अरावली श्रेणी और पहाड़ी प्रदेश, राजस्थान में अरावली का विस्तार, अरावली पर्वतमाला ( Aravali Range & Hilly Region )
अरावली पर्वतमाला का विस्तार
अरावली श्रेणी राजस्थान की मुख्य एवं विशिष्ट पर्वत श्रेणी है । यह पर्वत श्रेणी एक निरन्तर श्रेणी नहीं है बल्कि बीच – बीच में टूटी हुई है । यह दक्षिण – पश्चिम में सिरोही से आरंभ होकर उत्तर – पूर्व में खेतड़ी तक तो श्रृंखलाबद्व है उसके पश्चात यह छोटी छोटी श्रृंखलाओं में दिल्ली तक विस्तृत है । राज्य में यह श्रृंखला कर्णवत रूप में – उत्तर पूर्व से दक्षिण पश्चिम की दिशा में देहली से गुजरात के मैदान तक लगभग 692 किलोमीटर की लंबाई में विस्तृत है । राजस्थान की सीमाओं में यह श्रृंखला खेतड़ी से उत्तर – पूर्व की ओर खेड ब्रह्मा तक लगभग 550 किलोमीटर की लंबाई तक फैली है । अरावली श्रृंखला विश्व की शायद प्राचीनतम वलित पर्वतीय श्रृंखला है।
देहली से कटक दक्षिण – पश्चिम की तरफ फैले हैं लेकिन जयपुर में खेतड़ी के समीप वे अधिक सुस्पष्ट श्रृंखला के रूप में दृष्टिगोचर होते हैं ।
दक्षिण – पश्चिम की तरफ विस्तृत श्रृंखला काफी महत्वपूर्ण है जिसमें मुख्य चोटियां जैसे बाबाई (780मी.) , खो (920मी.) , रघुनाथगढ़ (1055 मी) और तारागढ़ (873 मी.) आदि स्थित हैं । यह श्रृंखला सांभर झील के पश्चिम से गुजरती है तथा विस्तृत क्षेत्र पर फैली है । अजमेर के बाद कई समानान्तर श्रृंखलाएं हैं । मेरवाड़ के परे अरावली पहाड़ियों की चौड़ाई लगभग 50 किमी . तथा उदयपुर और डूंगरपुर की तरफ दक्षिण – पूर्व में इनकी चौड़ाई बढ़ने लगती है । यहाँ इनकी ऊँचाई बहुत ही कम है और मुख्य श्रृंखला दक्षिण – पश्चिम की तरफ सिरोही जिले के दक्षिण – पूर्वी भू – भाग तक विस्तृत है । गुरू शिखर (1722मी.) राजस्थान की सबसे ऊंची चोटी , इस पहाड़ी प्रदेश में स्थित है ।
अरावली श्रेणी और पहाड़ी प्रदेश को चार लघु भौतिक भागों में बाँटा जा सकता है :
( अ ) उत्तरी – पूर्वी पहाड़ी प्रदेश
यह प्रदेश जयपुर जिले के उत्तरी – पश्चिमी भागों में तथा अलवर जिले के अधिकांश भागों में स्थित चट्टानी और प्रपाती पहाड़ियों के कई समानातिक कटकों को शामिल करता है । इस क्षेत्र में अरावली श्रृंखला फाइलाईट और क्वार्ट्ज से निर्मित है जो कि पर्वतों के निर्माण में सहायक होती है । देहली क्रम की अन्य चट्टानें चूने के पत्थर की है जो सामान्यतयाः केल्क – नीस में बदल जाती है , बहुत सख्त होने के कारण वे क्वार्टज् कटकों के बीच ऊँची घाटियाँ अथवा ऊँचे मैदानों का निर्माण करती है ।
इसकी शाखाएं पश्चिम में सीकर श्री माधोपुर , नीम का थाना और खेतड़ी तहसीलों में पाई जाती है । उत्तर और उत्तर – पूर्व की ओर आगे पहाड़ियां टूटी हुई हैं और पहाड़ियों के अन्तिम सिरों की तरफ उनकी ऊँचाई अधिक होती जाती है । लेकिन कुछ चोटियां इस क्षेत्र में 700 मीटर से भी अधिक ऊँची हैं
प्रमुख पर्वत शिखर | ||
शिखर का नाम | स्थान | ऊँचाई |
रघुनाथगढ़ | सीकर | 1055 मी |
खो | जयपुर | 920 मी |
भैराच | अलवर | 792 मी |
बाबाई | झुंझुनू | 780 मी |
बैराठ | जयपुर | 704 मी |
( ब ) मध्य अरावली श्रेणी :
इस प्रदेश के अंतर्गत अजमेर , जयपुर जिले तथा टोंक जिले के दक्षिण – पश्चिम में स्थित अरावली श्रेणी की पहाड़ियां शामिल हैं । इस क्षेत्र के उच्च प्रदेश पश्चिम में बिखरे कटकों के साथ सांभर बेसिन द्वारा , उत्तर में अलवर पहाड़ियों के द्वारा , पूर्व में करौली उच्च भूमि के द्वारा तथा दक्षिण में बनास मैदान द्वारा सीमित है ।
इस प्रदेश को पुनः दो भागों में विभाजित किया जा सकता
( i ) शेखावाटी निम्न पहाड़ियां :
इस प्रदेश का भू – दृश्य बालू पहाड़ियां और निम्न गर्तों से परिलक्षित है । यह आंतरिक प्रवाह क्षेत्र है । सांभर झील से प्रारंभ होने वाली सबसे लंबी श्रेणी झुंझुनूं जिले में सिहना तक जाती है । अन्य छोटी छोटी पहाड़ियां इस प्रदेश में विभिन्न नामों से जानी जाती हैं जैसे पुराना घाट , नाहरगढ़ , आड़ा डुंगर , राहेड़ी , तोरावाटी आदि ।
( ii ) मेरवाड़ पहाड़ियां :
मेरवाड़ पहाड़ियां मारवाड़ के मैदान को मेवाड़ के उच्च पठार से अलग करने वाली पर्वत श्रेणी है जो अजमेर शहर के समीपवर्ती भागों में पहाड़ियों के समानान्तर अनुक्रम में दृष्टिगोचर होती है । इसका उच्चतम शिखर अजमेर नगर के निकट समुद्रतल से लगभग 870 मीटर ऊँचा है जो तारागढ़ के नाम से जाना जाता है । कुकरा से पहाड़ियों व घाटियों का एक अनुक्रमण अजमेर जिले के अन्तिम सिरे तक विस्तृत है जहाँ वे मेवाड़ पहाड़ियों में मिल जाते हैं । पश्चिम पार्श्व पर पहाड़ियां बहुत ही प्रबल तथा प्रपाती बन जाती है । इस प्रदेश की औसत ऊंचाई 550 मीटर है ।
( स ) मेवाड़ पहाड़ियाँ और भोराट पठार :
यह प्रदेश पूर्वी सिरोही , उदयपुर के पूर्व में एक सकड़ी पट्टी को छोड़कर लगभग में संपूर्ण उदयपुर और डूंगरपुर जिलों में विस्तृत है ।
महान् भारतीय जल विभाजक रेखा उदयपुर जिले के उत्तर से उदयपुर से बाहर पूर्व की तरफ मुड़ने से पूर्व दक्षिण – पश्चिम तक चली गई है । आबू खण्ड के अतिरिक्त अरावली श्रृंखला का उच्चतम भू – भाग उदयपुर के उत्तर – पश्चिम में कुंभलगढ और गोगुन्दा के बीच एक पठार के रूप में स्थित है जो स्थानीय भाषा में भोराट पठार के नाम से जाना जाता है । समुद्रतल से जयसमंद लगभग 300 मीटर , ऋषभदेव 400 मीटर , गोगुन्दा 840 मीटर , सायरा 900 मीटर और कोटड़ा 450 मीटर ऊँचा है । कुछ चोटियों की ऊँचाई समुद्रतल से 1300 मीटर है जबकि जरगा पर्वत मे उच्चतम चोटी 1223 मीटर ऊँची पाई जाती है ।
पूर्वी सिरोही में सुदूर पश्चिम में स्थित कटक हालांकि अधिक ऊँची नहीं है , लेकिन तीव्र ढाल वाली तथा ऊबड़ खाबड़ है जो स्थानीय भाषा में ‘ भाकर ‘ के नाम से जानी जाती है । जयसमन्द से और आगे पूर्व में लासड़िया का विच्छेदित व कटा – फटा पठार है । यहीं से पहाड़ियों की शाखाएं प्रतापगढ़ तक चली गई हैं ।
भोराट पठार से पूर्व की ओर कई पर्वत स्कन्ध मिलते हैं जिनमें से दक्षिण सिरे का पर्वत स्कंध ( 500-600 मीटर ) महत्वपूर्ण है क्योंकि यह अरब सागर तथा बंगाल की खाड़ी के जल प्रवाह के बीच एक जल विभाजक का कार्य करता है । कुछ पहाड़ी स्कंध तश्तरीनुमा आकृति वाले उदयपुर बेसिन को घेरे हुए हैं , जिसे स्थानीय भाषा में गिरवा कहते हैं । गिरवा से तात्पर्य पहाड़ियों की मेखला से है ।
( द ) आबू पर्वत खण्ड :
इस प्रदेश में पहाड़ियाँ कठोर क्वार्टज् से निर्मित है । यह पहाड़ियां जो कटक सदृश्य लगती है , काफी लंबी तथा ऊपरी सिरों पर समतल सतह वाली हैं । इनके पार्श्व दीवार की भाँति हैं । आबू पर्वत 19 किलोमीटर लंबा और 8 किलोमीटर चौड़ा पठार है जो लगभग 1200 मीटर समुद्रतल से ऊँचा है । यह एक अनियमित पठार है जो कई प्रक्षेपित चोटियों से घिरा हुआ है । प्राकृतिक स्थलाकृतियां पश्चिमी और उत्तरी पार्श्वों में अति प्रपाती ढ़ाल प्रमुख हैं । पर्वत स्कंधों और उनके बीच स्थित घाटियों के द्वारा पूर्व और दक्षिण का धरातल काफी छिन्न – भिन्न है ।
सबसे आश्चर्यजनक भू – दृश्य चट्टानों के विशालतम खण्ड हैं जो पहाड़ी के शिखर के साथ खडे प्रतीत होते हैं । के कारण आबू पर्वत से सटा हुआ उडिया पठार आबू से लगभग 160 मीटर ऊँचा है और गुरूशिखर मुख्य चोटी के नीचे स्थित है । जेम्स टॉड ने गुरुशिखर को संतों का शिखर कहा है । यह हिमालय और नीलगिरी के बीच ( गुरूशिखर 1722 मीटर ) सबसे ऊँची चोटी है । गुरूशिखर के आस – पास की अन्य चोटियों में से सेर ( 1597 मीटर ) , अचलगढ़ ( 1380 मीटर ) और दिलवाड़ा के पश्चिम में तीन अन्य चोटियां है ।
आबू पर्वत के पश्चिम में आबू – सिरोही श्रेणियां हैं । आबू क्षेत्र के पश्चिम में जसवन्तपुरा पर्वतीय क्षेत्र में मुख्यत : डोरा पर्वत ( 869 मीटर ) विस्तृत है । जसवंतपुरा पर्वत क्षेत्र के पश्चिम में रानीबाड़ा उच्च प्रदेश वृक्ष विहीन अनावृत प्रदेश है । सिवाना ग्रेनाइट एर्वत क्षेत्र के नाम से प्रख्यात पर्वतीय क्षेत्र में मुख्यतः गोलाकार पहाड़ियां है , इन्हें छप्पन की पहाड़ियां एवं नाकोड़ा पर्वत के नाम से पुकारा जाता है । इसी प्रकार जवाई नदी घाटी के दक्षिण में विस्तृत जालोर पर्वत क्षेत्र के रोजा भाखर ( 730 मीटर ) , इसराना भाखर ( 839 मीटर ) एवं झारोला पहाड़ ( 588 मीटर ) प्रमुख हैं ।
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