अधिवृक्क ग्रंथि (Adrenal gland) के कार्य एवं संरचना, एड्रिनल ग्रंथि क्या है इसके कार्य, एड्रीनलीन हार्मोन क्या है, अधिवृक्क ग्रंथि विकारों लक्षण what is adrenal gland and its function
अधिवृक्क ग्रंथि एक जोड़ी के रूप में पाई जाती है जो वृक्कों के ऊपर टोपी के रूप में पाई जाती है । इसलिए इनको सुप्रारीनल ग्रन्थियाँ भी कहते हैं ।
प्रत्येक अधिवृक्क ग्रन्थि एक छोटी ( 5 cm . लम्बी , 3 cm . चौड़ी और 1 cm . मोटी ) त्रिभुजाकार और पीली – सी टोपी के समान संरचना है । मानव में इसका वजन लगभग 3.5 से 5.09gm . होता है । जन्म के समय अधिवृक्क ग्रन्थि सुविकसित होती है । अधिवृक्क ग्रन्थि दो भागों में बंटी होती है – बाहरी भाग कार्टेक्स Cortex तथा आन्तरिक भाग मेड्यूला Medulla। कार्टेक्स भाग भ्रूण की मीसोडर्म एवं मेड्यूला भ्रूण के न्यूरल एक्टोडर्म से बनता है ।
एड्रीनल कार्टेक्स के स्त्रावण का नियंत्रण पीयूष ग्रन्थि के एडिनो हाइपोफाइसिस से स्रावित एड्रिनो – कार्टिकॉट्रोफिक हार्मोन ( ACTH ) के द्वारा होता है लेकिन मेड्यूला भाग का नियंत्रण तंत्रिका तंत्र द्वारा किया जाता है ।
( अ ) कार्टेक्स Cortex
यह भाग ग्रन्थि का लगभग 80-90 प्रतिशत होता है । इसकी अधिकांश कोशिकाएँ वसायुक्त होती हैं । कार्टेक्स भाग को बाहर से अन्दर की ओर निम्न भागों में विभेदित किया जाता है –
(i) जोना ग्लोमेरुलोसा Zona glomerulosa
(ii) जोना फेसिकुलेटा Zona fasciculata
(iii) जोना रेटिकुलेरिस Zona reticularis
(i) जोना ग्लोमेरुलोसा Zona glomerulosa की कोशिकाएँ घनाकार ( Cuboidal ) होती हैं , ये गुच्छों में पाई जाती हैं । जोना ग्लोमेरुलोसा से मिनरे – लोकॉरटिकायड्स mineralocorti – coids श्रेणी के हार्मोन्स का स्त्रावण होता है । जैसे – एल्डोस्टीरोन ।
( ii ) जोना फेसिकुलेटा Zona fasciculata की कोशिकाएँ बड़ी – बड़ी तथा बहुतलीय polyhedral होती हैं । ये ग्लूकोकारटिकॉयड्स Gluco – corticoids श्रेणी के हार्मोन्स का स्रावण करती हैं । जैसे – कार्टोसोन , कार्टोस्टीरोन ।
( iii ) जोना रेटिकुलेरिस Zona reticularis की कोशिकाएँ जाल के रूप में फैलकर कतारों में लगी होती हैं । इस भाग से स्त्रावित हार्मोन्स को लिंग हार्मोन्स Sex Hormones कहते हैं ।
ऐड्रीनल कार्टेक्स से स्त्रावित हार्मोन्स
इस भाग में लगभग 45 50 हार्मोन्स का संश्लेषण होता है । ये सभी स्टीरॉयड्स Steroids श्रेणी के होते हैं । इन सभी हार्मोन्स को कॉर्टिकाइड्स Corticoids कहते हैं । इनमें सक्रिय 7-8 ही हैं । इन हार्मोन्स को कार्य के आधार पर तीन श्रेणियों में बाँटा जाता है
( 1 ) मिनरेलोकारटिकायड्स Mineralocorticoids
इस श्रेणी में दो प्रमुख हार्मोन्स आते हैं – एल्डोस्टीरॉन Aldosterone तथा डी – ऑक्सीकॉरटीकोस्टीरॉन De – oxycorticosterone ये हार्मोन्स बाह्य कोशिकीय द्रव तथा रक्त में सोडियम , पोटैशियम एवं क्लोराइड्स ( Nat , K + एवं CI ) आयन्स तथा जल की उपयुक्त मात्रा बनाये रखते हैं ।
ऐल्डोस्टीरॉन , वृक्क की वृक्क नलिकाओं में सोडियम तथा क्लोराइड्स आयनों के पुनरावशोषण Reabsorption तथा पोटैशियम आयनों के उत्सर्जन का नियंत्रण करता है ।
इन हार्मोन्स की कमी से सोडियम तथा पोटैशियम आयनों का सन्तुलन बिगड़ जाता है तथा इनसे होने वाले रोग को कॉन्स रोग Conns disease कहते हैं ।
( 2 ) ग्लूकोकारटिकायड्स Glucocorticoids
इस श्रेणी में तीन प्रमुख हार्मोन्स आते हैं – कार्टिसोल Cortisol, कार्टिसोन Cortisone, कॉरटिकोस्टीरोन Corticosterone
इनमें सबसे प्रभावी हार्मोन कार्टिसोल होता है । इसके अग्रलिखित कार्य हैं
1. ये हार्मोन यकृत में प्रोटीन संश्लेषण , ग्लूकोज से ग्लाइकोजन ( ग्लाइकोजेनेसिस ) , वसीय एवं अमीनो अम्लों से ग्लूकोज ( ग्लूकोनियोजेनेसिस ) तथा यूरिया संश्लेषण को बढ़ाते हैं ।
2. कार्टिसोल रक्त में ग्लूकोज , अमीनो अम्ल तथा वसा अम्लों की मात्रा बढ़ाते हैं ।
3. ये हार्मोन्स रक्त में लाल रक्ताणुओं ( RBC ) की संख्या को बढ़ाते हैं तथा श्वेत रक्ताणुओं ( WBC ) के भ्रमण पर रोक लगाते हैं ।
4 .ये हार्मोन्स त्वचा , आहारनाल , लसीका अंगों , हड्डियों , वसा कार्यों में ग्लूकोज के उपयोग पर रोक लगाते हैं ।
5. कार्टिसोल के कारण परिधीय वसा में वृद्धि होती है , यह क्रिया वसा भवन ( lipogenesis ) कहलाती है ।
6 . ये हार्मोन्स प्रदाह विरोधी Anti – inflammatory होते हैं । ये शरीर में प्रदाह inflammatory क्रियाओं को घटाने का कार्य करते हैं ।
7 . ये हार्मोन्स प्रतिरक्षी – निषेधात्मक Immuno – Suppressive भी होते हैं , ये प्रतिरक्षी या ऐन्टीबॉडीज antibodies के कार्य को रोक देते हैं ।
8 . एलर्जी के इलाज तथा अंगों के प्रत्यारोपण के समय भी कॉर्टिसोल के इन्जेक्शन लगाये जाते हैं ।
9 . कोलेजन तन्तुओं के निर्माण पर रोक लगाकर गठिया ( Rheumatism ) के उपचार में उपयोग किया जाता है ।
10 . इनके अल्प स्त्रावण से ‘ एडीसन का रोग ‘ Addison’s disease हो जाता है ।
( 3 ) लिंग हार्मोन्स Sex hormones
एड्रीनल से स्रावित हार्मोन्स गोनेडोकार्टिकोइड्स Gonadocorticoids कहलाते हैं । गोनेडोकार्टिकाइड्स में नर लिंग हार्मोन्स एन्ड्रोजन Androgens तथा मादा लिंग हार्मोन्स इस्ट्रोजन Estrogen होते हैं । लिंग हार्मोन्स स्रावण जोना रेटीकूलेरिस से अल्प मात्रा में होता है लेकिन यह जीवन पर्यन्त चलता है ।
ये हार्मोन्स पेशियों , बाह्य जननांग External genitalia तथा यौन व्यवहार को प्रेरित करता है ।
यदि स्त्रियों में नर लिंग हार्मोन्स ऐड्रीनल ग्रन्थि से अधिक स्रावित हो , तो उनमें नर जन्तुओं के समान चेहरे पर बाल आ जाते हैं । इस प्रक्रिया को ऐड्रीनल विरिलिज्म Adrenal Virilism कहते हैं और नर में मादा के समान स्तन विकसित हो जाते हैं तो इस अवस्था को गाइनाकोमैस्टिआ Gynacomastia कहते हैं ।
ऐड्रीनल विरिलिज्म को हिरसूटिज्म भी कहते हैं ।
( ब ) मेड्यूला Medulla
यह ऐड्रीनल ग्रन्थि का 10 % भाग होता है । इस भाग में अनुकम्पी स्वायत्त तन्त्रिका तन्त्र की ही रूपान्तरित उत्तर – गुच्छकीय post – ganglionic कोशिकाएँ होती हैं । ये कोशिकाएँ ग्रन्थिल glandular हो जाती हैं , इन्हें क्रोमेफिन कोशिकाएँ Chromaffins cells कहते हैं । ये कतारों एवं गुच्छों में लगी होती हैं ।
ऐड्रीनल मेड्यूला से स्त्रावित हार्मोन्स –
इस भाग से दो हार्मोन्स का स्रावण होता है जिन्हें संयुक्त रूप से कैटेकोलएमीन Catecholamine कहते हैं । इन हार्मोन्स का संश्लेषण क्रोमेफिन कोशिकाएँ टाइरोसीन Tyrosin नामक अमीनो अम्ल से करती हैं ।
( 1 ) ऐड्रीनेलीन या एपीनेफ्रीन Adrenaline or Epinephrine
मेड्यूला द्वारा स्रावित हार्मोन्स में से ऐड्रीनेलीन 80 % होता है । इसे संकटकालीन हार्मोन Emergency hormone कहते हैं क्योंकि ये हार्मोन संकटकालीन परिस्थितियों का सामना करने के लिए तैयार करता है ।
एड्रीनेलीन के कार्य
( i ) ऐड्रीनेलीन त्वचा , श्लेष्मिक कलाओं तथा अन्तरांगों की रुधिर वाहिनियों को संकुचित करता है।
( ii ) यह हार्मोन कंकाल पेशियों , यकृत , हृदय तथा मस्तिष्क आदि की रुधिर वाहिनियों का प्रसार Vasodilation करता है ।
( iii ) इस हार्मोन के प्रभाव से हृदय स्पंदन दर , रुधिर दाब , आधार उपापचय दर तथा रक्त में ग्लूकोज की मात्रा अधिक सब बढ़ जाते हैं ।
( iv ) नेत्रों की पुतलियों को यह हार्मोन फैला देते हैं ।
( v ) इस हार्मोन के प्रभाव से रोंगटे Gooseflesh खड़े हो जाते
( vi ) इस हार्मोन के प्रभाव से रक्त में थक्का Blood Clotting जमने का समय घट जाता है ।
( vii ) ऐड्रीनेलीन के प्रभाव से श्वास नली Trachea एवं ब्रॉन्काई Bronchi की पेशियाँ शिथिल हो जाती हैं । यह हार्मोन अस्थमा अर्थात् दमा के उपचार में प्रयोग होता है ।
( viii ) यह हार्मोन यकृत Liver तथा पेशियों में ग्लाइकोजिनोलाइसिस तथा लाइपोलाइसिस Lipolysis क्रियाओं को प्रेरित करता है ।
( 2 ) नॉर ऐड्रीनेलीन या नॉर एपिनेफ्रीन Nor adrenalin or nor epinephrine
मेड्यूला से स्रावित हार्मोन्स का नॉर ऐड्रीनेलीन 20 % भाग होता है ।
यह हार्मोन शरीर को सभी रक्त वाहिनियों Blood Vessles को संकुचित करके रक्त दाब बढ़ा देता है।
ऐड्रीनल ग्रन्थि के हार्मोन्स का अनियमित स्त्रावण
( अ ) अल्प स्त्रावण Hyposecretion
( i ) एडीसन रोग Addison’s disease
ग्लूकोकार्टिकायड्स हार्मोन के अल्प स्त्रावण से निर्जलीकरण Dehydration हो जाता है और रक्त दाब , आधार उपापचय दर तथा शरीर ताप घट जाते हैं । सोडियम व जल का उत्सर्जन बढ़ जाता है । हाथों , गर्दन , चेहरे आदि की त्वचा काँस्य वर्ण bronzing की हो जाती है ।
( ii ) कॉन्स का रोग ( Conn’s disease ) –
मिनरेलोकार्टिकायड्स के अल्प स्रावण से सोडियम एवं पोटैशियम का संतुलन बिगड़ जाता है और पेशियों में अकड़न आ जाती है तथा तंत्रिकाओं के कार्य अनियमित हो जाते हैं । इस रोग को कॉन्स रोग कहते हैं ।
( iii ) हाइपोग्लाइसीमिया ( Hypoglycemia ) –
ग्लूको कार्टिकायड्स की कमी से रक्त में शर्करा की कमी हो जाती है , जिससे हृदय पेशियाँ , यकृत एवं मस्तिष्क की क्रियाएँ शिथिल हो जाती हैं । उपापचय दर ( BMR ) और शरीर ताप घट जाता है ।
( ब ) अतिस्त्रावण Hypersecretion
( i ) कुशिंग का रोग Cushing disease
इस रोग में शरीर चौड़ा हो जाता है , क्योंकि चेहरे , गर्दन के पीछे तथा उदर पर वसा अधिक मात्रा में जमा हो जाती है ।
( ii ) हाइपर ऐल्डोस्टेरोनिज्म Hyper aldosteronism
इस रोग में रक्त दाब बढ़ जाता है अतः अति तनाव की शिकायत हो जाती है । पेशियों में कमजोरी आ जाती है और सोडियम का अपरक्षण हो जाता है ।
( iii ) एड्रीनोजेनाइटल सिन्ड्रोम Adrenogenital Syndrome
इस रोग से मादा में नर के लक्षण विकसित हो जाते हैं तथा मासिक चक्र ( M.C. ) बंद हो जाता है । गर्भाशय व अंडाशय विघटित हो जाते हैं और क्लाईटोरिस बड़ी हो जाती है । इसे हिरसूटिज्म भी कहते हैं ।