इंदिरा गांधी नहर का परिचय Introduction of Indira Gandhi Canal
इंदिरा गांधी नहर परियोजना Indira Gandhi Canal Project- राजस्थान के मरुप्रदेश को हिमालय के जल से हरा भरा करने की इस महत्वाकांक्षी परियोजना की रूपरेखा प्रथम बार बीकानेर रियासत के मुख्य सिंचाई अभियंता श्री कँवर सेन द्वारा अपने अध्ययन बीकानेर राज्य में पानी की आवश्यकता के रूप में 1948 में प्रस्तुत की गई थी । बीकानेर के महाराजा गंगासिंह जी गंगनहर की सफलता से गंगानगर क्षेत्र में हुई खुशहाली से प्रेरित होकर सतलज – व्यास नदियों के पानी में से और अधिक हिस्सा प्राप्त करने के लिए पहले से ही प्रयासरत थे । उन्हीं के प्रयासों को अमली जामा पहनाने हेतु इस परियोजना की रूपरेखा 1948 में केन्द्र सरकार को प्रेषित की गई ।
इंदिरा गांधी नहर का उद्गम स्थल | व्यास तथा सतलज नदियों के संगम पर स्थित हरिकै बैराज |
जल उपलब्धता / आवंटन | रावी व्यास नदियों के अधिशेष जल में राजस्थान के हिस्से ( 8.6 एम.ए.एफ. ) में से 7.59 एम.ए.एफ. पानी इगाँनप हेतु आवंटित है । |
इन्दिरा गाँधी फीडर नहर लम्बाई | 204 किमी. (170 किमी. पंजाब व हरियाणा में तथा 34 किमी. राजस्थान में) |
हरिके हैड पर फीडर नहर की क्षमता | 18500 क्यूसेक (523.86 क्यूमेक) |
इंदिरा गाँधी मुख्य नहर का उद्गम | इन्दिरा गाँधी फीडर के अन्तिम छोर से |
इन्दिरा गाँधी मुख्य नहर की लम्बाई | 445 किमी. |
इन्दिरा गाँधी मुख्य नहर के शीर्ष पर नहर की क्षमता | 17266 क्यूसेक (488.92 क्यूमेक) |
राजस्थान में नहर का आरम्भ | हनुमानगढ़ जिले से |
परियोजना का प्रथम चरण | हरिके हैड से फीडर नहर एवं मुख्य नहर के 189 किमी पूगल (बीकानेर) तक तथा इससे निकलने वाली वितरण प्रणाली (मुख्य नहर से निकलने वाली साहबा लिफ्ट प्रणाली के अतिरिक्त) |
परियोजना का द्वितीय चरण | इन्दिरा गाँधी मुख्य नहर के 189 किमी पूगल (बीकानेर) से अन्तिम छोर मोहनगढ़ (जैसलमेर) तक तथा इससे निकलने वाली वितरण प्रणाली साहबा लिफ्ट प्रणाली सहित |
इसका मुख्य उद्देश्य रावी व व्यास नदियों के जल से राजस्थान को आवण्टित 8.6 MAF पानी में से 7.59 MAF पानी का उपयोग कर पश्चिमी राजस्थान में सिंचाई व पेयजल सुविधाओं का विस्तार, मरुस्थलीकरण को रोकना, पर्यावरण सुधार, वृक्षारोपण, रोजगार के अवसरों में वृद्धि करना, पशु संपदा का संरक्षण व विकास तथा कृषि उत्पादन को बढ़ाना है।
राजस्थान में पानी की आवश्यकता को देखते हुए केन्द्र सरकार द्वारा अंततः यह परियोजना मंजूर कर ली गई और 31 मार्च, 1958 को तत्कालीन गृह मंत्री श्री गोविन्द बल्लभ पंत द्वारा राजस्थान की जीवन रेखा (Life line) कही जाने वाली इस महत्त्वपूर्ण परियोजना की आधारशिला रखी गई। इस परियोजना के निर्माण हेतु 1958 में IGNP बोर्ड गठित किया गया।
इस नहर का उद्गम पंजाब में फिरोजपुर के निकट सतलज – व्यास नदियों के संगम पर बने हरिके बैराज से है। इसकी कुल लंबाई 649 किमी है, इसकी वितरण प्रणाली की कुल लंबाई 9413 किमी है। इंदिरा गाँधी फीडर की गहराई 21 फीट व राजस्थान सीमा पर फीडर के तले की चौड़ाई 134 फीट है।
इंदिरा गांधी नहर की प्रमुख शाखाओं के नाम Names of major branches of Indira Gandhi Canal
इंदिरा गाँधी नहर से निम्न 9 मुख्य शाखाएँ निकाली गई हैं
इंदिरा गांधी नहर की प्रमुख शाखाओं के नाम (इंदिरा गांधी नहर की शाखाएं) | |
रावतसर शाखा | यह हनुमानगढ़ जिले में निकाली गई नहर की पहली शाखा है। यह नहर के बाँयी तरफ है |
सूरतगढ़ शाखा | गंगानगर जिले में |
अनूपगढ़ | गंगानगर जिले में |
पूगल | बीकानेर |
दातोर | बीकानेर |
बिरसलपुर | बीकानेर |
चारणवाला | जैसलमेर, बीकानेर |
शहीद बीरबल | जैसलमेर |
सागरमल गोपा | जैसलमेर |
इसके अतिरिक्त नहर के अंतिम छोर मोहनगढ़ (जैसलमेर) से दो बड़ी उपशाखाएँ- लीलवा व दीघा एवं सागरमल गोपा शाखा के अन्तिम छोर से गडरा रोड़ (बरकतुल्ला खां उपशाखा वर्तमान नाम बाबा रामदेव शाखा) उप शाखा भी निकाली गई है। सागरमल गोपा शाखा के अंतिम छोर से आगे बाबा रामदेव जी ( गडरा रोड शाखा ) 34 शाखा की बुर्जी 315 तक निर्माण कार्य के लिए पानी उपलब्ध है । अब गडरा रोड उप शाखा व इसकी वितरिकाओं पर कार्य किया जा रहा है ।
परियोजना की विभिन्न शाखाओं- अनूपगढ़ , पूगल , सूरतगढ़ , चारणवाला व बिरसलपुर पर लघुपन विद्युत गृह स्थापित किए गए है । लिफ्ट नहरें : – नहर के बाँयी ओर का इलाका ऊँचा होने व पानी के स्वतः प्रवाहित न होने के कारण नहर प्रणाली पर निम्न 7 लिफ्ट नहरें बनाई गई हैं
इंदिरा गांधी नहर से निकाली गई लिफ्ट नहरे (इंदिरा गांधी लिफ्ट नहर परियोजना) Lift canals taken out from Indira Gandhi Canal
इंदिरा गांधी नहर परियोजना में लिफ्ट नहरे | |
लिफ्ट नहर | लाभान्वित जिले |
चौधरी कुंभाराम लिफ्ट नहर (नोहर – साहबा लिफ्ट नहर) | हनुमानगढ़ , चुरू , बीकानेर , झुंझुनूं |
कँवरसेन लिफ्ट नहर (बीकानेर – लूणकरणसर लिफ्ट नहर) | बीकानेर एवं गंगानगर। यह योजना की सातों लिफ्ट में सबसे लम्बी (151.64 किमी) लिफ्ट नहर है । |
| बीकानेर , नागौर। इस से निकलने वाली कानासर वितरिका से नागौर जिले व बीकानेर के कोलायत व नोखा के कुछ गाँवों को पानी दिया जाएगा। |
वीर तेजाजी लिफ्ट नहर (भैंरुदान छालानी (बांगड़सर) लिफ्ट नहर) | बीकानेर |
डॉ . करणीसिंह लिफ्ट नहर (कोलायत लिफ्ट नहर) | जोधपुर व बीकानेर |
| जोधपुर, बीकानेर एवं जैसलमेर |
जय नारायण व्यास लिफ्ट नहर (पोकरण) | जैसलमेर, जोधपुर |
इंदिरा गांधी नहर परियोजना का तिथि क्रम Date Sequence of Indira Gandhi Canal Project
- 29.10.1948 – बीकानेर रियासत के मुख्य सिंचाई अभियंता श्री आर . बी . कँवर सेन द्वारा योजना की प्रारम्भिक रिपोर्ट बनाकर केन्द्र सरकार को भेजी गई
- 1953 – केन्द्रीय सिंचाई एवं नौवहन ( Central Irrigation and Navigation ) आयोग द्वारा इस नहर परियोजना की प्रथम परियोजना रिपोर्ट तैयार की गई जो विश्व बैंक की टीम द्वारा स्वीकृत कर ली गई ।
- 1957 – राजस्थान सरकार द्वारा परियोजना की विस्तृत रिपोर्ट बनाकर योजना आयोग को भेजी गई । योजना आयोग द्वारा योजना को मंजूरी ।
- 31. 3.1958 – नहर के निर्माण कार्य का शुभारंभ केन्द्रीय गृह मंत्री श्री गोविन्द बल्लभ पंत द्वारा किया गया ।
- 19.12.1958 – राजस्थान नहर बोर्ड का गठन । श्री कँवरसेन को प्रथम अध्यक्ष बनाया गया ।
- 19.9.1960 – भारत व पाकिस्तान के मध्य कराची में सिंधु जल संधि पर हस्ताक्षर हुए ।
- 11.30.1961 – राजस्थान नहर में उपराष्ट्रपति डॉ . सर्वपल्ली राधाकृष्णन द्वारा प्रथम बार नौरंगदेसर वितरिका से पानी छोड़ा गया।
- 1963 – लिफ्ट स्कीम को योजना में शामिल किया गया।
- जून , 1964 – राजस्थान फीडर ( हरिके बैराज से मसीतावाली हनुमानगढ़ तक 204 किमी . ) का निर्माण पूर्ण हुआ
- 5.7.1968 – योजना की प्रथम लिफ्ट नहर लूणकरणसर लिफ्ट नहर ( अब कँवरसेन लिफ्ट नहर ) पर निर्माण कार्य प्रारंभ ।
- 1974 – इस नहर परियोजना के क्षेत्र के विकास हेतु कमाण्ड एरिया विकास प्राधिकरण का गठन ।
- जून , 1975 – मुख्य नहर ( मसीतावाली से छतरगढ़ – पूगल , बीकानेर तक ) का 189 किमी का निर्माण पूरा ।
- दिस . 1976 – लूणकरणसर लिफ्ट नहर पूर्ण ।
- 31.10.83 – लूणकरणसर लिफ्ट नहर से बीकानेर शहर को पेयजल की आपूर्ति शुरू ।
- नव , 1984 – राजस्थान नहर का नाम परिवर्तित कर इंदिरा गाँधी नहर परियोजना ( IGNP ) किया गया ।
- दिस . 1986 – मुख्य नहर ( पूगल से मोहनगढ़ जैसलमेर तक 256 किमी . ) पूर्ण ।
- 1.01.1987 – द्वितीय चरण की मुख्य नहर में पानी छोड़ा गया । मोहनगढ़ ( जैसलमेर ) अंतिम छोर तक पानी पहुंचा
- 1989 – लूनकरणसर लिफ्ट नहर का नाम कँवरसेन लिफ्ट नहर किया गया ।
- 1992 – इंदिरा गाँधी नहर परियोजना प्रथम चरण का कार्य पूर्ण ।
- नव 2000 – गजनेर , बाँगडसर एवं कोलायत लिफ्ट नहरों के 5 पम्पिंग स्टेशन का उद्घाटन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत द्वारा किया गया ।
इंदिरा गांधी नहर परियोजना के चरण Phases of Indira Gandhi Canal Project
( 1 ) प्रथम चरण
प्रथम चरण में 204 किमी . लम्बी इंदिरा गाँधी फीडर ( हरिके बैराज से मसीतावाली हैड तक ) व मसीतावाली हैड से पूगल हैड तक 189 किमी . लम्बी मुख्य नहर तथा उससे सम्बन्धित 5.46 लाख हैक्टेयर सिंचित क्षेत्र के लिए 3454 किमी. वितरण प्रणाली ( साहबा लिफ्ट प्रणाली को छोड़कर ) के कार्य सम्मिलित हैं ।
प्रथम चरण का निर्माण कार्य मार्च, 1958 में प्रारम्भ हो गया था व 11 अक्टूबर 1961 को उपराष्ट्रपति श्री डॉ . सर्वपल्ली राधाकृष्णन द्वारा इसकी प्रथम शाखा ( रावतसर शाखा ) की नौरंगदेसर वितरिका से सर्वप्रथम जल प्रवाहित किया गया । इस चरण का समस्त कार्य 1992 में ही लगभग पूर्ण हो चुका था। मुख्य नहर का निर्माण कार्य वर्ष 1986 में ही पूर्ण किया जा चुका है।
( 2 ) द्वितीय चरण
IGNP के द्वितीय चरण का कार्य वर्तमान में चल रहा है । द्वितीय चरण का कार्य वर्ष 1972-73 में प्रारम्भ किया गया था । इस चरण में मुख्य नहर की लम्बाई 256 किमी ( पूगल हैड से मोहनगढ़ जैसलमेर तक ) है । मुख्य नहर का निर्माण कार्य दिसम्बर , 1986 में ही पूर्ण कर लिया गया था तथा मुख्य नहर के अंतिम छोर मोहनगढ़ ( जैसलमेर ) तक 1 जनवरी , 1987 को पानी प्रवाहित कर दिया गया था । द्वितीय चरण के अन्तर्गत वितरण प्रणाली की कुल प्रस्तावित लम्बाई 5959 किमी . एवं कुल प्रस्तावित सिंचित क्षेत्र 10.71 लाख हैक्टेयर है ।
इंदिरा गांधी नहर परियोजना की पेयजल परियोजनाएं Drinking water projects of Indira Gandhi Canal Project
इंदिरा गाँधी नहर परियोजना की पेयजल परियोजनाएँ : इंदिरा गाँधी नहर का निर्माण राजस्थान के उत्तरी व पश्चिमी मरु प्रदेश में सिंचाई सुविधाएँ एवं पेयजल उपलब्ध कराने हेतु किया गया है । पेयजल उपलब्ध कराने हेतु ( IGNP ) की निम्न मुख्य पेयजल परियोजनाएँ है
( 1 ) कँवरसेन लिफ्ट परियोजना Kanvarsen Lift Project
बीकानेर शहर एवं रास्ते के 228 गाँवों ( बीकानेर एवं गंगानगर जिले के ) को पेयजल तथा बीकानेर जिले की लूणकरणसर तहसील में सिंचाई सुविधा उपलब्ध कराने हेतु इंदिरा गाँधी नहर परियोजना के प्रथम चरण में 5 जुलाई , 1968 को इस लिफ्ट नहर का प्रारम्भ तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री मोहन लाल सुखाड़िया द्वारा किया गया । यह लिफ्ट नहर मुख्य नहर के बिर्धवाल हैड से निकाली गई है तथा 151.64 किमी लम्बी है । योजना की सातों लिफ्ट नहरों में इसका निर्माण सर्वप्रथम किया गया था ।
इसका प्रारंभिक नाम बीकानेर – लूणकरणसर लिफ्ट नहर योजना था जिसे 1989 में बदल कर कँवरसेन लिफ्ट नहर योजना कर दिया गया । यह नहर 1976 में पूर्ण हुई और इसकी कुल 179.72 किमी . लम्बी वितरण प्रणाली मार्च , 1989 में बनकर पूर्ण हुई । यह बीकानेर शहर की जीवन रेखा है । इसमें बीकानेर शहर की जल की माँग की पूर्ति हेतु बीछवाल में जल भण्डारण हेतु विशाल जलाशय का निर्माण किया गया है ।
( 2 ) राजीव गाँधी लिफ्ट नहर योजना ( जोधपुर लिफ्ट नहर योजना ) Rajiv Gandhi Lift Canal Scheme
जोधपुर शहर एवं रास्ते के 158 गाँवों को पीने हेतु इंदिरा गाँधी नहर का पानी उपलब्ध कराने हेतु यह योजना प्रारम्भ की गई । इस योजना में जल मुख्यनहर के RD 1109 से लिया गया है । इसमें 176 किमी लम्बी नहर , 30 किमी लम्बी पाइप लाइन एवं 8 पम्पिंग स्टेशन हैं जिनसे पानी को कुल 219 मीटर तक ऊँचा उठाया गया है । इसका नाम परिवर्तित कर राजीव गाँधी जलोत्थान नहर परियोजना कर दिया गया है । यह इंदिरा गाँधी नहर परियोजना की सबसे लम्बी लिफ्ट नहर है ।
( 3 ) आपणी योजना ( गंधेली – साहबा परियोजना ) Apni Yojana (Gandheli-Sahba Project)
हनुमानगढ़ , चुरू एवं झुंझुनूं जिलो के कस्बों एवं गाँवों को पेयजल उपलब्ध कराने हेतु इंदिरा गाँधी नहर की नोहर – साहबा लिफ्ट स्कीम से यह योजना आपणी योजना के नाम से जर्मनी की KFW कम्पनी के वित्तीय सहयोग से प्रारंभ की गई है । इसके प्रथम चरण में चुरू एवं हनुमानगढ़ जिलों के 370 गाँव एवं तीन कस्बों को जल उपलब्ध कराया गया है । द्वितीय चरण में चुरू व झुंझुनूं जिले के गाँवों एवं कस्बों को पेयजल उपलब्ध कराया जा रहा है ।
इंदिरा गांधी नहर परियोजना के लाभ Benefits of Indira Gandhi Canal Project
इन्दिरा गाँधी नहर परियोजना के निम्न लाभ हैं
( 1 ) मरुक्षेत्र में सिंचाई सुविधाओं में वृद्धि ।
( 2 ) पेयजल तथा अन्य कार्यों हेतु जल की उपलब्धि
( 3 ) अकाल व सूखे के दुष्प्रभावों में कमी ।
( 4 ) मरु प्रसार पर रोक में सहायता ।
( 5 ) कृषि उत्पादन में आशातीत वृद्धि ।
( 6 ) भूमिगत जल स्तर में वृद्धि ।
( 7 ) रोजगार के अवसरों में वृद्धि ।
( 8 ) सामाजिक व आर्थिक उन्नति ।
( 9 ) पर्यटन व औद्योगिक विकास ।
( 10 ) मछली पालन में सहायता ।
( 11 ) विद्युत संसाधनों की उपलब्धि ।
( 12 ) पशुओं के लिए चारे की उपलब्धता
इंदिरा गाँधी नहर की समस्याएँ Indira Gandhi Canal problem
अतिशयोक्ति नहीं कि मरूधरा की भाग्य रेखा बनी इंदिरा गाँधी नहर परियोजना ने मरूभूमि की प्यास बुझाते हुए वर्षों से सूखी पड़ी धरती पर हरियाली की चादर डाली है किन्तु अपने समय से पिछड़ी इस परियोजना ने कुछ समस्याओं को जन्म दिया है , जो निम्न हैं
( 1 ) सेम ( जल भराव ) की समस्या ( Water Logging ) : नहरी जल के रिसाव व अत्यधिक सिंचाई के कारण भूजल स्तर के ऊपर आ जाने से भूमि का दलदली हो जाना ही सेम की समस्या हैं । इससे भूमि की उर्वरा शक्ति नष्ट हो जाती है । सेम की समस्या ( वाटर लोगिंग ) के प्रमुख कारण निम्न हैं
- अधिक वाटर अलाउन्स एवं समुचित सिंचाई प्रबन्धन के अभाव के कारण सिंचाई में प्रयोग किए जाने वाले पानी में से काफी मात्रा रिसकर भूजल में वृद्धि करती है ।
- कुछ क्षेत्र ऐसे हैं जो कि आसपास के क्षेत्रों से तथा नहरों से काफी नीचे हैं । ऐसे क्षेत्रों में नेचुरल ड्रेनेज के अभाव में भू – जल स्तर में वृद्धि होती है ।
- कृषकों द्वारा अधिक पानी उपयोग में लाया जाता है ।
- अधिकतर भूजल लवणीय होने के कारण उसके दोहन का अभाव ।
- कम गहराई पर कठोर स्तर का पाया जाना
- फील्ड ड्रेनेज एवं लैण्ड शैपिंग का अभाव ।
- घग्घर नदी से डाइवर्जन चैनल द्वारा सूरतगढ़ एवं बड़ोपल के पास स्थित डीप्रेशनों को भरने के कारण होने वाला जल रिसाव।
( 2 ) पानी के अत्यधिक प्रयोग की वजह से भूमि में लवणीयता व क्षारीयता बढ़ी है , जिससे भूमि बंजर होती जा रही है ।
( 3 ) वातावरणीय कारकों में आए तीव्र बदलाव से शुष्क क्षेत्रीय वनस्पति एवं जैव विविधता को खतरा उत्पन्न हुआ है । जीव जंतुओं की दुर्लभ प्रजातियाँ लुप्त होने के कगार पर है । उपयोगी सेवणघास के मैदान खेतों में तब्दील होने से जीव जंतुओं का निष्क्रमण बढ़ा है ।
( 4 ) पारिस्थितिकीय परिवर्तनों के कारण कई महामारियों के लिए रास्ता साफ हुआ है । दलदली क्षेत्र मच्छरों के संवर्द्धन केन्द्र बने है तथा मलेरिया जैसी घातक बीमारियाँ पुनः अपने पैर पसार रही है । भूमि में वर्षभर नमी बने रहने के कारण टिड्डियों का प्रकोप बढ़ा है।