोड़ लिया जाता है। अधिक नीचे की पुरानी पत्तियाँ चाय के लिए उपयुक्त नहीं होती हैं। 7-10 दिन के अन्तराल पर तुड़ाई की जाती है। एक पादप से लगभग 10 वर्ष तक उत्पादन प्राप्त होता है इसके बाद झाड़ी को जमीन के समीप से काट दिया जाता है। कुछ समय के बाद इससे नयी शाखाओं का विकास होता है।

तरुण पत्तियों से उत्तम गुणवत्ता वाली चाय प्राप्त होती है इनमें सगंध तेल, टेनिन व एल्केलाएड अन्य के मुकाबले अधिक पाया जाता है।

संसाधन (Processing)

व्यापारिक दृष्टि से चाय की ताजा पत्तियों का संसाधन किया जाता है। इस समय चाय की चार निम्न प्रकार की किस्में तैयार की जाती है-

1. काली या किण्वित चाय (Black tea) इनमें किण्वन व शुष्कन किया जाता है। यह सर्वोत्तम किस्म की चाय मानी गयी है।

2. हरी चाय (Green tea) : इनमें मुरझाना (withering) व किण्वन ( fermtation) की प्रक्रिया न होने से यह काली नहीं होती।

3. उलोंग चाय (Ulong tea) : यह अर्ध किण्वित (semifermented) चाय है। यह अमेरिका

में काफी प्रचलित है।

4. बिक चाय (Brick tea ) इसका संसाधन काली चाय के समान ही होता हैं परन्तु इसमें चाय की चतुर्थ व पंचम पर्ण का उपयोग होने के कारण की जाने से यह निम्न स्तर की चाय मानी जाती है।

काली चाय का संसाधन (Processing of Black Tea)

काली चाय निम्न चार चरणों में तैयार होती है-

1. मुरझाना (Withering) : इस विधि में पत्तियों को मुरझा कर मुलायम बनाया जाता है। इस प्रक्रिया से पत्तियों में मौजूद पानी का प्रतिशत 78-80% से घट कर 50% तक हो जाता है। यह कार्य वातायित शुष्कन कक्ष में 30°C ताप पर 10-12 घंटों में सम्पूर्ण किया जाता है।

2. रोलिंग (Rolling) : रोलिंग प्रक्रिया द्वारा सूखी पत्तियों का समाँगी पेस्ट बनाया जाता है। सूखी मुलायम पत्तियों को रोलिंग मशीनों से गुजारने पर इनमें उपस्थित रस व एन्जाइम्स कोशिकाओं से निकलकर एक संभागी पेस्ट निर्मित करते हैं।

3. किण्वन (Fermentation) : रोलिंग द्वारा निर्मित पत्तियों के पेस्ट का किण्वन विशिष्ट कक्षों में किया जाता है जिनमें आर्द्रता 90% तथा तापमान 24-28°C रहता है। इस कक्ष में ढक्कनदार पात्र होते हैं जिनमें चाय के पेस्ट को भर कर ढक दिया जाता है।

चाय की पत्तियों में उपस्थत पॉलीफिनॉल (केटेचिन) ऑक्सीकरण प्रक्रिया द्वारा थिआपलेविन व थिआरुबिजिन्स में बदल जाते हैं।

4. शुष्कन (Drying) : किण्वन के बाद चाय पेस्ट को ऑवन (Oven) में सुखाया जाता है। जहाँ तापमान 90-100°c तथा गर्म हवा को 20 मिनट तक प्रवाहित करवाया जाता है।

सूखने के बाद चाय के पेस्ट में से चाय की पत्तियाँ व चाय के चूरे को पृथक-पृथक करके पेक करके बाजार में भेजा जाता है। पत्ती वाली चाय अच्छी व चूरे वाली चाय निम्न कोटि की मानी जाती है ।

रासायनिक संगठन (Chemical Composition of Tea)

चाय के पादप के किसी शाखा की प्रथम दो पर्णों में लगभग 77% आर्द्रता तथा 23% ठोस भाग होता है। ठोस भाग का लगभग 50% भाग जल में अघुलनशील होता है तथा यह भाग रेशों, सैल्यूलोज, स्टार्च तथा प्रोटीनों से निर्मित होता है। शेष आधा ठोस भाग घुलनशील होता है। जिसमें 20 प्रकार के अमीनो अम्लों, 30 पॉलिफनोलिक यौगिक, 12 प्रकार की शर्कराएँ तथा 6 प्रकार के कार्बनिक अम्ल पाये जाते हैं। आसाम चाय में कैफीन (caffeine) तथा पॉलिफीनोलिक यौगिकों की मात्रा चीनी चाय की अपेक्षा अधिक होती हैं।

चाय का विशिष्ट स्वाद, गंध तथा रंग इसमें उपस्थित पदार्थ थी ओल (thcol volatile oil) एल्केलॉइड्स-थीन (thcine) तथा थी ओफाइलीन (theophyline) व पॉलिफिनोल्स अर्थात टैनिन के कारण होता है। चाय की सुगन्ध थीओल के कारण, उत्तेजक व तरोताजा करने का गुण ऐल्केलोइड थीन के कारण जबकि कड़वा व कषाय (astringent) स्वाद टैनिन के कारण होता है।

चाय के उपयोग (Uses of Tea)

1. चाय तरोताजा होने के लिये उपयोग किया जाने वाला सर्वाधिक प्रचलित पेय पदार्थ है। इसे दूध व शक्कर के साथ अथवा बिना दूध के ब्लेक टी के नाम से स्नेक्स अथवा बिस्कुट के साथ उपयोग में लाया जाता है।

2. बालों के पोषक पदार्थ ( nourishing substance) के रूप में मेहंदी, आँवला, रीठा के साथ चाय का पानी व कॉफी मिला कर लगाने से बाल शानदार व चमकीले होते हैं।

3. नारियल के तेल (coconut oil) में चाय की पत्ती का अर्क बालों के लिये उपयोगी पाया गया है। अतः अनेक कम्पनियाँ आजकल मेहन्दी के साथ टी लीफ मिला कर उत्पाद निर्मित कर रही है।

4. चाय की बेकार पत्तियों को सुखा कर गमलों में मिलाने से पौधों की वृद्धि अच्छी व मृदा में पानी सोखन क्षमता में बढ़ोतरी हो जाती है।

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